धान ख़रीदी के 12 दिनों में 12 फ़रमान निकाल कर भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ के किसानों की 12 बजाई: अमित जोगी
- भूपेश सरकार ने प्रदेश में 1 करोड़ मेट्रिक टन रिकार्ड पैदावार होने के बावजूद धान का समर्थन मूल और ख़रीदी की मात्रा में कटौती करके किसानों को सीधे-सीधे ₹ 17,500 करोड़ का चूना लगाया है: अमित जोगी
- छत्तीसगढ़ का किसान अब तक #नरेंद्रमोदीकीनोटबंदी और #भूपेशबघेलकीधानख़रीदी से सबसे ज़्यादा प्रताड़ित: अमित जोगी
-भूपेश सरकार की नयी धान खरीदी (कू)नीति के रोज के नये नये #नियम क्या किसानों के लिए #यम के द्वार पर धकेलने हेतु बनाए जा रहे हैं?: अमित जोगी
नोटबंदी कस #12फ़रमान निकाल के #धान_ख़रीदी के 12दिन म भूपेश करिस हमर किसानमन के #12हाल:
- ₹2500 की जगह ₹1815 प्रति क्विंटल के हिसाब से धान का समर्थन मूल देना।
- धान ख़रीदी एक महीने देरी से शुरू करना।
- धान ख़रीदी के पैसे काट के किसानों का समिति से खाद और बीज के लिए गए कर्ज को चुकाना।
- दो साल का बकाया बोनस का कोई अतापता नहीं।
- एक बार में एक किसान से 15 क्विंटल उत्पादन के विरुद्ध केवल 8 क्विंटल प्रति एकड के हिसाब से धान ख़रीदना।
- एक बार में एक किसान से अधिकतम 5 के विरुद्ध 3 टोकन के माध्यम से मात्र 75-80 क्विंटल धान ही ख़रीदना।
- एक दिन में एक धान ख़रीदी केंद्र में औसतन 450 क्विंटल धान ही ख़रीदना। इस हिसाब से 1 करोड़ मेट्रिक टन उत्पादन के विरुद्ध सरकार आधा (50 लाख मेट्रिक टन) धान ही ख़रीदने जा रही है।
- शेष 50 लाख मेट्रिक टन धान न सरकार खुद ख़रीद रही है और न किसानों को और किसी को बेचने दे रही है। #नख़रीदूँगानख़रीदनेदूँगा !
- किसानों से बोरे (बारदाने) से धान निकलवाकर चेक करना, फिर बोरे में भरवाना। मानो वो किसान नहीं नक्सली है जिसने बोरे में धान की जगह बारूद रखा है।
- बोरे से धान की लोडिंग-अन्लोडिंग हम्माल से न करवाकर खुद किसान से करवाना।
- नए बोरों से ज़्यादा फटे पुराने बोरों का उपयोग करने के बावजूद किसानों से नए बोरे का पैसा वसूलना।
- धान संग्रहण केंद्रों में भंडारण के अभाव में फसल की बरबादी और #दूसरेनानघोटाले की शुरुआत।
आर्थिक निष्कर्ष: धान ख़रीदी की मात्रा आधा करके और समिति का कर्ज, मज़दूरी और बोरों का पैसा काटके प्रदेश के किसानों के खाते में सरकार द्वारा ख़रीदे जा रहे 50 लाख मेट्रिक टन धान के विरुद्ध ₹1815 की जगह ₹1500 प्रति क्विंटल ही आएगा। मतलब 50 लाख मेट्रिक टन में उन्हें ₹1000 प्रति टन (कुल: ₹5000 करोड़) और बचे 50 लाख मेट्रिक टन- जिसकी ख़रीदी सरकार नहीं कर रही है- पर विशुद्ध रूप से ₹2500 प्रति टन (कुल: ₹12500 करोड़) के हिसाब से ₹17,500 करोड़ का नुक़सान होगा।