गरियाबंद/वनों का विनाश जारी वन विभाग कुम्भकरणी निद्रा में लीन

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इतेश सोनी जीला ब्यूरो गरियाबंद

मैनपुर:-गरियाबंद जिला के वनों की अंधाधुंध कटाई गहन चिंता का विषय है। दुख की बात यह है
कि भू-माफिया और अबैध कब्जा धारियों की नजर वन भूमि पर गिद्ध की तरह लगी हुई है और नेताओं व प्रशासन से मिलीभगत से वनों का विनाश बेधड़क किया जा रहा है।

गांवों के नजदीक लगे जंगलों में भू-माफिया सक्रिय है और यहां हरे-भरे व विशाल काय पेड़ों की कटाई के प्रति प्रशासन की चुप्पी मामले को और संदिग्ध बनाती है। मैनपुर वन परिक्षेत्र(सामान्य) के कक्ष क्रमांक 1063 ग्राम बारदुला में हरे भरे सराई,साल,बीजा जैसे बहुमूल्य लगभग 150 विशाल काय पेड़ो को काटकर लगभग 15-से 20 एकड़ वन भूमि पर कब्जा कर लिया गया है जिसकी भनक अभी तक वन विभाग को नही लगी है ना ही किसी पर कोई कार्यवाही की गई है यहाँ एक शोचनीय विषय है, जिसके बगल में इतवारुराम ध्रुव,त्रिलोक कमलेश,व श्रवण ठाकुर की जामीने है यह सब खेल वन अधिकार पत्र की होड़ में खेला जा रहा है। एकाधिपत्य जमाने के लिए मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहा है। सोचनीय विषय यह है कि पिछले कुछ वर्षो के दौरान राज्य में जिस तरह से प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन हुआ और उससे पर्यावरण को जितनी क्षति पहुंची है, उसकी भरपाई के लिए उतना प्रयास नहीं हो पाया है मगर चिंता की बात यह है कि घने जंगलों का क्षेत्रफल में निरंतर कमी आ रही है। इसका कारण लगातार बढ़ रही जनसंख्या है जंगलों की कटाई होना भी है। यह सर्वविदित है कि वनों को तब तक संरक्षित नहीं किया जा सकता जब तक वन विभाग के अलावा समाज का हर व्यक्ति अपना योगदान न दे। अक्सर यह देखने को मिलता है कि कुछ संस्थाएं मात्र अपने प्रचार के लिए चंद पौधे लगाकर वाहवाही तो लूट लेती हैं, मगर इसके बाद लगाए गए पौधों की सुध नहीं लेती। होना तो यह चाहिए कि हम जिस पौधे को लगाते हैं, उसे बड़ा होने तक उसकी देखभाल भी करें ताकि इससे हरियाली को भी बढ़ावा मिले और पर्यावरण संरक्षण भी हो सके। पर्यावरण आज जिस तरह एक समस्या बन चुका है अगर इसके संरक्षण के लिए ठोस प्रयास नहीं हुए तो मानवता को एक भारी कीमती चुकानी पड़ सकती है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि पेड़ों के काटने से रोके और पौधरोपण को बढ़ावा दे। सूत्रों की माने तो वनभूमि पर खेती-किसानी के नाम पर कई लोग ढकोसला कर रहे हैं, यहा सब पट्टे के लालच में होता है। दिखावे के लिए खेती-करते हैं। सरपंच और पटवारियों की मदद से अपने रिश्तेदारों को कई दशक पुराने निवासी बताकर उन्हें पट्टा दिलाते हैं। सरपंच प्रस्ताव बनाकर व पटवारी वनभूमि को ग्रामीण के नाम कर देते हैं। फिर तहसीलदार, एसडीएम, सहायक आयुक्त, डीएफओ, कलक्टर के हस्ताक्षर होकर पट्टा मिल जाता है। वनों के लगातार विनाश से गहरा रहा पर्यावरण संकट

दिनों दिन बिगड़ता पर्यावरण आज के समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है जिसे देश की वोट बैंक राजनीति को कोई सरोकार नही है, विभिन्न स्तर पर लोग पर्यावरण समस्या से जूझ रहे है। जिसका तात्पर्य वायु, जल जमीन का लगातार हो रहे प्रदूषण से है। प्राकृतिक रूप से इन तीनों को प्रदूषण से रोकने वाला एक ही कारक है पेड़-पौधे। लेकिन लगातार वनों के ह्रास से स्थिति विकट होती जा रही है।

संतुलन के लिए 33 फीसदी वन जरूरी

पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक है। पृथ्वी के 33 फीसदी हिस्सों पर वनों का होना। लेकिन देश में जहां करीब 24 फीसदी व राज्य में 28 फीसदी वन क्षेत्र है। वही जिले में मात्र 8.5 फीसदी ही वन क्षेत्र है। केंद्र सरकार ने 2012 तक 33 प्रतिशत वन क्षेत्र पूरा करने का लक्ष्य रखा था लेकिन यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया और ना कभी होने की उम्मीद है चूंकि जो सरकारें अब चुनाव जीत कर आ रही है वो अपने चुनावी घोषणा पत्र में वन अधिकार का लालच देकर सत्ता में आ रही है जिसका उदाहारण वर्तमान सरकार है चुनाव के पहले कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र के विंदु क्रमांक 14 में वन अधिकार पत्र देने की बात कही थी तब से आ पत्रों द्वारा भी लगातार जंगल का सफाया किया जा रहा है और जमीने हथियाई जा रही है भले ही कारण जो हो पर्यावरण से जुड़े जानकार मानते है कि अगर राज्य में कोशिश की जाए तो समस्त विकास के साथ जंगल का अधिकतम औसत 46 फीसदी तक किया जा सकता है। लेकिन स्थिति उलट है। जितने वन लग नहीं रहे उतने वन कटते जा रहे है। घने जंगलों में पेड़ों की कटाई करने के बाद बांटे जा रहे वन अधिकार पट्टों के वितरण पर हाईकोर्ट ने रोक रखी है,साथ ही राज्य सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है। रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका प्रस्तुत कर जंगल काट कर अपात्रों को बांटे जा रहे वन अधिकार पट्टों की जांच, अपात्रों को बांटे गए पट्टों को निरस्त करने और वितरण पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिका में फोटो सहित अन्य प्रमाण प्रस्तुत कर बताया गया था कि ग्रामीण घनों जंगलों को काट कर वन अधिकार पट्टा प्राप्त कर रहे हैं, इस संंबंध में जानकारी होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
साथ ही बताया गया था कि टीएन गोधावर्मन की याचिका पर वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने वन भैसों के संरक्षण और वनों में से कब्जा हटाने के निर्देश दिए थे।इसके अलावा जरूरी होने पर वन क्षेत्रों में बांटे गए पट्टों को निरस्त करने के भी आदेश दिए गए थे। अब वहीं, वनों की अवैध कटाई हो रही है। याचिका में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ वन विकास निगम ने भी कब्जों के संबंध में पत्र लिखा है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी वनों को हो रहे नुकसान को लेकर जल्द कार्रवाई की मांग करते हुए रिपोर्ट सौंपी थी लेकिन राज्य सरकार की वोट बैंक की राजनीति के चलते कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
याचिका में जानकारी दी गई थी कि वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का 13 दिसंबर 2005 के पूर्व 10 एकड़ वन भूमि तक कब्जा था तो वह पट्टा प्राप्त करने की पात्रता रखेगा, इस संबंध में उसे प्रमाण प्रस्तुत करना पड़ेगा। बताया गया कि छत्तीसगढ़ में सितंबर 2018 तक 401551 पट्टे अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासियों को वन अधिकार पट्टे बांटे गए। प्रदेश में छत्तीसगढ़ में करीब 42 फीसदी हिस्सा वन है, इसमें से 3412 वर्ग किमी यानी कुल वन भू भाग का 6.14
फीसदी हिस्से को वन अधिकार पट्टे के रूप में बांट दिया गया है।

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