इजरायल-हमास जंग में भी लाभ देख रहे पुतिन,रूस के लिए आपदा में क्या अवसर

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मॉस्को

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दोस्ती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रही है। उनकी दोस्ती के कई किस्से भी चर्चा में रहे हैं लेकिन हमास-इजरायल युद्ध में दो खेमों में बंटी दुनिया ने रूस को इजरायल के खिलाफ रुख करने को विवश कर दिया। इसका नजारा तब देखने को मिला, जब 7 अक्टूबर को हमास के लड़ाकों ने इजरायल पर आतंकी हमला किया और 1400 लोगों की जान ले ली। रूस ने इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया देने में जल्दबाजी नहीं कि लेकिन जैसे ही इजरायल ने गाजा पर जवाबी हमले शुरू किए रूस ने बिना वक्त गंवाए इजरायली कार्रवाई की कड़ी आलोचना कर दी।

खुद को दोनों पक्षों का हितैषी बता रहा रूस
हमास-इजरायल युद्ध में रूस फिलिस्तीनियों यानी हमास शासित गाजा के साथ दिख रहा है लेकिन वह खुद को दोनों पक्षों के प्रति संतुलित बता रहा है। रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव के दौरान गाजा पट्टी में मानवीय संकट को देखते हुए युद्ध विराम और इजरायली बंधकों की तुरंत रिहाई की वकालत की है। इतना ही नहीं रूस मौजूदा संकट के लिए वाशिंगटन को भी जिम्मेदार ठहरा रहा है।

रूस अमेरिका पर युद्ध को और भड़काने का भी आरोप लगा रहा है क्योंकि अमेरिका ने भू मध्यसागर और आसपास बड़ा सैन्य बेड़ा तैनात कर दिया है और चारों तरफ से इजरायल के लिए सुरक्षा कवच तैयार कर रखा है। अमेरिका ने इस जंग के बीच ही सीरिया और लेबनान पर एयरस्ट्राइक भी की है। इजरायल और रूस के बीच रिश्तों में खटास तब और ज्यादा बढ़ गई, जब रूस की राजधानी मास्को में पिछले दिनों हमास के नेताओं ने ईरान के साथ बैठक की।

आपदा में अवसर तलाश रहे पुतिन
चूँकि मिडिल-ईस्ट में तनाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। ऐसे में रूस को इस बात की संभावना कम ही दिखती है कि इजरायल-हमास संघर्ष धीमा होगा या जल्द खत्म होगा। रूस को यह भी आभास है कि अगर इजरायल-हमास जंग लंबी खिंची तो अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का झुकाव यूक्रेन-रूस युद्ध से हटकर नई जंग पर होगा। पुतिन यह भी जान रहे हैं कि ऐसी सूरत में पश्चिमी देश यूक्रेन को हथियार और अन्य मदद देने में कटौती करेंगे, जबकि इजरायल को मदद में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इजरायल-हमास संघर्ष से रूस कई मोर्चों पर लाभ उठा सकता है।

यूक्रेन में युद्ध के मोर्चे पर बढ़त 
रूसी सेना भले ही यूक्रेन में भीषण लड़ाई में फंसी हुई है,लेकिन क्रेमलिन के प्रचारक इस उम्मीद में खुश हैं कि मध्य पूर्व में अशांति की वजह से पश्चिमी देश अब यूक्रेन से अपना समर्थन हटाकर इजरायल की तरफ शिफ्ट करेंगे। इस रणनीतिक बदलाव से रूसी सेना के लिए यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर अपना क्षेत्रीय नियंत्रण मजबूत करने में आसानी होगी।  इसके अलावा मीडिया का फोकस यूक्रेन युद्ध की बजाय इजरायल-हमास युद्ध पर होगा। इससे हथियारों की खीद-बिक्री में भी फेरबदल होने की संभावना है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी आरोप लगाए गए हैं कि रूस हमास को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है।

पश्चिमी देशों में हथियार का संकट
अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने कथित तौर पर इजरायल को हजारों 155 मिमी तोपखाने के गोले भेजने का फैसला किया है। मूल रूप से इसकी आपूर्ति पहले यूक्रेन के लिए तय थी लेकिन वह शिपमेंट अब इजरायल भेजा जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि पश्चिमी देशों में पहले से ही तोपखाने, गोला-बारूद और अन्य हथियारों की सप्लाई की कमी चल रही थी। नई जंग के बाद उसमें और कमी आ सकती है।

हालांकि, पेंटागन के अधिकारियों ने जोर देकर कहा है कि वे एक ही समय पर यूक्रेन और इज़राइल दोनों को हथियारों की सप्लाई करने में सक्षम होंगे। 11 अक्टूबर को अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने ब्रुसेल्स में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, “हम दोनों कर सकते हैं और हम दोनों को सप्लाई करेंगे।”

युद्ध के मोर्चे पर सैनिक
रूसी राष्ट्रपति यह भी आंकलन कर रहे हैं कि अगर मिडिल-ईस्ट में तनाव बढ़ा तो अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश मिडिल-ईस्ट में सेना भेज सकते हैं। इससे यूक्रेन संग युद्ध के मैदान में उसकी निर्णायक बढ़त हो सकती है। हालांकि, रूसी राष्ट्रपति अपने मित्र बेंजामिन नेतन्याहू का इसके लिए भी शुक्रगुजार होना चाहिए कि पश्चिमी देशों के साथ होने के बावजूद इजरायल ने यूक्रेन युद्ध में रूस के खिलाफ कोई बड़ा कदम नहीं उठाया और ना ही वहां सैनिक भेजे हैं।

तेल का खेल
यूक्रेन युद्ध और मिडिल-ईस्ट में लंबा खिंचने जा रहे संघर्ष के मद्देनजर पुतिन की नजर तेल के खेल पर भी टिकी है, जिसका मार्जिन और लाभ वह पहले ही ओपेक देशों के साथ रणनीति बनाकर उठा चुके हैं। पुतिन अरब देशों के साथ इस योजना पर भी काम कर रहे हैं कि अगर इजरायल-हमास जंग लंबी खिंची तो क्रूड ऑयल के उत्पादन पर फिर से कंट्रोल कर पश्चिमी देशों का दिवाला निकाला जा सकता है। सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, रूस, लीबिया बड़े तेल उत्पादक देश हैं जो मौजूदा तनाव के दौर में अमेरिका-इजरायल गठजोड़ के खिलाफ हैं।

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