ग्राम अमलीपदर श्री जगन्नाथ मंदिर में हरितालिका तीज त्यौहार धूमधाम से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजन अर्चन कर के संपन्न हुई संवाददाता कृष्ण कुमार त्रिपाठी

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ग्राम अमलीपदर श्री जगन्नाथ मंदिर में हरितालिका तीज त्यौहार धूमधाम से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजन अर्चन कर के संपन्न हुई संवाददाता कृष्ण कुमार त्रिपाठी सुहागिन स्त्रियों एवं ग्राम के नागरिक ग्राम अमलीपदर में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में आज हर्षोल्लास के साथ हरि तालिका तीज पर्व मनाया गया यह त्यौहार भाद्र मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को तीज पर्व के नाम से जाना जाता है

इस त्यौहार में सुहागिन स्त्रियों के लिए मायके से सोलह सिंगार वस्त्र आदि उपहार मिलता है एवं सुहागिन स्त्री सोलह सिंगार करके भगवान शिव पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं इस त्यौहार की महिमा यह है कि पति की दीर्घायु की कामना संतान की कामना एवं कुंवारी कन्या अच्छे पति प्राप्त हेतु यह व्रत करते हैं इसमें त्यौहार में महिलाएं निर्जला उपवास रह कर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं शिव महापुराण के अनुसार से यह त्यौहार विशेषकर समस्त मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया गया है इसमें भगवान शिव की माता पार्वती एवं गौरी पुत्र श्री गणेश जी की पार्थिव मूर्ति निर्मित होती है भगवान श्रीगणेश को दूर्वा एवं पूजन की सामग्री भेंट करके भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती के मंडप में बेलपत्र आम पत्र केला पत्र जाम पत्र इस प्रकार पंच पल्लव से सुशोभित भगवान का मंडप होता है जहां भगवान शिव और माता पार्वती विराजमान होते हैं भक्तों श्रद्धालुओं एवं माताएं अपने दिन भर की उपवास रख कर के निर्जला निराहार रह कर के भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं

श्री जगन्नाथ मंदिर में हो रहे तीज त्यौहार आयोजन में श्री मंदिर के आचार्य पंडित युवराज पांडेय जी ने बताया यह भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की विवाह की प्रसंग सुनाई जाती है पूर्व में माता की पूर्व जन्म प्रजापति दक्ष के यहां माता की सती रूप में अवतरण हुआ था पिता के यज्ञ में माता ने अपना देह त्याग करके पुनः पर्वतराज हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया था ‌ पर्वतराज हिमालय की एवं उनकी पत्नी मैना द्वारा तपस्या करने पश्चात आदिशक्ति के आशीर्वाद स्वरुप मैना रानी को माता के वरदान स्वरूप पार्वती रूप में माता का जन्म हुआ बाल्यकाल से ही भगवान शिव के प्रति एक अलग ही लगाव था माता पार्वती को देव ऋषि नारद के द्वारा दिए गए ज्ञान से माता पार्वती भगवान शिव को मनाने लगी एवं 12 वर्ष तक कठोर नियम का पालन करके अत्यंत ही कठोर तपस्या की एवं माता ने भगवान शिव की आराधना करते करते बिल्वपत्र का भी ग्रहण किया था जिसके नाम से माता का एक नाम अपर्णा भी पड़ा माता ने ग्रीष्म ऋतु में धूप वर्षा में जल एवं ठंड में ठंड को सहकर के निरंतर तब करते रहे जिसमे सप्त ऋषि ने आकर के माता की परीक्षा ली जिसमें माता सफल हुई और तत्पश्चात भगवान शिव ने प्रकट होकर के उन्हें निश्चित भर दिया और वर्ग के स्वरूप में माता पार्वती ने भगवान शिव को ही वर्ण किया और हिमालय राजा और मैना रानी की राजदुलारी माता पार्वती की भगवान शिव से धूमधाम से विवाह हुआ इस प्रकार शिव महापुराण कथा आचार्य श्री युवराज पांडेय जी ने सभी भक्तजनों को सुनाया मंदिर परिसर में सभी ने श्रद्धा और भक्ति पूर्वक कथा श्रवण किया और भगवान शिव और माता पार्वती से लोक कल्याण जन कल्याण हेतु प्रार्थना की

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