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जाने कौन हैं भद्रा? इसमें क्यों नहीं बांधी जाती राखी? शुभ कार्य करने से क्यों मच सकता है उथल-पुथल

ज्योतिष में भद्रा को अशुभ समय के रूप में जाना जाता है. भद्रा होने पर रक्षाबंधन का त्योहार तब तक...

भाई-बहनों के लिये साँची डेयरी मिष्ठान्न के साथ सेल्फी प्रतियोगिता 30 अगस्त को

चयनित को मिलेगा साँची का गिफ्ट हेम्पर भोपाल दुग्ध महासंघ के साँची डेयरी द्वारा राखी पर्व पर भाई-बहनों के लिये...

BRICS Summit: PM मोदी ने उठाया LAC मुद्दा, तो जानिए क्या बोले शी जिनपिंग…चीन ने जारी किया ब्योरा

 नई दिल्ली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी बातचीत में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस बात पर जोर...

प्रदेश में सड़क पर उतरे कर्मचारी, सरकारी दफ्तरों सन्नाटा पसरा

भोपाल विधानसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में कर्मचारी सड़क पर उतर गए हैं। 60 हजार बाबू (वर्ग-3) समेत प्रदेश के...

CM परिवार पर अभद्र टिप्पणी करने पर बाबूलाल मरांडी पर चार मुकदमे दर्ज

 रांची मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और सांसद शिबू सोरेन के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने का आरोप लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी...

प्रमुख सचिव ऊर्जा दुबे ने नर्मदापुरम् में आर.डी.एस.एस. प्रोजेक्ट के निर्माणाधीन कार्यों का किया निरीक्षण

समय-सीमा में कार्य पूरा करने के निर्देश भोपाल प्रमुख सचिव ऊर्जा संजय दुबे ने गुरूवार को संचारण संधारण वृत्त नर्मदापुरम्...

आरडीएसएस के तहत शाजापुर जिले में होंगे 136 करोड़ के कार्य

विद्युत वितरण व्यवस्था का किया जाएगा सुदृढ़ीकरण भोपाल केंद्र शासन की महत्वपूर्ण योजना रिवेम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) के तहत...

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” सिनेमा एंड बियांड और नुक्कड़ कैफे द्वारा आयोजित “भारतीय सिनेमा में महिला लेखिकाओं एंव निर्देशकों का योगदान – एम.एल. नत्थानी कवि,लेखक, शिक्षाविद, भारतीय सिनेमा के लगभग 100 साल के इतिहास में महिला लेखिकाओं और निर्देशकों ने अपने कल्पनाशील विचारों एंव आधुनिक दृष्टिकोंण के साथ ही यथार्थवादी धरातल पर पुरुष पात्रों के ” संवेदनशील और साहसी पुरुषत्व ” को सिनेमा के सुनहरे पर्दे पर लगभग प्रत्येक दशक में अपनी अंतर्दृष्टि से रेखांकित किया है । अतीत से वर्तमान कालखंड में अनेक महिला फिल्मकारों ने सिनेमाई रुपहले पर्दे पर पुरानी सोच के रुढ़िवादी पुरुष पात्रों को नए परिवेश में आधुनिक दृष्टिकोंण के साथ ही मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील, बुद्धिमान होने के साथ ही अनंत गहराईयों को शिद्दत के साथ जिंदगी को जिन्दादिली के साथ जीने के लिए प्रतिबद्ध है । यह सिनेमाई पर्दे पर महिला फिल्मकारों की नई सोच और सृजन के अद्भुत हस्ताक्षर हैं । भारतीय सिनेमा के शुरूआती कालखंड में महिला फिल्मकारों में साहसी एंव प्रतिभावान फातिमा बेगम और देविका रानी उल्लेखनीय नाम हैं । समय के साथ महिला फिल्मकारों की भूमिका का चित्रण भी निरंतर बदलता रहा है । वस्तुतः सिनेमा के माध्यम से समाज में तेजी से बदलते जीवन मूल्यों को ” पुरुष पात्रों ” को महिला फिल्मकारों ने अपने आधुनिक नजरिए एंव पैनी अंतर्दृष्टि से विवधता के नए आयाम स्थापित किए हैं । महिला फिल्मकारों के सृजनशील सशक्त हस्ताक्षर :- ************************ 1 फातिमा बेगम – बुलबुल ए परिसतान 2 देविका रानी – कर्मा 3 नंदिता दास – फिराक 4 दीपा मेहता – फायर 5 अरुणा राजे – रिहाई 6 कल्पना लाजमी – रूदाली 7 अर्पणा सेन – मिस्टर एंड मिसेज अय्यर 8 मीरा नायर – मानसून वेडिंग 9 गुरविंदर चड्डा – बेंड इट लाइक बेकहम 10 अनुशा रिजवी – पीपली लाईव 11 किरण राव – धोबी घाट 12 भावना तलवार – धरम 13 रीमा कागती – तलाश 14 रेवती – मित्र माई फ्रेंड 15 मेघना गुलजार – तलवार, राजी,छपाक 16 गोरी शिंदे – इंग्लिश विंगलिश 17 जोया अख्तर – लक बाय चांस, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा,दिल धड़कने दो 18 फराह खान – ओम शांति ओम, मैं हूं ना 19 कोंकणा सेन शर्मा – अ डेथ इन द गंज 20 लीना यादव – दि एंड निष्कर्ष :- इस तरह से भारतीय सिनेमा का इतिहास महिला फिल्मकारों के सृजनशील और सशक्तिकरण के नित नई सोच और आधुनिक दृष्टिकोंण का बदलता हुआ प्रतिबिंब है । आज महिला फिल्मकारों ने ग्लोबल स्तर पर अच्छे कंटेंट राईटर के कारण सिनेमा और ओटीटी प्लेटफार्म पर भी इस डिजिटल युग में वैश्विक पहचान बनाई है । भारतीय सिनेमा में अब पुरुषों को लेकर नए दृष्टिकोंण और वैश्विक स्तर के कंटेंट राईटर निरंतर सक्रियता के साथ महिला फिल्मकारों ने समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने में आधुनिक तकनीक और विज्ञान के साथ ही नए ” संवेदनशील और साहसी पुरुषत्व ” की सिनेमाई छबि को परिभाषित करने में कामयाब हुए हैं । सादर ।