वाम पार्टियों का संयुक्त बयान : 9 अगस्त की देशव्यापी मजदूर-किसान आंदोलन को वामपंथी पार्टियों ने दिया समर्थन
छतीसगढ़ की पांच वामपंथी पार्टियों ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े किसान-आदिवासी संगठनों द्वारा मोदी सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 9 अगस्त को आहूत देशव्यापी हड़ताल का समर्थन किया है।
आज यहां जारी एक बयान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के संजय पराते, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के आरडीसीपी राव, भाकपा (माले)-लिबरेशन के बृजेन्द्र तिवारी, भाकपा (माले)-रेड स्टार के सौरा यादव और एसयूसीआई (सी) के विश्वजीत हारोडे ने कहा है कि आज अर्थव्यवस्था जिस मंदी में फंस चुकी है, उससे निकलने का एकमात्र रास्ता यह है कि आम जनता के हाथों में नगद राशि पहुंचाई जाए तथा उसके स्वास्थ्य और भोजन की आवश्यकताएं पूरी की जाए, ताकि उसकी क्रय शक्ति में वृद्धि हो और बाजार में मांग पैदा हो। हमारी अर्थव्यवस्था में संकट आपूर्ति का नहीं, मांग का है। लेकिन मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के कारण देश मंदी के गहरे गड्ढे में फंस गया है।
वाम पार्टियों ने कहा कि कोरोना संकट की आड़ में मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण के जरिये देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को बेच रही है, ठेका खेती की इजाजत देकर और कृषि व्यापार में लगे प्रतिबंधों को खत्म करके देश की खाद्य सुरक्षा और खेती-किसानी को तहस-नहस कर रही है। संसद और आम जनता को विश्वास में लिए बिना अध्यादेशों और प्रशासकीय आदेशों के जरिये किये जाने प्रावधानों से हमारी अर्थव्यस्था पर नियंत्रण कार्पोरेटों के हाथों में चला जायेगा।
उन्होंने कहा कि राज्यों से बिना विचार-विमर्श किये जिस तरीके से तालाबंदी की गई, उसमें न तो लॉक-डाऊन के बुनियादी सिद्धांतों — टेस्टिंग, आइसोलेशन और क्वारंटाइन — का पालन किया गया और न ही महामारी विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की सलाह को माना गया। नतीजा यह है कि लॉक डाऊन से पहले के संक्रमित मरीजों की संख्या में 362 गुना तथा इससे होने वाली मौतों के 3740 गुना इजाफा हो गया है। आज भारत संक्रमण से प्रभावित लोगों की संख्या के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर है और 19 लाख लोग इसके शिकार हो चुके हैं। पूरी अर्थव्यवस्था ठप्प हो चुकी है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण की जो नीति अपनाई गई है, उसके चलते इस महामारी के दुष्प्रभावों से जल्दी बाहर निकलने के कोई संकेत नहीं है। 15 करोड़ लोगों की आजीविका खत्म हो गई है, खेती-किसानी चौपट हो गई है और बड़ी तेजी से देश में भुखमरी पसर रही है।
वाम नेताओं ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सरकार भी केंद्र की तरह ही इस महामारी और अर्थव्यवस्था में पड़ रहे दुष्प्रभाव से निपटने में गंभीर नहीं है। तीन लाख कोरोना टेस्ट में 9000 से ज्यादा लोगों का संक्रमित पाया जाना दिखाता है कि प्रदेश में 7-8 लाख लोग संक्रमित होंगे, लेकिन वे स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच से दूर है। प्रवासी मजदूरों और ग्रामीणों को मुफ्त राशन तक नहीं मिल रहा है। बोधघाट और कोयला खदानों के निजीकरण के द्वारा आदिवासियों के बड़े पैमाने पर विस्थापन की योजना को अमल में लाया जा रहा है, जबकि वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को क्रियान्वित नहीं किया जा रहा है। वाम पार्टियों ने आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ सरकार भी राम के नाम पर लोगों की धार्मिक भावनाओं को सहलाकर असली मुद्दों से आम जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।
वाम पार्टियों के अनुसार 9 अगस्त का मजदूर-किसान आंदोलन देश के संघीय ढांचे और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और समानता के मूल्यों को बचाने और एक समतापूर्ण समाज के निर्माण का भी संघर्ष है।