सरकार की वादाखिलाफी और न्यायालय के आदेशों की अनदेखी से नाराज़ D.Ed अभ्यर्थियों का प्रदर्शन तेज़, BJP कार्यशाला के दौरान गूंजे नारे

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सरकार की वादाखिलाफी और न्यायालय के आदेशों की अनदेखी से नाराज़ D.Ed अभ्यर्थियों का प्रदर्शन तेज़, BJP कार्यशाला के दौरान गूंजे नारे

सरकार की वादाखिलाफी और न्यायालय के आदेशों की अनदेखी से नाराज़ D.Ed अभ्यर्थियों का प्रदर्शन तेज़, BJP कार्यशाला के दौरान गूंजे नारे

 

रायपुर, छत्तीसगढ़
राजधानी रायपुर में मंगलवार को D.Ed (डिप्लोमा इन एजुकेशन) प्रशिक्षित अभ्यर्थियों ने भाजपा कार्यालय एकात्म परिसर का घेराव कर जोरदार प्रदर्शन किया। भाजपा की कार्यशाला के दौरान हुए इस प्रदर्शन में सैकड़ों अभ्यर्थी नौकरी की माँग को लेकर पहुंचे थे। प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने कार्यालय के मुख्य गेट पर ही रोक लिया, लेकिन उनके नारों और गुस्से ने सरकार की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

कोर्ट आदेश के बावजूद नियुक्ति नहीं

D.Ed अभ्यर्थियों की माँग है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिए थे कि उन्हें प्राथमिक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाए। बावजूद इसके सरकार केवल 1299 अभ्यर्थियों को ही नियुक्ति पत्र दे पाई है, जबकि 1316 पद अब भी खाली हैं। शेष अभ्यर्थी लगातार दर-दर भटक रहे हैं और आज़ीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

सरकार की नाकामी या जानबूझकर अनदेखी?

एक ओर सरकार बेरोज़गारी को लेकर आंकड़ों की बाज़ीगरी करती है, वहीं दूसरी ओर योग्य और कोर्ट-मान्य अभ्यर्थियों को जानबूझकर नज़रअंदाज़ कर रही है। सवाल उठता है कि आखिर जब न्यायालय का स्पष्ट आदेश मौजूद है, तो फिर इन अभ्यर्थियों को अब तक नियुक्ति क्यों नहीं दी गई?

अभ्यर्थियों की पीड़ा: “हम कब तक इंतज़ार करें?”

प्रदर्शन में शामिल एक अभ्यर्थी ने कहा,
“हमने सरकार के सभी नियमों का पालन किया, परीक्षाएं पास कीं, कोर्ट में न्याय मिला, फिर भी नौकरी नहीं। हम कब तक इंतज़ार करें? आखिर हमारी गलती क्या है?”

सत्ता में वापसी के बाद भी बदले नहीं हालात

भाजपा की सत्ता में वापसी के बाद D.Ed अभ्यर्थियों को उम्मीद थी कि अब उन्हें न्याय मिलेगा। लेकिन बीते महीनों में स्थिति जस की तस बनी हुई है। अभ्यर्थियों का कहना है कि केवल घोषणाएं और कार्यशालाएं करने से कुछ नहीं होगा, जब तक ज़मीनी स्तर पर नियुक्ति नहीं दी जाती।

 

D.Ed अभ्यर्थियों का यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ एक नियुक्ति की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह सरकार की संवेदनहीनता और न्यायालय के आदेशों की अनदेखी के खिलाफ आवाज़ है। जब योग्य युवा, न्याय मिलने के बाद भी नौकरी से वंचित रहें, तो यह केवल बेरोज़गारी नहीं बल्कि व्यवस्था की विफलता का संकेत है।

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