मासिक धर्म पर बहुंत ही सुंदर कविता – पियंका महंत
पत्रकार – उरेन्द्र साहू गरियाबन्द
आज के दुनिया मे मासिक धर्म पर पियंका महंत द्वारा बड़ी ही सुंदर सन्देश प्रदेशवासियों को
ना ही मैं कोई बिमारी हूँ,
हां मैं ही माहवारी हूँ।
मासिकधर्म,रजोधर्म या रक्तस्राव कह लो मुझे,
सात दिनों का महीना मैं ही तो कहलाती हूँ।
क्यों समझता है समाज अस्पृश्यता मुझे?
मैं तो हर स्त्री की भलाई के लिए ही आती हूँ।
क्यों इतना घृणा करते हो मुझे?
तेरे इस दुनिया में आने का कारण मैं ही तो हूँ।
रसोई ,मंदिर में पूजा-पाठ में क्यों वर्जित हूं मैं,
मैं तो इस प्रकृति की ही देन कहलाती हूँ।
क्यों शुभ कार्यों में शामिल होने पर रोक-टोक है मुझे?
समाज के लिए अशुभ हूंँ?
जो खुशहाल माहौल में मातम सी जाती हूँ।
करते हो मेरे नाम को लेकर अपमानित मुझे,
स्त्री जाति के लिए हूँ मैं महावरदान,
ये आज मैं तुम्हें स्वयं बताती हूँ।
ना ही मैं कोई बिमारी हूँ,
हां मैं ही माहवारी हूँ।
प्रियंका महंत छत्तीसगढ़