उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के ग्रामीण तरस रहे है मुलभुत सुविधाओ के लिए और बाघ नहीं होने पर भी बाघ के नाम पर 30 करोड़ खर्च – तीव कुमार सोनी व इतेश सोनी
उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के ग्रामीण तरस रहे है मुलभुत सुविधाओ के लिए और बाघ नहीं होने पर भी बाघ के नाम पर 30 करोड़ खर्च – तीव कुमार सोनी व इतेश सोनी
मैनपुर | उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में कोई भी बाघ नहीं है फिर भी वन विभाग बाघ होने की झूठी जानकारी दे कर बाघ के नाम पर 30 करोड़ खर्च कर चुका है | उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में जहा एक तरफ बाघ के नाम पर 30 करोड़ खर्च किया गया है वही दूसरी तरफ उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में निवास करने वाले ग्रामीण मुलभुत सुविधाओं के लिए तरस रहे है, सडक के लिए तरस रहे है, पानी के लिए तरस रहे है, बिजली के लिए तरस रहे है, आवास के लिए तरस रहे है, चिकित्सा सुविधा के लिए तरस रहे है, स्कूली बच्चे स्कुल में शिक्षको के लिए तरस रहे है | परन्तु उन्हें आज तक कोई भी सुविधा नहीं मिल पा रही है | विडम्बना देखिये की बाघ के नाम पर 30 करोड़ खर्च कर दिए गए है परन्तु उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के ग्रामीणों को आज तक मुलभुत सुविधाये उपलब्ध नहीं कराया जा सका है |
इसी तरह का गंभीर मामला उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के जंगल के अंदर बसे नक्सल प्रभावित संवेदनशील ग्राम गरीबा – भूतबेडा मे देखने को मिला है | राज्य निर्माण के बाद पिछले 19 वर्षो मे जितना विकास यहां होना चाहिए था नहीं हो पाया है जिसका मलाल यहां के ग्रामीणों के चेहरे पर झलकती है, गांव के महादेव नेताम, बिमलेश्वरी मरकाम , जागो बाई मरकाम धनीराम मरकाम, जीवन मरकाम, अपने गांव की समस्या बताते हुए कहते है कई सरकारे बदली, कई विधायक बदले लेकिन गांव की हालत नहीं बदली आखिर प्रशासन हमारी सुध कब लेगा हमारे सांसद विधायक कब यहां पहुंचकर हमारे समस्याओं को सुनेगे, बिन्द्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्र के ग्राम भुतबेडा और गरीबा अंतिम छोर मे बसने वाले गांव है और यहां स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए लोगो को तरसना पड़ रहा है | वहा के ग्रामीण आजादी के 7 दशक बाद भी अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे है पर आज तक उन्हें मुलभुत सुविधाए नहीं मिल पाया है |
स्कुल नहीं होने से बच्चो को 30 किमी दूर पढ़ने जाना पड़ता है
संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण कोई आला अधिकारी भी दौरा नही करते है | भुतबेडा – गरीबा क्षेत्र के ग्रामो में हाईस्कूल नही होने के कारण यहा के छात्र छात्राओं को प्रतिदिन 30 किलोमीटर दूर सायकल के सहारे शोभा तक पढाई करने आना पडता है | सबसे ज्यादा परेशानी इन ठंड के दिनों में होती है शाम 4 बजे स्कूल के छुटटी होने पर घर पहुचने तक अंधेरा छा जाता है | लम्बे समय से भुतबेडा और गरीबा में हाईस्कूल की मांग किया जा रहा है परन्तु आज तक उनकी मांगे नहीं सुनी गयी है
आज तक नहीं लग पाई है बिजली, लालटेन के सहारे जीने मजबूर है ग्रामीण
छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के सीमा मे बसा गरियाबंद जिले के विकासखण्ड मैनपुर के अंतिम ग्राम भुतबेड़ा, गरीबा मे आज तक बिजली नहीं लगने से इन ग्रामो में शाम होते ही धुप्प अंधेरा छा जाता है | पुरा क्षेत्र अंधेरे के आगोश में समा जाता है आज भी 21वीं सदी मे यहां के लोगो को रात के अंधेरे को दूर करने के लिए लालटेन का सहारा लेना पड़ रहा है और इन लालटेनो मे रौशनी के लिए मीलो दूरी तय करने के बाद दो लीटर मिट्टी तेल नसीब होता है | इन अंतिम ग्रामो से उड़ीसा के ग्राम भी नजर आते है लेकिन उडीसा के उन ग्रामो मे बिजली चकाचक जलती नजर आती है परन्तु इनके गावो में अन्धेरा छाया होता है |
ग्रामीणों को नहीं मिलती सरकारी सुविधाए, ईलाज और राशन के लिए उड़ीसा पर रहते है निर्भर-
आलम यह है कि यहां के लोगो को स्वास्थय और राशन के लिए आज भी उड़ीसा पर निर्भर रहना पड़ता है, जिला गरियाबंद के आदिवासी विकासखंड मैनपुर के छत्तीसगढ़ उड़ीसा सीमा से लगे अतिसंवेदनशील क्षेत्रो मे शासन की जनकल्याणकारी योजनाओ का सफल क्रियान्वयन अधर मे पड़े गोते खा रहा है, एक ओर सरकार गांवों में विकास की रौशनी पहुंचाने अनेक योजनाएं संचालित कर रही हैं और सरकार द्वारा गांवों के विकास के बडे बडे दावे किये जाते हैं लेकिन वास्तव में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को शासन की योजनाओं का लाभ मिल पा रहा हैं या नहीं इसे देखने वाला कोई भी जिम्मेदार इस ओर झांकने तक नही आतें हैं |
नदियों में पुल नहीं होने से ग्रामीणों और स्कूली बच्चो को होती है परेशानी
अडगडी और जरहीडीह नदी मे पुल निर्माण नही होने के कारण आदिवासी क्षेत्र के स्कूली बच्चो को जान जोखिम मे डालकर स्कूल तक इन नदी नालो को पार कर पढाई करने आना मजबुरी बन गया है जरहीडीह अडगडी नदी में पुल निर्माण की मांग लम्बे समय से किया जा रहा है कोकडी के आगे बाघनाला में भी पुल नही होने के कारण इस क्षेत्र के हाईस्कूल ,मिडिल स्कूल के छात्र छात्राओ को इस नदी को पार कर स्कूल तक पहुचना पड रहा है |