आदि शंकराचार्य के संविधान के अनुसार कोई स्त्री शंकराचार्य नहीं बन सकती :- स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती।।
आदि शंकराचार्य के संविधान के अनुसार कोई स्त्री शंकराचार्य नहीं बन सकती :- स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती।।
खबरीलाल की बड़ी खबर (वृंदावन) ::-
नेपाल में पाशुपतक्षेत्र में स्थित शंकराचार्य मठ के संरक्षक स्वामी रमणानन्द गिरि जी महाराज ने ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज को पत्र लिख कर यह अवगत कराया कि नेपाल में हेमानन्द गिरि नामक महिला के द्वारा स्वयं को ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के लिए मनोनीत होने की बात प्रसारित करना और वर्तमान में अखिल भारतीय विद्वत परिषद नामक संस्था के द्वारा जगद्गुरु शंकराचार्य व पशुपतिमठाधीश के रूप में सम्मान किया हुआ पत्र दिखाकर स्वयं को शंकराचार्य घोषित करने से जनसाधारण में भ्रम फैल रहा है , जब कि नेपाल में पशुपति मठ नामकी कोई संस्था आज दिनांक तक नहीं है। इस अनाधिकृत कार्य से शंकराचार्य परंपरा के अनुयायी हम साधु सन्यासी एवं सनातन धर्मानुरागी आश्चर्यचकित है। स्वामी रमणानन्द गिरि ने द्विपीठाधीश जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज से पूछा है कि -” क्या भगवत्पाद श्रीशंकराचार्य के द्वारा स्थापित पीठों के अलावा नवीन पीठ व नवीन शंकराचार्य की घोषणा हो सकती है ? ” स्वामी
रमणानन्द गिरि जी ने ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज से उक्त विषय पर निर्णय प्रकाशित करने तथा जनमानस का भ्रम निवारित करने हेतु आग्रह किया। स्वामी रमणानन्द गिरि के पत्र को संज्ञान में लेते हुए परम्पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपने वक्तव्य में कहा – ” आदि शंकराचार्य ने जिन चार मठों की स्थापना की है उन्ही चार मठों के आचार्य शंकराचार्य कहे जा सकते हैं। नेपाल में किसी मठ की स्थापना आदि शंकराचार्य जी ने नहीं की है। उन्होंने उत्तर में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, पूर्व में गोवर्धन मठ एवं पश्चिम में द्वारका शारदा मठ स्थापित किया है । नेपाल में कोई मठ स्थापित किया ही नहीं है। दूसरी चीज यह है कि चारपीठ का एक संविधान है जिसका नाम मठाम्नाय महानुशासन है , उसमें यह कहा गया है कि जो शुचि, जितेंद्रिय, विद्वान ब्राह्मण सन्यासी है वह मेरे पीठ पर बैठेगा। स्त्री के सन्यासी होने का कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि शास्त्र ऐसी आज्ञा नहीं देता है। कुछ लोग इसको इस रूप में मोड़ना चाहते हैं कि शंकराचार्य स्त्री विरोधी हैं पर ऐसा नहीं है ! यह पद कोई लाभ का पद नहीं है शंकराचार्य एक दायित्त्व है जिसका निर्वाह करना है, भ्रमण करते रहना है, वेद वेदांत का ज्ञान प्राप्त करना है और केवल भिक्षा मांग कर ही खाना होता है। कोई नियम इसके लिए लेता नहीं है, लाभ का पद कैसे हो गया। स्वामी रमणानन्द गिरि ने उक्त महिला के बारे में लिखा है कि उन्हें ब्रह्माकुमारी और राधास्वामी का समर्थन प्राप्त है। वे तो वेद शास्त्र मानते नहीं हैं। यह सब सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए साजिश के तहत किया जा रही है।