कोरोना संकट से परेशान जनता को राहत देने की मांग : माकपा मनाएगी 16 जून को विरोध दिवस
कोरोना संकट और अविचारपूर्ण व अनियोजित लॉक डाउन के कारण इस देश की परेशान गरीब जनता को राहत देने में मोदी सरकार की विफलता के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी 16 जून को देशव्यापी विरोध दिवस मनाएगी।
आम जनता को इस संकट से राहत देने के लिए माकपा अगले छह महीनों तक आयकर के दायरे के बाहर के सभी परिवारों को 7500 रुपये मासिक नगद मदद देने और हर व्यक्ति को 10 किलो अनाज हर माह मुफ्त देने; दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को खाना-पानी के साथ अपने घर लौटने के लिए मुफ्त परिवहन की उपलब्ध कराने; मनरेगा मजदूरों को 200 दिन काम उपलब्ध कराने तथा इस योजना का विस्तार शहरी गरीबों के लिए भी किये जाने; मनरेगा में मजदूरी दर संबंधित राज्य के न्यूनतम वेतन के बराबर दिए जाने; सभी बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिए जाने; राष्ट्रीय संपत्ति की लूट बंद करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर रोक लगाने और श्रम कानूनों तथा कृषि कानूनों को तोड़-मरोड़कर उन्हें खत्म करने की साजिश पर रोक लगाने की मांग कर रही हैं। इसके साथ ही क्वारंटाइन केंद्रों में रखे गए प्रवासी मजदूरों को पौष्टिक आहार देने तथा चिकित्सा सहित सभी बुनियादी मानवीय सुविधाएं उपलब्ध कराने और उनके साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार किये बंद किये जाने की मांग माकपा राज्य सरकार से कर रही है।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि आज अर्थव्यवस्था जिस मंदी में फंस चुकी है, उससे निकलने का एकमात्र रास्ता यह है कि आम जनता के हाथों में नगद राशि पहुंचाई जाए तथा उसके स्वास्थ्य और भोजन की आवश्यकताएं पूरी की जाए, ताकि उसकी क्रय शक्ति में वृद्धि हो और बाजार में मांग पैदा हो। उसे राहत के रूप में “कर्ज नहीं, कैश चाहिए”, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संकट आपूर्ति का नहीं, मांग का है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि राज्यों से बिना विचार-विमर्श किये जिस तरीके से तालाबंदी की गई, उसमें न तो लॉक-डाऊन के बुनियादी सिद्धांतों — टेस्टिंग, आइसोलेशन और क्वारंटाइन — का पालन किया गया और न ही महामारी विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की सलाह को माना गया। नतीजा यह है कि लॉक डाऊन से पहले की तुलना में आज संक्रमित लोगों की संख्या 275 गुना और संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 850 गुना ज्यादा हो चुकी है और पूरी अर्थव्यवस्था ठप्प हो चुकी है। इस असफलता के बाद फिर जिस तरह मोदी सरकार ने अनियोजित ढंग से लॉक डाऊन हटाने का पूरा जिम्मा राज्यों पर छोड़ दिया है, उससे स्पष्ट है कि उसने आम जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को त्यागकर उन्हें अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया है।
माकपा नेता ने कहा कि मोदी सरकार की कारगुजारियों के कारण अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने से इस देश के असंगठित क्षेत्र के मजदूर, किसान और प्रवासी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, लेकिन 20 लाख करोड़ रुपयों के कथित पैकेज में उन्हें कोई राहत नहीं दी गई है। प्रवासी मजदूर अपनी घर वापसी के लिए आज भी सड़क नापने को मजबूर हैं, 15 करोड़ लोगों की आजीविका खत्म हो गई है, खेती-किसानी चौपट हो गई है और बड़ी तेजी से देश में भुखमरी पसर रही है।
उन्होंने कहा कि इतने संकट में भी आम जनता की आजीविका की रक्षा तथा उसे सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने के लिए कदम उठाने के बजाय मोदी सरकार कारपोरेट हितों की रक्षा के लिए ही प्रतिबद्ध है। कोरोना संकट से लड़ने के नाम पर श्रम कानूनों को खत्म करके 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम करने का मजदूर विरोधी प्रावधान लागू कर रही है, राज्यों को विश्वास में लिए बिना मौजूदा कृषि कानूनों को खत्म कर ठेका खेती को लागू कर रही है। इन नव-उदारवादी नीतियों से पैदा होने वाले असंतोष को तोड़ने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की नीति पर चल रही है।
माकपा नेता ने बताया कि मोदी सरकार की इन जन विरोधी नीतियों के खिलाफ गरीबों और प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को केंद्र में रखकर माकपा 16 जून को विरोध दिवस मनाएगी। पूरे प्रदेश में फिजिकल डिस्टेंसिंग और कोविड-19 के प्रोटोकॉल को ध्यान में रखकर ये प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे।