इजरायल अब हिजबुल्ला को लगाएगा ठिकाने, निशाने पर लेबनान
तेलअवीव
इजरायल जिस तरह से अपनी फौज उत्तर की दिशा की ओर भेज रहा है, लेबनान पर खतरा बढ़ता जा रहा है. इरान समर्थित आतंकी संगठन हिजबुल्ला ने यहीं अपना ठिकाना बनाया हुआ है. हमास के हमले को कवर देने के लिए हिजबुल्ला ने उत्तरी इजरायल पर कुछ रॉकेट दागे हैं, और यहीं उसने भूल कर दी है.
हिज़्बुल्लाह एक लेबनानी शिया लड़ाकों का संगठन है, जिसे इजरायल और अधिकांश पश्चिमी देशों ने आतंकवादी समूह मानते हैं और इस संगठन पर रोक लगाई हुई है. लेकिन ईरान इसका खुलकर समर्थन करता है. 1982 में दक्षिणी लेबनान पर इजरायल के कब्ज़े के ख़िलाफ़ लड़ने वाली फ़ोर्स के रूप में इसकी स्थापना की गई थी. ईरान समर्थित यह समूह यहूदी राज्य के विनाश के लिए प्रतिबद्ध है.इसलिए आज इज़रायल के लिए सबसे गंभीर खतरा बना हुआ है.
1-इजरायल को हमास के बाद सबसे ज्यादा खतरा हिजबुल्ला
हिजबुल्ला भले ही एक लड़ाकों का संगठन है पर अपने रॉकेटों के विशाल शस्त्रागार और पड़ोसी सीरिया के गृहयुद्ध में युद्ध का अनुभव प्राप्त करने वाले हजारों अनुभवी लड़ाकों के चलते वह किसी देश की आर्मी से कम ताकतवर नहीं है. यही कारण है कि हिजबुल्ला को लंबे समय से इज़रायल एक दुर्जेय लड़ाकू शक्ति के रूप में देखता है. दक्षिणी लेबनान पर इजरायली कब्जे से लड़ने के लिए 1982 में स्थापित, हिजबुल्ला एक शक्तिशाली संगठन बन चुका है. जिसके नेता हसन नसरल्लाह ने इस आतंकी संगठन को देश के अंदर एक प्रभावशाली राजनीतिक ताकत का चोला भी पहना दिया.
इजरायली डिफेंस फोर्सेस का मानना रहा है कि हिजबुल्ला को करीब 70 करोड़ डॉलर से ज्यादा का फंड हर साल मिलता है. इसका सबसे बड़ा हिस्सा ईरान से आता है. ईरान इसे केवल फंड नहीं देता बल्कि ट्रेनिंग से लेकर , हथियार और खुफिया जानकारी भी देता है. इजरायल का दावा है कि हिजबुल्ला के शस्त्रागार में 120000 से 130000 मिसाइलें हैं. इनमें कुछ लंबी दूरी की मिसाइलें भी शामिल हैं, जो पूरे इजरायल तक मार करने में सक्षम हैं. हिजबुल्लाह के पास किसी संप्रभु राष्ट्र की तरह एंटी टैंक मिसाइलें, दर्जनों ड्रोन, एंटी शिप मिसाइल, एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल और एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम भी मौजूद हैं.
2-इजरायल को दुनिया के नक्शे से मिटाने की ईरान की कसम
हिजबुल्ला को समझने के लिए लेबनान के इतिहास पर एक नजर जरूरी है. लेबनान में हुए एक समझौते के अनुसार देश की सत्ता जिसकी जितनी आबादी -उसकी उतनी हिस्सेदारी के आधार पर धार्मिक गुटों बांटा गया. इस समझौते के अनुसार एक सुन्नी मुसलमान ही प्रधानमंत्री बन सकता है, राष्ट्रपति के लिए ईसाई और संसद के स्पीकर के शिया मुसलमान तय किया गया है. लेकिन यह धार्मिक संतुलन बहुत लंबे वक्त तक कायम नहीं रह पाया. फिलिस्तीनियों के लेबनान में बसने के बाद देश में सुन्नी मुसलामानों की संख्या बढ़ गई. ईसाई अल्पसंख्यक चूंकि सत्ता में थे इसलिए उन्हें अपने हाशिए पर जाने का डर नहीं था.पर शिया मुसलामानों को अपने सताए जाने का डर सताने लगा. 1975 में देश में गृह युद्ध छिड़ने का शायद यही कारण रहा.
इसी बीच इजरायल ने 1978 में लेबनान के दक्षिणी हिस्से पर कब्जा कर लिया.दरअसल फिलिस्तीन के लड़ाके इस इलाके का इस्तेमाल इजरायल के खिलाफ हमले के लिए कर रहे थे. इस बीच ईरान को भी मध्य पूर्व में अपना दबदबा बढ़ाने का मौका दिखने लगा. ईरान ने शिया मुसलमानों के डर को कैश करना शुरू किया.1982 में लेबनान में हिजबुल्लाह नाम का एक शिया संगठन बना जिसका मतलब था "अल्लाह की पार्टी". ईरान ने इसे इजरायल के खिलाफ आर्थिक मदद देना शुरू किया.
1985 तक हिजबुल्ला एक ताकतवर संगठन बन चुका था. इसने घोषणापत्र जारी करके लेबनान से सभी पश्चिमी ताकतों को बाहर निकालने की धमकी दे दी. तब तक यह फ्रांस- अमेरिका के सैनिकों और दूतावास पर कई हमले भी कर हिजबुल्ला कुख्यात हो चुका था. घोषणा पत्र में अमेरिका और सोवियत संघ दोनों को इस्लाम का दुश्मन बताया गया था. इसी घोषणापत्र में इजरायल की तबाही और ईरान के सर्वोच्च नेता की ओर वफादारी की बात भी कही गई. इसके साथ ही हिजबुल्लाह ने यह भी कहा कि लेबनान के लोगों पर ईरान का शासन नहीं चलेगा.
3-लेबनान में इस समय अराजकता का माहौल है, ऐसे में वहां आतंकियों की मौज है
लेबनान इस समय भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रहा है. भयंकर महंगाई के चलते देश में करीब 80 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे आ गए हैं. राजनीतिक अस्थिरता का भी देश शिकार है. काफी समय तक राष्ट्रपति का पद का चुनाव नहीं किया जा सका. ये सब स्थितियां इजरायली हमले के लिए माकूल माहौल दे रही हैं.
अल जजीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार हमास के इज़राइल पर अटैक के बाद से लेबनान के निवासी घबराहट में हैं उन्हें लगता है कि एक बार फिर उनका देश युद्ध की विभीषिका झेलने वाला है.केवल 6 मिलियन लोगों का छोटा सा देश.पहले से ही एक ऐतिहासिक आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. ईरान समर्थित संगठन हिजबुल्ला ने सोमवार को देश को बताया कि इजरायली गोलाबारी में हिजबुल्लाह के तीन सदस्य मारे गए. दक्षिणी लेबनान में एक इज़रायली डिप्टी कमांडर और दो फ़िलिस्तीनी लड़ाके भी मारे गए हैं.
अगले दिन हिजबुल्लाह ने भी एक इजरायली सैन्य वाहन पर एक गाइडेड मिसाइल दागी.तो इज़राइल ने जवाबी कार्रवाई में हिज़्बुल्लाह निगरानी चौकी पर हमला किया .हिंसा बढ़ने के चलते सैकड़ों लेबनानी लोग अपने घरों में सिमट गए हैं या बेरूत के दक्षिणी उपनगरों की ओर भाग रहे हैं.
जैसा कि इजरायली सेना ने हमास के अटैक के बाद दक्षिणी शहरों को सुरक्षित कर लिया है और गाजा के साथ सीमा पर सेना इकट्ठा कर रहा है. इजरायल का ध्यान लेबनान के साथ देश की अस्थिर उत्तरी सीमा पर भी जा रहा है, जहां इजरायली सेना सशस्त्र बलों के साथ लगातार लगी हुई है.
लेबनान की आर्थिक स्थिति से निराशा के कारण कुछ लेबनानी सोच रहे हैं कि चीजें इससे ज्यादा बदतर नहीं हो सकतीं. 2021 में, विश्व बैंक ने लेबनान के आर्थिक विस्फोट को 19वीं सदी के बाद से सबसे खराब संकटों में से एक के रूप में बताया था. 2020 में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा कि महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों का विरोध करने वाले लेबनान के राजनीतिक वर्ग के पीछे "निहित स्वार्थ" थे. 2019 के बाद से, लेबनान की मुद्रा का मूल्य लगभग 98 प्रतिशत कम हो गया है, जबकि इसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है.
4-लेबनान के मूल निवासी भी चाहते हैं इस्लामिक आतंकवाद से मुक्ति
लेबनान में कट्टरपंथी शिया संगठन हिज्बुल्ला के दखल ने पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल कर दिया है. अपने बाहुबल और धार्मिक कट्टरता के दम पर यह संगठन पूरे लेबनान की सियासत पर हावी है. ब्रूकिंग्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक हिज्बुल्ला लेबनान में किंग मेकर की भूमिका में रहता है, बिना किसी जवाबदेही के. वह फाइनेंशियल रिफॉर्म कार्यक्रमों में रोड़ा डालता रहा है, जिसकी वजह से देश में गरीबी बढ़ती गई. पश्चिमी देशों से लेबनान के संबंध सुधारने को लेकर भी उसका सख्त ऐतराज रहा है. अब हालत ये हो गई है कि लेबनान के आम शहरी, खासकर ईसाई आबादी यह तय मान बैठी है कि हिज्बुल्ला का मकसद लेबनान में रहते हुए ईरान के एजेंडे को पूरा करने के अलावा कुछ नहीं है. आम लोगों को यह बात समझ में आ गई है कि फिलिस्तीनी और सीरियाई शरणार्थियों के आने से लेबनान में मुसलमानों की आबादी बहुत बढ़ गई, और उसके साथ ही आतंकवादी गतिविधि भी.
5-लेबनान के हिजबुल्ला भले शिया हैं, लेकिन अपने एजेंडा के लिए सुन्नी हमास के साथ हैं
पूरी दुनिया में शिया-सुन्नी भले एक दूसरे के खून के प्यासे हों पर मध्य पूर्व के मामलों में दोनों में गजब की एकता देखने को मिलती है. एक दशक पहले शिया संगठन हिजबुल्ला और सुन्नी संगठन हमास के बीच ठंडे संबंधों का दौर रहा पर हाल के वर्षों में स्थितियां बदली हैं. हमास ने ईरान और हिजबुल्ला के साथ संबंधों को मजबूत किया है. इसकी शुरुआत हुई जब दोनों सशस्त्र समूहों ने सीरियाई गृहयुद्ध में विरोधी पक्षों का समर्थन किया था. हमास, एक सुन्नी मुस्लिम समूह, ने राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ विद्रोह करने वाले सुन्नी मिलिशिया का समर्थन किया यहां तक बातें समझ में आ रही थीं. पर इन विद्रोहियों को ईरान और हिजबुल्ला के शिया लड़ाकों का समर्थन भी मिल रहा था.बस यही से दोनों अलग धाराओं वाले लड़ाकों का मिलन हो गया.
दोनों के बीच बढ़ती साझेदारी के संकेत तब भी मिले जब लेबनान से एक रॉकेट बैराज ने इज़राइल पर अटैक किया था. इज़रायली सेना ने भी माना था कि ये हमला हमास पर हिज़्बुल्ला के आशीर्वाद से हुआ था.