सुप्रीम कोर्ट से PFI को झटका, बैन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
नईदिल्ली
UAPA के तहत प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. शीर्ष न्यायालय ने पीएफआई की याचिका सुनने से इनकार कर दिया है. PFI ने याचिका में बैन को चुनौती देने का काम किया था. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनने से इनकार करते हुए कहा कि यह मामला पहले हाई कोर्ट में जाना चाहिए था.
पीएफआई को हाई कोर्ट जाने की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ (पीएफआई) पर लगाए गए प्रतिबंध की पुष्टि करने संबंधी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ पहले हाई कोर्ट जाना पीएफआई के लिए उचित होगा. पीएफआई की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कोर्ट के इस विचार से सहमति व्यक्त की कि संगठन को पहले होई कोर्ट का रुख करना चाहिए था और फिर शीर्ष अदालत के पास आना चाहिए था. इसके बाद पीठ ने याचिका खारिज कर दी, लेकिन पीएफआई को हाई कोर्ट जाने की अनुमति दे दी.
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संगठन को पहले संबंधित उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए। पीएफआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान भी इस पर अपनी सहमति जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मार्च में पारित यूएपीए ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ प्रतिबंधित संगठन की अपील पर सुनवाई कर रही थी। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था।
केंद्र सरकार ने 28 सितंबर, 2022 को यूएपीए की धारा 3 के तहत पीएफआई को एक गैरकानूनी संगठन घोषित किया था। संगठन पर ‘गैरकानूनी गतिविधियों’ में शामिल होने का आरोप लगाया गया था, जो देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए खतरा है।
यूएपीए में प्रावधान है कि ऐसा कोई प्रतिबंध तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि यूएपीए ट्रिब्यूनल द्वारा अधिनियम की धारा 4 के तहत पारित आदेश द्वारा इसकी पुष्टि नहीं की जाती है। अक्टूबर 2022 में केंद्र ने प्रतिबंध की समीक्षा के लिए यूएपीए ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति शर्मा की नियुक्ति को अधिसूचित किया था।
PFI पर क्या आरोप हैं?
पीएफआई एक कट्टरपंथी संगठन है। 2017 में NIA ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। NIA जांच में इस संगठन के कथित रूप से हिंसक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के बात आई थी। NIA के डोजियर के मुताबिक, यह संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। यह संगठन मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करता है। एनआईए ने पीएफआई पर हथियार चलाने के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं यह संगठन युवाओं को कट्टर बनाकर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए भी उकसाता है।
PFI क्या है?
साल 2007 में तीन मुस्लिम संगठनों के विलय से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जन्म हुआ था। वह तीन संगठन हैं- नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (केरल) कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और मनिथा नीति पासराई (तमिलनाडु)।
तीनों संगठनों को एक साथ लाने का निर्णय नवंबर 2006 में केरल के कोझीकोड में एक बैठक में लिया गया था। PFI के गठन की औपचारिक घोषणा 16 फरवरी, 2007 को बेंगलुरु में “एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस” के दौरान एक रैली में की गई थी। PFI खुद को NGO बताता है।
स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर प्रतिबंध के बाद उभरे पीएफआई ने खुद को एक ऐसे संगठन के रूप में पेश किया, जो अल्पसंख्यकों, दलितों और हाशिए के समुदायों के अधिकारों के लिए लड़ता है। इसने कर्नाटक में कांग्रेस, भाजपा और जेडी-एस की कथित जनविरोधी नीतियों को अक्सर निशाना बनाया। जबकि इन मुख्यधारा की पार्टियों ने एक दूसरे पर उस समय मुसलमानों का समर्थन हासिल करने के लिए पीएफआई से हाथ मिलाने का आरोप लगाया
पीएफआई खुद कभी चुनाव नहीं लड़ा है। यह संगठन खुद को मुसलमानों के बीच कुछ उसी तरह के कार्य करते दिखाता है, जैसे हिंदू समुदाय के बीच आरएसएस और वीएचपी जैसे दक्षिणपंथी संगठन करते हैं। पीएफआई मुसलमानों के बीच सामाजिक और धार्मिक कार्यों पर जोर देता है। यह संगठन अपने सदस्यों का रिकॉर्ड नहीं रखता। हालांकि 20 राज्यों में इसकी यूनिट है। पहले इसका मुख्यालय केरल के कोझिकोड में था। अब दिल्ली में है।
2009 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) नाम का एक राजनीतिक संगठन मुसलमानों, दलितों और अन्य हाशिए के समुदायों के राजनीतिक मुद्दों को उठाने के उद्देश्य से PFI से बाहर निकला था। SDPI का घोषित लक्ष्य मुसलमानों, ”दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों सहित सभी नागरिकों की उन्नति और विकास है।” SDPI की राजनीतिक गतिविधियों के लिए PFI जमीनी कार्यकर्ता प्रदान करता है।
PFI को कैसे मिलता है फंड?
पिछले साल फरवरी में ईडी ने PFI और इसकी स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) के पांच सदस्यों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में चार्जशीट दायर की थी। ईडी की जांच में पता चला था कि PFI का राष्ट्रीय महासचिव के ए रऊफ गल्फ देशों में बिजनेस डील की आड़ में पीएफआई के लिए फंड इकट्ठा करता था। ये पैसे अलग-अलग जरिए से पीएफआई और CFI से जुड़े लोगों तक पहुंचाए गए।