US के एक दांव से बिखर गई शी जिनपिंग की होशियारी, मुस्लिम देशों में पसरने के मंसूबों पर कैसे फिरा पानी?
सऊदी अरब
सऊदी अरब में बच्चे इन दिनों बड़ी तन्मयता से चीनी भाषा मंदारिन पढ़ रहे हैं। सऊदी सरकार के शिक्षा विभाग ने पिछले दिनों इस बाबत बाकायदा एक सर्कुलर भी जारी किया था कि माध्यमिक स्तर के सरकारी और निजी स्कूलों में बच्चों को प्रति सप्ताह कम से कम दो पाठ मंदारिन पढ़ाया जाए। यह पहल सऊदी अरब और चीन के बीच प्रगाढ़ होते रिश्तों की कहानी बयां करता है। सऊदी में बच्चों को मंदारिन पढ़ाने को अनिवार्य करने का फैसला सऊदी अरब के शक्तिशाली नेता, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान द्वारा लिया गया है, जो चीन के साथ “व्यापक रणनीतिक साझेदारी” बनाने की मुहिम में जुटे हैं। इसी साल अगस्त में सऊदी अरब को अनौपचारिक तौर पर ब्रिक्स समझौते में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसमें चीन, ब्राजील, रूस, भारत और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।
सऊदी में 5.5 बिलियन डॉलर का चीनी निवेश
दरअसल, क्राउन प्रिंस का दृष्टिकोण सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था को बहुआयामी बनाने का रहा है। इसके लिए वह तेल के अलावा आय के अन्य साधनों से अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के हिमायती रहे हैं। उनकी इस मुहिम में चीन ने बड़ी दिलचस्पी दिखाई है और वहां बड़े पैमाने पर निवेश का प्रस्ताव रखा है। चीनियों का दावा है कि सऊदी अरब में बुनियादी ढांचे में अवसरों और हरित ऊर्जा में परिवर्तन पर जोर देते हुए वे इस लक्ष्य को साकार करने में मदद करने की आदर्श स्थिति में हैं। इकोनॉमिस्ट के अनुसार, 2022 की पहली छमाही में, सऊदी अरब को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के माध्यम से 5.5 बिलियन डॉलर का निवेश और अनुबंध प्राप्त हुआ, जो किसी भी अन्य देश से अधिक है।
सऊदी में चीन निवेशकों का भव्य स्वागत
हाल के निवेश समझौतों में प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि, रियल एस्टेट, खनिज, रसद, पर्यटन और स्वास्थ्य सेवा भी शामिल हैं। झेजियांग स्थित एनोवेट मोटर्स जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों के चीनी निर्माताओं का संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में मिले ठंडे स्वागत के एकदम विपरीत, सऊदी अरब में भव्य स्वागत किया गया है।
क्षेत्रीय तनाव ने बिगाड़ा खेल
सऊदी और चीन की दोस्ती पटरी पर सरपट आगे बढ़ रही थी लेकिन हालिया इजरायल-हमास युद्ध ने चीनी निवेशकों को चिंतित कर दिया है। साथ ही मिडिल-ईस्ट के इस तनाव में चीन की स्थिति पर एक संशय पैदा हुआ है। चीनी विदेश मंत्रालय के मुताबिक, चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि उनका देश मिडिल-ईस्ट में लगातार बढ़ते संघर्ष और बड़ी संख्या में गाजा पट्टी और इजरायल में नागरिकों के हताहत होने से बेहद चिंतित है।
चीन का 50% तेल आयात खाड़ी देशों से
दरअसल, इजरायल-हमास युद्ध के बीच कच्चे तेल की कीमत 92 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई। इससे चिंतित मध्य पूर्व में चीन के विशेष दूत झाई जून ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश में क्षेत्र का दौरा किया कि तेल आपूर्ति श्रृंखला बनी रहे। बता दें कि चीन दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। उसकी जरूरत का 50 प्रतिशत से अधिक तेल खाड़ी सहयोग परिषद से आयात किया जाता है; उनमें 18 प्रतिशत अकेले सऊदी अरब से आता है।
अमेरिका इजरायल का समर्थक तो चीन फिलिस्तीन का:
7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर हमला बोल दिया और 1200 इजरायलियों को मौत के घाट उतार दिया था। इसके अलावा 240 लोगों को अगवा कर हमास के आतंकी गाजा ले चले गए, जहां उन्हें बंधक बनाकर रखा गया है। इसके बाद से इजरायली सुरक्षा बलों ने गाजा पर हमले जारी रखा है, इससे क्षेत्र में तनाव गहरा गया है। ये लड़ाई ऐसे वक्त में छिड़ी है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन सऊदी अरब और इजरायल के बीच एक ऐतिहासिक समझौता करना चाह रहा था, जिससे उसे उम्मीद थी कि मध्य-पूर्व क्षेत्र स्थिर हो जाएगा। इस क्षेत्र में प्रभाव के लिए चीन का सीधा मुकाबला संयुक्त राज्य अमेरिका से है। अमेरिका जहां इजरायल का समर्थक रहा है, वहीं चीन फिलिस्तीनी मुद्दे से जुड़ा रहा है।
मुश्किल स्थिति में चीन क्यों?
तेल अवीव में इजरायल-चीन नीति केंद्र के शोधकर्ता और उप निदेशक गैलिया लावी के हवाले से ‘द डिप्लोमेट’ ने लिखा है कि नई परिस्थितियों में बीजिंग खुद को मजबूर और लाचार स्थिति में देख रहा है। लावी ने कहा, “चीन ने खुद को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है क्योंकि वर्षों से, इसने फिलिस्तीनियों के हक की बात तो की है लेकिन वास्तविकता में बहुत कम सहायता की पेशकश की है। फिलिस्तीनी प्राधिकरण क्षेत्रों में चीन का कोई निवेश नहीं है, वहां व्यापार भी बहुत कम है। फ़िलिस्तीनियों को चीन की मानवीय सहायता अन्य देशों से मिलने वाली सहायता से भी काफी कम है लेकिन बयानबाजी में, चीन ने मुख्य रूप से अरब देशों को खुश करने के लिए फिलिस्तीनियों को समर्थन का दिखावा किया है। इसलिए, जब हमास के आतंकियों ने इजरायल पर हमला बोला, तो चीन ने विशेष ‘तटस्थ’बरती।”
लावी के अनुसार, “युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिकी मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ना केवल इजरायल की हाई प्रोफाइल यात्राएं कीं बल्कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दिखाया है कि अमेरिका हाल के वर्षों में चीन के दावों के विपरीत, मिडिल-ईस्ट क्षेत् में बना हुआ है। इसके विपरीत, वांग ने कोई दौरा नहीं किया है और चीन के शीर्ष नेता शी जिनपिंग ने किसी भी क्षेत्रीय नेता के साथ एक फोन कॉल भी नहीं की है।” लवी ने तर्क दिया कि सऊदी अरब इस संकट की घड़ी में यह देख रहा है कि जरूरत के समय किस पर भरोसा किया जा सकता है। चीन इस मामले में पीछे छूट गया है क्योंकि उसने खुद को लगभग अप्रासंगिक बना लिया है।”