कुसंग से बचने के लिए सत्संग करना चाहिए : स्वरूपानंद सरस्वती।।
कुसंग से बचने के लिए सत्संग करना चाहिए : स्वरूपानंद सरस्वती।।
वृंदावन के उड़िया बाबा आश्रम में आयोजित ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज के 68 वें चातुर्मास्य व्रत अनुष्ठान में आयोजित सत्संग में पूज्य महाराजश्री ने उपस्थित भक्तों से कहा कि ” कुसंग से बचने के लिए सत्संग करना चाहिए” । सत्संग से ही मन में जमे हुए मेल, शंका दूर होते हैं और व्यक्ति ज्ञान अर्जित कर अपने बुद्धि से सफलता की ओर अग्रसित होते हैं। आज के सत्संग में सैंकड़ों भक्तों की उपस्थिति में पूज्य महाराजश्री का चरण पादुका का पूजन भक्तों ने किया और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। पूज्य महाराजश्री ने अपने आशीर्वचन में प्रत्येक भक्तों के उद्देश्य से कहा कि गुरु की सेवा के साथ साथ सत्संग करना चाहिए, इससे मन मे न तो मैल जमती है, न शंका उत्पन्न होती है और न ही ईर्ष्या द्वेष की भावना जागृत होती है। साथ ही उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपने पद, पैसे आदि की घमंड कदापि नहीं करना चाहिए इससे व्यक्ति अकेला हो जाता है और वही घमंड, अहम उन्हें नीचे ला देती है।
पूज्य महाराजश्री ने एक कहानी सुनाई जिसमे एक चोर अपने चार पुत्रों से कहता है कि कभी सत्संग में नहीं जाना और यदि किसी सत्संग वाली जगह से गुजरते हो तो कानों में उंगली डाल लेना, पर सत्संग नहीं सुन्ना। एक दिन एक स्त्री काली के भेष में उन चोरों के घर गई और उनसे कुछ कह। काली के रौद्र रूप को देखकर सभी भयभीत हो गए पर छोटे पुत्र ने तलवार निकली और काली की ओर मारने दौड़े जिसे देखते हुए काली की भेष वाली स्त्री भाग निकली जिससे उसके नकली हाथ, दांत आदि इधर उधर गिर गए। जब चोर के पिता ने पूछा कि तुम्हे कैसे मालूम पड़ा कि वो बहरूपिया है तब उनके छोटे पुत्र ने कहा कि मैं एक दिन एक सत्संग वाली जगह से गुजर रहा था कानों को बंद करके, पर जब प्यास लगी तो कान से हाथ हटाया, तब एक वाणी कानों में आई कि भगवान की कभी छाया नहीं पड़ती और यही बात हमको याद थी जिससे पता चला कि ये बहरूपिया है जो काली के भेष में आई थी।
इसलिए हमेशा सत्संग करना चाहिए और अपने गुरु की बातों को मानकर चलना चाहिए क्यों कि गुरु ही व्यक्ति को सही रास्ता दिखाते हैं और व्यक्ति बिना किसी शंका से प्रसन्नचित रहता हैं।