माकपा ने कहा : प्रधानमंत्री जी भाषण नहीं, राशन-रोजगार-स्वास्थ्य दो
“कोरोना वायरस चिकित्सा विज्ञान और बेहतर स्वास्थ सुविधाओं के जरिए ही लड़ा जा सकता है, न कि ताली-थाली, दीया-बाती और इबादत-अजान के जरिये। इसीलिए प्रधान मंत्री जी भाषण नहीं, जनता को राशन, रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाएं दो, ताकि वह कोरोना महामारी से लड़ सके।”– यह टिप्पणी की है मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी की *मन की बात* पर।
प्रधानमंत्री के संबोधन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा कि आज फिर उन्होंने दो गज दूरी की बात की, लेकिन देश की बहुत बड़ी आबादी जिस *दो जून की रोटी* के लिए लड़ रही है, उस पर वे मौन ही रहे। पार्टी ने कहा कि किसानों को तो यह जायज चिंता है कि देश में कोई भूखा ना रहे, लेकिन इस सरकार को सपने में भी यह चिंता नहीं सताती कि हमारे देश का किसान भी भूखा न सोये। जबकि हकीकत यह है कि अनियोजित लॉक डाउन के कारण खेती- किसानी बर्बाद हो गई है, लेकिन उन्हें वास्तविक मदद पहुंचाने की कोई योजना इस सरकार के पास नहीं है।
*माकपा राज्य सचिव संजय पराते* ने आरोप लगाया है कि कोरोना महामारी के समय में भी केंद्र सरकार सहकारी संघवाद के सिद्धांत का उल्लंघन कर रही है और जीएसटी सहित अन्य मदों के हजारों करोड़ रुपयों की राशि से राज्य सरकारों को वंचित कर रही है। उन्होंने कहा कि इस महामारी से लड़ने का पूरा भार राज्यों पर ही डाल दिया गया है और केंद्र सरकार उन्हें कोई भी आर्थिक मदद करने के लिए तैयार नहीं है। माकपा नेता ने प्रधानमंत्री से पूछा है कि जब राज्य सरकारों और जनता को ही कोरोना से लड़ना है, तो फिर केंद्र सरकार का क्या काम?
माकपा नेता ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा जिस पैकेज की घोषणा की गई है, वह अभी तक जनता की पहुंच से दूर है और भुखमरी फैल रही है, लेकिन सरकारी गोदामों में जमा सात करोड़ टन खाद्यान्न पर वह कुंडली मारे बैठी है। करोड़ों प्रवासी मजदूर, जो विभिन्न राज्यों में फंसे हैं, उन्हें उनके घर तक भेजने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है, जबकि एक माह में ही 300 से ज्यादा मजदूरों की मौत हो चुकी है। इस संकट के कारण देश में बेरोजगारी दर 7.5% से बढ़कर 23.6% पर पहुंच गई है तथा 5.5 करोड़ रोजगारशुदा लोग बेरोजगार हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि कोरोना से लड़ने के नाम पर सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को डेढ़ साल तक महंगाई भत्ता न देने की घोषणा करके इस सरकार ने मेहनतकशों पर एक नया हमला बोल दिया है, जबकि इसी सरकार ने कारपोरेटों को पिछले पांच सालों में आठ लाख करोड़ रूपयों की छूट दी है। माकपा नेता ने कहा कि कोरोना से लड़ने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सुरक्षा किटों व मरीजों के लिए टेस्ट किटों का अभाव भी किसी से छुपा नहीं है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि चिकित्सा उपकरणों का हमारे देश में अभाव इसलिए है कि संकट काल में भी वह इसके निर्यात की इजाजत दिए हुए थी, ताकि कारपोरेट ज्यादा मुनाफा कमा सके। आज भी देश की जनता के स्वास्थ्य की कीमत पर दवाइयां अमेरिका व इजरायल में भेजी जा रही है।
पराते ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री राहत कोष के होते हुए भी मोदी एक ऐसे प्राइवेट ट्रस्ट में दान करने के लिए अपील कर रहे हैं, जिसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है और जो सरकारी ऑडिट के दायरे के बाहर भी है। जो लोग प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए पैसे दे रहे हैं, उसे भी जबरदस्ती प्रधानमंत्री केयर्स फंड में डाला जा रहा है और इस प्रकार बटोरी जा रही हजारों करोड़ रुपयों की राशि को न राज्यों के साथ बांटा जा रहा है और न आम जनता को राहत पहुंचाने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है।