निठारी हत्याकांड: 17 साल बाद रिहा हुआ मोनिंदर सिंह पंढेर, जेल से निकलते ही जोड़े हाथ, लेने नहीं आया परिवार
नई दिल्ली
निठारी हत्याकांड के आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर को शुक्रवार को ग्रेटर नोएडा की लुक्सर जेल से रिहा कर दिया गया। इस मामले में पंढेर को तीन दिन पहले हाई कोर्ट ने बरी किया था। पंढेर के परिवार के लोग रिहाई कराने नहीं आए। बताया जा रहा है कि वह अब पंजाब में जाकर रहेगा। जेल से रिहा होने के बाद 65 वर्षीय कारोबारी पंढेर एक गाड़ी में बैठा और बिना किसी से बात किए चला गया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को पंढेर और उसके घरेलू सहायक सुरेंद्र कोली को 2006 के सनसनीखेज मामले में यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा और इससे जांच में गड़बड़ हुई।
इससे पहले, दिन में लुक्सर जेल अधीक्षक अरुण प्रताप सिंह ने बताया था,आज हमें अदालत से दूसरा आदेश (पंढेर की रिहाई से संबंधित) प्राप्त हुआ है। उचित औपचारिकताओं के बाद दोपहर तक उसे रिहा कर दिया जाएगा। मुख्य आरोपी कोली अभी भी गाजियाबाद के डासना जेल में बंद है। वह 14 वर्षीय लड़की की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काटेगा।
पंढेर और कोली पर बलात्कार तथा हत्या के आरोप लगाए थे। नोएडा के निठारी में हुई हत्याओं में दोनों को मौत की सजा सुनाई गयी थी। यौन उत्पीड़न, क्रूर हत्या और संभावित नरभक्षण के संकेतों वाले निठारी हत्याकांड ने पूरे देश हैरान कर दिया था। यह सनसनीखेज मामला उस समय प्रकाश में आया था जब 29 दिसंबर, 2006 को राष्ट्रीय राजधानी से सटे नोएडा के निठारी में पंढेर के मकान के पीछे ड्रेन में कुछ कंकाल पाए गए। कोली पंढेर का नौकर था। पंढेर के मकान के आसपास के क्षेत्र में ड्रेन में तलाशी के बाद और कंकाल पाए गए। इनमें से ज्यादातर कंकाल गरीब बच्चों और युवतियों के थे जो उस इलाके से लापता थे। दस दिनों के भीतर सीबीआई ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ले ली और उसे खोज के दौरान और अस्थियां मिली थीं।
नोएडा में निठारी गांव के 17 वर्ष पुराने जिस जघन्य कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था, उसके अभियुक्तों मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरेंद्र कोली को सजा दिलाने में अभियोजन नाकामयाब रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को दोनों को निर्दोष करार देते हुए सीबीआइ कोर्ट गाजियाबाद द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा को रद कर दिया। सीबीआई कोर्ट ने पंधेर को दो और कोली को 12 मामलों में फांसी की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि किसी अन्य मामले में वांछित न हों तो दोनों अभियुक्तों को रिहा किया जाए। हाई कोर्ट ने 2010 से 2023 तक चली 134 सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है।
जज अश्वनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति एसएचए रिजवी की खंडपीठ ने फैसला 14 सितंबर को सुरक्षित कर लिया था। सीबीआइ के अधिवक्ता का कहना है कि निर्णय का अध्ययन करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की जा सकती है। यह फैसला इस वजह से ऐतिहासिक कहा जा रहा है कि एक साथ 12 अपराधों में मिली फांसी की सजा हाई कोर्ट ने पहली बार रद की है।