मेरे देश की पहचान है हिंदी, आन बान और अभिमान है हिंदी ,जिला संवाददाता – उरेन्द्र कुमार साहू
रत्नांचल जिला साहित्य परिषद का काव्य गोष्ठी पांडुका में संपन्न।
पांडुका 14 सितंबर। स्थानीय श्रीचैतराम उधोराम झखमार साहित्य भवन में हिंदी दिवस के अवसर पर रत्नांचल जिला साहित्य परिषद के तत्वाधान में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता रत्नांचल जिला साहित्य परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार साहू ने की। इस मौके पर उपस्थित जिले भर के कवियों ने मां सरस्वती की छाया चित्र पर दीप प्रज्वलित कर पूजा अर्चना किया।
इस दरमियान सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क के साथ ही सैनिटाइजर का उपयोग किया गया। पूरी तरह से सावधानी बरतते हुए इस काव्य गोष्ठी का आगाज हुआ तथा अपने संबोधन में अध्यक्ष वीरेंद्र साहू ने कहा कि कई भाषा एवं बोलियों को मिलाकर हिंदी का निर्माण हुआ है।
हिंदी हिंदुस्तान की बिंदी है। भारत विविध भाषा भाषियों का देश है। भाषा देश व प्रदेश की पहचान होती है।
हिंदी के प्रति प्रेम यहां के लोगों में स्पष्ट दिखता है।
कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल ने कहा कि पूरे विश्व में 3000 से अधिक भाषाएं एवं बोलियां है हिंदी न सिर्फ भारत में बोली जाती है बल्कि विदेशों में भी अधिकारिक भाषा के रूप में इन्हें स्थान दिया गया है।
कई देश है पूरे विश्व में 80 करोड से भी अधिक लोग हिंदी बोलते समझते व सुनते हैं। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में हिंदी विश्व में चौथे नंबर पर आता है इन्हें अगले नंबर पर लाने के लिए हम सबको प्रयास करने की आवश्यकता है। स्थानीय भाषा एवं बोली के ऊपर तो ध्यान दे लेकिन अपनी राजभाषा हिंदी को आगे बढ़ाने में कवि, साहित्यकारों, पत्रकारों, लेखकों के अलावा स्थानीय लोगों को भी आगे आने की आवश्यकता है।
काव्य गोष्ठी का संचालन करते हुए कवि देवेंद्र ध्रुव ने शेरो शायरी से माहौल को जमाया। गीतकार कमलेश कौशिक कठलहा ने देशभक्ति का जज्बा जगाते हुए गीत प्रस्तुत किया।
पंक्ति देखिए- मिट्टी मेरे वतन की आबाद तू रहे, भूल जाऊं सारी दुनिया बस तू याद रहे।
पुरुषोत्तम चक्रधारी सूर्य ने भक्ति भावना से ओतप्रोत कविता पढ़कर रंग जमा दिया। उन्होंने कहा कि हे राम तेरे चरणो में थोड़ी सी जगह दे देना। फणेंद्र साहू मोदी ने हिंदी पर शानदार कविता पढ़ी।
उन्होंने कहा कि- मेरे देश की आन है हिंदी, मेरे देश की शान है हिंदी। मेरे देश की पहचान है, हिंदी मेरे देश की अभिमान है हिंदी। गणेश वंदना कवि संतोष व्यास ने करते हुए गणपति को बुद्धि का देवता बताया प्रस्तुत पंक्ति-हे बुद्धि के देवता गणेश, तुम हरो सबके क्लेश। कवि गोकुल साहू धनिक ने मां भारती की महिमा का गुणगान किया और कहा कि मां भारती का सिंगार है हिंदी। टीकमचंद दिवाकर ने मातृभाषा हिंदी के ऊपर कविता पढ़ते हुए शब्दों की बारीकियों को बताया- अ अनपढ़ से ज्ञ ज्ञानी बनाती है हिंदी, जीवन जीने की कला सिखाती है हिंदी।
साहित्य पर पंक्ति देते हुए नूतन लाल साहू ने रचना प्रस्तुत की। जग में सम्मान पाना है तो आ जाओ साहित्य के टच में, मीरा ने भी वीणा पकड़ा तो प्रसिद्ध हो गई सारे जग में। अमित कुमार ने हिंदी का मान बढ़ाने के लिए कहा कि- हिंदी से ही मान बना है हिंदी से पहचान, हिंदी से सम्मान पाया अपना हिंदुस्तान। महासचिव -शायर जितेंद्र सुकुमार साहिर के गजल ने काफी प्रभावित किया उन्होंने कोरोनावायरस के बढ़ते प्रभाव से लोगों में डर पैदा हुआ है जिसे उजागर करते हुए ऊंचाइयों प्रदान की पंक्ति है-किसके होठों पर हँसी है आजकल, सहमा सहमा आदमी है आजकल, दहशतों के शोर में खामोशी सी, जाने कितनी ज़िंदगी है आजकल। खेमराज साहू ने हिंदी पर ही कहा कि-हिंदी से हिंद की धारा बहती जाए, भाषाओं में ना जाए चलो साथियों हिंदी अपनाएं। राज साहू राजेश ने गजल सुनाएं और कहा कि- कत्ल ये सरेआम हो जाए, तेरे नहीं मेरे नाम हो जाए। पापी हो कंस जैसा तो कृष्ण मेरा नाम हो जाए। आभार प्रकट कवि पुरुषोत्तम चक्रधारी ने किया।