नदिया के तीर मा बसे मोर गांव.

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जिंहा बर पिपर के हे छांव.. के साथ शुरू हुई काव्य गोष्ठी..
बालोद.. कोरोना महमारी के बीच साहित्यकारों की साहित्य साधना जारी
आॅनलाइन वीडियो काम्प्रेसिंग के माध्यम से दिनांक 12-6-2020 दिन शुक्रवार को समय शाम 7:00 बजे से तृतीय काव्य संध्या का शुभारंभ हुआ। संयोजक वीरेन्द्र कुमार कंसारी “वीरू”के संयोजन में एवं श्री चम्पेश्वर सिंह राजपूत जी (फिल्मकार ,साहित्यकार,संचालक)के सशक्त संचालन मे काव्य संध्या का आयोजन हुआ।
इस काव्य संध्या में ओज एवं हास्य व्यंग्य के सुप्रसिध्द कवि श्री पुष्कर सिंह राजपूत जी एवं श्रृंगार गीत एवं गजल की ससक्त हस्ताक्षर कवियत्री श्रीमति संध्या राजपूत जी तथा वियोग विरह गीत /कविता के युवाकवि वीरेन्द्र कंसारी जी ने तथा संचालन कर रहे फिल्मकार साहित्यकार एवं संचालक चम्पेश्वर सिंह राजपूत जी ने काव्य पाठ कर काव्य संध्या को ग्यानवर्धक एवं सफल सुंदर बनाया।
काव्य संध्या का शुभारंभ कवियत्री श्रीमति संध्या राजपूत जी के मां सरस्वती वंदना मां शारदे एवं गीतों से शुभारंभ हुआ कविता:-
नदिया के तीर मा बसे मोर गांव।
जिंहा बर पीपर के हे छाव।।
ओखर सुरता,आथे ना।
ओखर सुरता आथे ना।।
तत्पश्चात सभी कवियों ने काव्य पाठ किया । हास्य,व्यंग्य एवं ओज के सुप्रसिध्द कवि श्री पुष्कर सिंह राजजी ने कविता:- कलयुग मा घोर कलयुग समावत हे।
तभो ले कका कथे बने दिन आवत हे।।
करमचारी कामचोरी मा मस्त हे।
अधिकारी घुसखोरी मा व्यस्त हे।।
इंखर बीच मा जनता पेरावत हे।।
तभो ले कका कथे बने दिन आवत हे।।
श्रृंगार वियोग विरह गीत/ कविता के कवि वीरेन्द्र कंसारी ने बटवारा नामक कविता:-
मोर बेटा जी मोर आंखी के तारा।
बूढत काल मा बेटा बनही सहारा।।
सोचे न इ रेहेव जी अइसन हो जाही।
पूछथव मय जी काबर होथे बटवारा।।
तथा संचालन कर रहे श्री चम्पेश्वर सिंह राजपूत जी ने कविता /गीत:-
तोला खोजत हे नयना ओ मोर मयना
तरस तरस के गुरतुर तोर बानी ओ मोर रानी
जियरा तरस के 2 सुने बर जियरा तरसगे।।
पाठ कर काव्य संध्या को सफल सुंदर बनाया,एवं सयोजक ने समस्त कवियों एवं कवियत्री का आभार व्यक्त किया।बालोद गुरूर से के नागे के साथ ऋषभ पांडे की रिपोर्ट..

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