आदिवासी वनांचल क्षेत्र मैनपुर मे हो रहा है महुए का संग्रहण – इतेश सोनी जिला ब्यूरो गरियाबंद
इतेश सोनी जिला ब्यूरो गरियाबंद
स्कूली बच्चे अवकाश के बाद महुए का कर रहे संग्रहण
मैनपुर/इतेश सोनी:- तहसील मुख्यालय मैनपुर समेत क्षेत्र के गोपालपुर, कोदोभाट, गौरघाट, छुईहा, कोयबा, तौंरंेगा, जुगांड़, जांगड़ा, भुतबेड़ा, हरदीभाठा, मैनपुर, भाठीगढ़, गोपालपुर, मैनपुर कला, जिड़ार, जाड़ापदर, शोभा, गोना, कोकड़ी, कुल्हाड़ीघाट, कोयबा सहित अंचलो मे महुआ संग्रहण का कार्य शुरू हो गया है जिससे संग्राहको के चेहरे खिलने लगे हैं तो वही राहगीरो को महुए की सुगंध मोहित कर रहा है, जंगलो के चारो ओर महुआ की मादक खुशबु बिखर रही है। छत्तीसगढ़ प्रदेश का प्रमुख वनोपज महुआ फूल पककर तैयार हो चुका है, महुए बिनने संग्रहण के लिए स्कूली बच्चे से लेकर पूरे परिवार सुबह से ही जंगलो व खेतो की ओर चले जाते जिससे गांव पूरी तरह सूनसान सा लगता है। इन दिनो कोरोना वायरस के कहर के चलते सभी स्कूलो मे अवकाश घोषित किया गया है जिसका फायदा आदिवासी वनांचल क्षेत्र मे देखने को मिल रहा है यहां के स्कूलो मे छुटटी के चलते स्कूली बच्चे अपने परिवारजनो के साथ महुआ के संग्रहण कार्य मे जुट गये है। महुए की बंफर फसल से संग्रहित करने वाले ग्रामीण जनजाति के लोग पूरा दिन महुए के पेड़ की रखवाली कर इस फसल का संग्रहण कर रहे है। महुए की फुल संग्रहण मे मौसम के खुलते ही मैनपुर के विभिन्न अंचलो व वन क्षेत्र मे महुआ की अच्छी फसल देखने को मिल रहा है। महुए की फसल मे प्रति पेड़ 8 से 15 किलो की मात्रा मे प्रति दिन बरस रहा हैं मौसम अगर इसी तरह साफ रहा तो वनांचल क्षेत्र के रहवासियों इस वनोपज का भरपुर लाभ मिल सकता है। जंगलो मे अभी से महुआ फुल का संग्रहण होने लगा है जहां महुए की फसल को संग्रहित करने कई गंाव के आदिवासी लोग लगे है। महुए की फसल को संग्राहित करने व्यापक स्तर मे वनवासी व ग्रामीण लोग इस महुआ फुल का संग्रहण करने मे लगे है, जिसे राह चलते कही भी देखा जा सकता है। इस महुए की फसल को संग्रहित करने ग्रामीण सुबह 4 से 5 बजे से शाम तक अपने अपने महुए के पेड़ो पर पहुंच संग्राहित करते है जिससे पूरा गांव विरान हो जाता है। वनवासियों व ग्रामीणो के लिए सबसे दुखत बात यह है कि इनके द्वारा संग्राहित किये गये जंगली वनोपज महुआ को प्रदेश सरकार सीधे तौर पर नही खरीदता जिसके चलते ये ग्रामीण क्षेत्रो के लोग संग्रहित महुए को औने पौने दाम पर स्थानीय बिचैलियों व्यापारियों को बिक्री कर देते है। औने पौने दामो पर बेचने से उनकी आर्थिक स्थिति मे कोई बदलाव अभी तक नही आया है। गौरतलब है कि जिले के वनक्षेत्र मे आदिवासी कमार जनजाति के लोग ही निवास करते है, यहां के आदिवासी वनोपज के भरोसे ही अपना जीवन यापन कर आय के साधन के रूप मे इसका संग्रहण करते है।
आदिवासी विकासखंड मैनपुर के ग्रामीणो द्वारा लंबे समय से महुए को सरकारी दर पर खरीदने की मांग करते आ रहे है, पर शासन ने इस मांग को नजरअंदाज कर कोई फैसला नही लिया है। बिचैलिये कम कीमत पर महुआ को खरीद कर अधिक आमदनी पाने बड़े दाम मे बेच रहे है। बिचैलियो व्यापारी वर्ष भर इस महुए को संग्राहित कर तीन गुने से चार गुने दामो मे बेच कर मुनाफा कमा रहे है तो वही इसे संग्राहित करने वाले लोग औने पौने दामो मे बेच प्रशासन की कमी गिना रहे। जंगलो मे उत्पादित होने वाला महुआ फुल जिसे वैज्ञानिको ने मधुका लांेगफालिया नाम दिया है इसी महुआ फुल को शराब बनाने के उपयोग मे अधिक लाया जाता है शराब बनाने के नाम पर ये अधिक लोकप्रिय है, आमतौर पर ग्रामीण महुआ से शराब बनाते है और आदिवासी समुदाय के लोग महुआ से बने शराब की ही सेवन कर नशा करते है। इसके अलावा सरकार महुआ से ईधन बनाने की भी योजना बना रही है, अगर सरकार ईधन के रूप मे महुए का उपयोग करती है तो निश्चित तौर पर यह एक बड़ी उपलब्धि होगी ऐसे मे शासन का इस ओर ध्यान नही देना आदिवासी ग्रामीण किसानो के लिए बड़ी दुखत बात है।