आवारा कुत्तों के हिंसक होने लोगों पर हमला करने की खबरें तो आपने सुनी ही होगी लेकिन क्या कभी आपने यह जानने की कोशिश कि वहां आक्रमक क्यों होते हैं – इतेश सोनी ब्यूरो छत्तीसगढ़
बेजुबान जानवरों से करे प्यार – श्राव्या
इतेश सोनी ब्यूरो प्रमुख छत्तीसगढ़
रायपुर राजधानी। आवारा कुत्तों के हिंसक होने लोगों पर हमला करने की खबरें तो आपने सुनी ही होगी लेकिन क्या कभी आपने यह जानने की कोशिश की है यह अचानक आक्रमक क्यों होते जा रहे हैं 14 साल की उम्र से भूखे घायल और आवारा कुत्तों की देखभाल कर रही श्राव्या का मानना है कि भूखे कुत्ते लोगों के पास इसलिए जाते हैं ताकि उन्हें खाने को मिल जाए लेकिन लोग उन्हें खाना देने और प्यार करने की बजाय उन्हें पत्थर डंडा मारकर भगा देते हैं इन कारणों के चलते कुत्ते हिंसक होते जा रहे हैं।
14 साल की उम्र में श्राव्या ने जब अपने घर के पास छोटे पिल्ले को अपनी मां से अलग होते देखा तब उन्होंने उन पिल्ले की सेवा करना शुरू की उन्हें दूध देना समय-समय पर उनका ख्याल रखना फिर उनकी मां को ढूंढ कर उन पिल्लू से मिलवाया लेकिन धीरे-धीरे सारे पिल्ले मर गए और एक ही पिल्ला बचा था और उसकी तबीयत भी खराब हो रही थी फिर वहां उस पिल्ले को अपने घर ले आई उसका इलाज करवाया और उस पिल्ले को पालने लगी। स्कूल कॉलेज के साथ-साथ रोज कॉलोनी के सारे कुत्तों को खाना देती है अगर कोई घायल या बीमार जानवर दिख जाए तो उनका इलाज भी करवाती है ऐसे ही कर करके श्राव्या ने अभी तक 10 12 कुत्तों को अडॉप्ट कर चुकी है कोचिंग एवं स्कूल जाते समय श्राव्या अपने बैग में ब्रेड बिस्किट रखकर निकलती है जहां कहीं भी वहां बीमार या भूखे कुत्तों को देखती है रुक के उनको कुछ ना कुछ खिलाती हैै
19 साल की उम्र में श्राव्या कुछ एनजीओस में भी शामिल हुई और जानवरों की खूब सेवा की और आज वह खुद का एनिमल वेलफेयर का काम करती है और ना ही सिर्फ खाना देना इलाज करवाना साथ ही साथ उन्होंने कई कुत्तों की नसबंदी करवाना शुरू की अभी तक वहां 300 से ज्यादा जानवरों की जान बचा चुकी है 40 से अधिक कुत्ते और बिल्लियों के बच्चों का एडॉप्शन करवा चुकी है 35 से अधिक कुत्तों का नसबंदी करवा चुकी हैं जब भी उन्हें कोई लाचार या घायल जानवर दिखता है तब वहां उनके इलाज में लग जाती हैं गाड़ी में जानवरों के लिए हमेशा खाना फर्स्ट एड किट और दवाइयां रखती हैं बहुत सारे खुजली वाले कुत्तों को भी ठीक कर चुकी हैं वह किसी भी जानवर को दर्द में नहीं देख सकती हैं और यह सब करके उनके मन को बहुत शांति मिलती है इन सब कार्य में बहुत से डॉक्टर भी उनकी पूरी मदद करते हैं लेकिन आसपास के लोगों को इस काम से बहुत शिकायत भी रहती है फिर भी वह यह काम करती है और हमेशा करती रहेंगी लॉकडाउन के समय भी वह प्रतिदिन 40 से 50 कुत्तों को खाना देती थीी।
ब्रीड डॉग पालने का शौक नहीं है लेकिन जिन आवारा कुत्तों को जरूरत होती है उनको घर ले आती हैं और उनका इलाज करवाती है फिर उनको पाल लेती है या फिर उनकी जगह में वापस छोड़ देती हैं लोगों से निवेदन है कि ब्रीड डॉग की जगह देसी डॉग को अपनाएं और उन्हें पाले वह भी उतने ही वफादार होते हैं और उतना ही प्यार देते हैं रोड पर हर साल हजारों कुत्तों के बच्चे होते हैं अगर उनमें से कुछ को भी लोग अडॉप्ट कर ले तो गली मोहल्ले में उनकी जनसंख्या कम हो जाएगी और उन्हें खाना भी मिल जाएगा हर मां बाप से निवेदन है कि वह अपने बच्चों को बचपन से ही जानवरों के प्रति क्रूरता नहीं प्रेम सिखाएं और उन्हें जानवरों की मदद करने के लिए प्रेरित करें तथा हर रोज बचा हुआ खाना उनके लिए बाहर डालें।