छत्तीसगढ़

कांगेस ने 50 साल तक आदिवासियों को सिर्फ वोट बैंक समझा – अर्जुन मुडा

रायसेन. आजादी के बाद देश में 50 सालों से अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने हमारे आदिवासी...

बिल्हा क्षेत्र में, आप के जसबीर सिंग ने मतदाताओं की समस्या काे सुलझाने का विश्वास दिलाया

बिल्हा. बिल्हा क्षेत्र विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का रूझान आम आदमी पार्टी के विचारधारा सुशासन, इमानदारी व देशप्रेम की ओर...

3 दिन में 6 देश घूम आए ब्लिंकन, कोई क्यों नहीं मान रहा अमेरिका की बात?

नई दिल्ली इजरायल-हमास जंग का आज 31वां दिन है। अमेरिकी अनुरोध के बावजूद इजरायल गाजा पट्टी पर हमले कम नहीं...

कबीरधाम जिले की दो सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष

कवर्धा/कबीरधाम. जिले के पंडरिया और कवर्धा विधानसभा में कल यानी 7 नवंबर को वोटिंग है। फिलहाल, इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों...

चुनावी चेकिंग में जब्ती कार्रवाई में अब तक 500 करोड़ का आंकड़ा पार

जयपुर. राजस्थान विधानसभा आम चुनाव 2023 के मद्देनजर निर्वाचन विभाग के निर्देश पर प्रदेश में विभिन्न एनफोर्समेंट एजेंसियों द्वारा नौ...

सीमा हैदर को भारत में ही रखना चाहता है पाकिस्तान? अब तक रिपोर्ट नहीं भेजने से रुकी जांच

नई दिल्ली. पबजी पर खेलते-खेलते हुए ग्रेटर नोएडा के सचिन मीणा के प्यार में पड़ तीन देशों की सरहदों को...

‘कांग्रेस ने मुस्लिमों से सिर्फ पंक्चर निकलवाए’, भाजपा प्रत्याशी बालमुकुंद आचार्य बोले

जयपुर. राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर जयपुर की हवामहल सीट से चुनाव लड़ रहे हाथोज धाम के...

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” सिनेमा एंड बियांड और नुक्कड़ कैफे द्वारा आयोजित “भारतीय सिनेमा में महिला लेखिकाओं एंव निर्देशकों का योगदान – एम.एल. नत्थानी कवि,लेखक, शिक्षाविद, भारतीय सिनेमा के लगभग 100 साल के इतिहास में महिला लेखिकाओं और निर्देशकों ने अपने कल्पनाशील विचारों एंव आधुनिक दृष्टिकोंण के साथ ही यथार्थवादी धरातल पर पुरुष पात्रों के ” संवेदनशील और साहसी पुरुषत्व ” को सिनेमा के सुनहरे पर्दे पर लगभग प्रत्येक दशक में अपनी अंतर्दृष्टि से रेखांकित किया है । अतीत से वर्तमान कालखंड में अनेक महिला फिल्मकारों ने सिनेमाई रुपहले पर्दे पर पुरानी सोच के रुढ़िवादी पुरुष पात्रों को नए परिवेश में आधुनिक दृष्टिकोंण के साथ ही मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील, बुद्धिमान होने के साथ ही अनंत गहराईयों को शिद्दत के साथ जिंदगी को जिन्दादिली के साथ जीने के लिए प्रतिबद्ध है । यह सिनेमाई पर्दे पर महिला फिल्मकारों की नई सोच और सृजन के अद्भुत हस्ताक्षर हैं । भारतीय सिनेमा के शुरूआती कालखंड में महिला फिल्मकारों में साहसी एंव प्रतिभावान फातिमा बेगम और देविका रानी उल्लेखनीय नाम हैं । समय के साथ महिला फिल्मकारों की भूमिका का चित्रण भी निरंतर बदलता रहा है । वस्तुतः सिनेमा के माध्यम से समाज में तेजी से बदलते जीवन मूल्यों को ” पुरुष पात्रों ” को महिला फिल्मकारों ने अपने आधुनिक नजरिए एंव पैनी अंतर्दृष्टि से विवधता के नए आयाम स्थापित किए हैं । महिला फिल्मकारों के सृजनशील सशक्त हस्ताक्षर :- ************************ 1 फातिमा बेगम – बुलबुल ए परिसतान 2 देविका रानी – कर्मा 3 नंदिता दास – फिराक 4 दीपा मेहता – फायर 5 अरुणा राजे – रिहाई 6 कल्पना लाजमी – रूदाली 7 अर्पणा सेन – मिस्टर एंड मिसेज अय्यर 8 मीरा नायर – मानसून वेडिंग 9 गुरविंदर चड्डा – बेंड इट लाइक बेकहम 10 अनुशा रिजवी – पीपली लाईव 11 किरण राव – धोबी घाट 12 भावना तलवार – धरम 13 रीमा कागती – तलाश 14 रेवती – मित्र माई फ्रेंड 15 मेघना गुलजार – तलवार, राजी,छपाक 16 गोरी शिंदे – इंग्लिश विंगलिश 17 जोया अख्तर – लक बाय चांस, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा,दिल धड़कने दो 18 फराह खान – ओम शांति ओम, मैं हूं ना 19 कोंकणा सेन शर्मा – अ डेथ इन द गंज 20 लीना यादव – दि एंड निष्कर्ष :- इस तरह से भारतीय सिनेमा का इतिहास महिला फिल्मकारों के सृजनशील और सशक्तिकरण के नित नई सोच और आधुनिक दृष्टिकोंण का बदलता हुआ प्रतिबिंब है । आज महिला फिल्मकारों ने ग्लोबल स्तर पर अच्छे कंटेंट राईटर के कारण सिनेमा और ओटीटी प्लेटफार्म पर भी इस डिजिटल युग में वैश्विक पहचान बनाई है । भारतीय सिनेमा में अब पुरुषों को लेकर नए दृष्टिकोंण और वैश्विक स्तर के कंटेंट राईटर निरंतर सक्रियता के साथ महिला फिल्मकारों ने समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने में आधुनिक तकनीक और विज्ञान के साथ ही नए ” संवेदनशील और साहसी पुरुषत्व ” की सिनेमाई छबि को परिभाषित करने में कामयाब हुए हैं । सादर ।