औपनिवेशिक कानून कमजोर वर्गों के लिए अत्यधिक बोझिल : उपराष्ट्रपति
नई दिल्ली
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के मुताबिक औपनिवेशिक कानूनों की विरासत ग्लोबल साउथ के देशों में कमजोर वर्गों के लिए अत्यधिक बोझिल रही है। उन्होंने इन कानूनों को स्थानीय आबादी के लिए बहुत कठोर, दमनकारी और शोषणकारी बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि समय आ गया है, जब ग्लोबल साउथ देशों को भारत के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए और पुराने औपनिवेशिक कानूनों की समीक्षा करने पर विचार करना चाहिए, जो स्थानीय आबादी के खिलाफ पूर्वाग्रह को कायम रखते हैं।
धनखड़ ने ये टिप्पणियां "कमजोर लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करना: ग्लोबल साउथ में चुनौतियां और अवसर" विषय पर पहले क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए की। अपने संबोधन में, उपराष्ट्रपति ने कहा, “जैसा कि ग्लोबल साउथ एक उज्जवल भविष्य की ओर अपनी यात्रा शुरू कर रहा है, अपने औपनिवेशिक अतीत की बेड़ियों को छोड़ना और अन्याय और असमानता को कायम रखने वाली ऐतिहासिक गलतियों को उलटने के लिए मिलकर प्रयास करना अनिवार्य है। यह एक सामान्य ख़तरा है।”
यह देखते हुए कि भारत पुराने कानूनों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है, धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि यह हमारे दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव लाएगा और उन शोषणकारी प्रावधानों को पूरी तरह से रोकेगा, काबू करेगा और नष्ट कर देगा।
उन्होंने सुझाव दिया, "ग्लोबल साउथ के देशों के लिए अच्छा होगा कि वे इन क्षेत्रों में भारत द्वारा की गई कार्रवाई का बारीकी से अध्ययन करें और उन्हें उपयुक्त रूप से अनुकूलित करने के बाद अपने देशों में लागू करें।" औपनिवेशिक उत्पीड़न और पीड़ा के साझा इतिहास का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि एक राष्ट्र के रूप में हमारा ग्लोबल साउथ के देशों के साथ सांस्कृतिक और विभिन्न प्रकार का गहरा भावनात्मक जुड़ाव है।
उन्होंने कहा, “औपनिवेशिक शासन के नकारात्मक पहलू हमें एक साथ बांधते हैं। हमने सदियों से पीड़ा झेली है और हमें एक-दूसरे से सीखकर इस पीड़ा को कम करना होगा।" यह देखते हुए कि न्याय प्रणाली तक पहुंच से वंचित करना और कानूनी सहायता से इनकार करना, कमजोर वर्गों के लिए अस्तित्व संबंधी चुनौती पेश करता है, उपराष्ट्रपति ने सभी के लिए न्याय सुरक्षित करने के लिए सकारात्मक नीतियों और पहलों द्वारा इन चुनौतियों को बेअसर करने की आवश्यकता पर बल दिया।