प्रत्येक तल में द्वार के ऊपर द्वार और खिड़की के ऊपर खिड़की होना चाहिए : पं. देव नारायण शर्मा..
रायपुर–वास्तु शास्त्र के विभिन्न विद्वानों ने राजमहल ,मन्दिर के निर्माण में द्वार रचना के सम्बन्ध में अलग अलग विचार व्यक्त किये हैं ।
समरांगन सूत्रधार[३०.४५ १/२] में बहुमंजिला इमारतों के बारे में नियम है कि प्रत्येक तल में द्वार के ऊपर द्वार होना चाहिए !!
समरांगन सूत्रधार में १६ फ्लोर की जानकारी मिलती है ।
इतनी ऊँची भवन के निर्माण में उसकी आयु ,मजबूती के विषय को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक था ।
हजारों वर्ष पहले जब यह नियमावली बनी तब सारे निर्माण कार्यों में दीवालें पत्थर और ईटों से ही निर्मित होते थे ।
बहुमंजली इमारतों में हर फ्लोर में पत्थर के उपर पत्थर और दरवाजे के उपर दरवाजे होने से भवन ज्यादा मजबूत होता था !!
क्योंकि जिस स्थान पर दरवाजा होगा वह स्थान अन्य स्थान की अपेक्षा कमजोर होगा ।
इसलिए दरवाजे के उपर दीवाल होने से वह स्थान ज्यादा कमजोर होगा ।
इसलिए पत्थर और ईटों से बनने वाले इमारतों के लिए ऐसे नियम बनाने की आवश्यकता पड़ी होगी ।
लेकिन क्या यही नियम आज के परिपेक्ष्य में आवश्यक है —-?