*अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : नई पीढ़ी की कामकाजी महिलाएं (एक तथ्य)*
*अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : नई पीढ़ी की कामकाजी महिलाएं (एक तथ्य)*
समय के बदलते परिवेश में हमारे देश की महिलाओं ने लड़ते- झगड़ते, पढ़ना लिखना सीख ही लिया है. भारत देश की स्वतंत्रता को पचहत्तर वर्ष होते-होते इस देश की महिलाएं पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर होने की राह पर चल पड़ी हैं. आत्मनिर्भर बनने में सबसे बड़ा रोड़ा इस देश के पुरूषों की सामंती मानसिकता का था. उसे दूर हटाते हुए ये आगे बढ़ी और बढ़ती ही गई. पुरानी दकियानुसी परंपराओं एवं स्त्री विरोधी विचारों को दूर करते हुए बलिदान तक दिया इस पीढ़ी की महिलाओं ने तब जाकर घर से बाहर निकलकर पढ़ाई करके ही आत्मनिर्भर बन पाई है ‘‘आज की महिला’’.
वैसे तो प्रेरणा देने वाले महानुभव पुरूषों और महिलाओं की कमी नहीं थी बस उन्हें ढूंढ़कर अपना आदर्श बनाने में देरी हुई वर्ना पच्चीस वर्ष पूर्व ही हमारी उन्नति हो गई होती. ऐसा कोई क्षेत्र आज के आधुनिक समय में बचा नहीं है जिस पर महिलाओं ने कब्जा नहीं जमाया है, जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, आर्किटेक्चर, रेल ड्राइवर, ऑटोरिक्शा चालक और बड़ी-बड़ी कंपनी खोलकर लोगों को रेाजगार देने में अब इस देश की महिलाएं पीछे नहीं है. एक महिला अपनी ईमानदारी के साथ ई-रिक्शा चलाकर गुजारा करती हुई दिखाई देती है तो बहुत गर्व महसूस होता है.
1997 में भारत सरकार ने बच्चों को शिक्षा अनिवार्य कर दी तब से स्त्री शिक्षा का महत्व दोगुना हो गया है. अब घर बार संभालकर ऑफिस का काम संभालना एक तरह की कसौटी ही होती है. अब अपनी पसंद से शादी करने का मौका पढ़ने लिखने वाली महिलाओं को मिला है. आजादी मिली है तरक्की करने की. रूढ़ी परंपरावादी सामाजिक ढांचे से निकलकर अपने स्वावलंबी बनने तक का सफर बहुत ही चुनौती भरा होता है. कहना आसान है लेकिन कुछ रूढ़ी परंपरा वाले समाज की महिलाओं को घर और बाहर की दुनिया दोनों की चुनौतियों में लड़ना पड़ता है.
आज के जमाने में हर जगह पैसो का महत्व बढ़ गया है. सरकारी नौकरी में कामकाजी महिलाओं का काम करना मुश्किल हो गया. घर संभालकर ऑफिस पहुँचने को जल्दी, सेहत का ध्यान नहीं रख पाना, बच्चों की समस्याएँ दिमाग में रखकर कार्य करना. इस पर उच्च अधिकारी यदि सहयोगी भावना के नहीं है तो कार्यालय में पुरूष वर्ग के द्वारा गॉसीपिंग और कभी-कभी पुरूष वर्ग की गंदी नजरों का भी सामना करना पड़ता है परंतु कुदरत ने महिलाओं को सिक्ससेंस दिया है जो उन्हें सेक्सुअल हरेसमेन्ट से बचाती है.
कामकाजी महिलाएं कई बार अपनी भावनाओं को दबाकर जीती हैं जिसके कारण उन्हें उच्च रक्तदाब एवं अनिद्रा की बिमारी झेलनी पड़ती हैं. अपनी जिंदगी में पति परमेश्वर वाला किस्सा खत्म करने को ज्यादा तवज्जों देना आज की महिलाओं को पसंद है साथ ही उन्हें कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला उनकी मानसिकता को समझने वाला साथी पसंद है. दकियानुसी विचारधारा वाले पुरूष और उनके रिश्तेदारों को झेलते हुए बाहर काम करना याने दुगुना इम्तेहान देने जैसा है इस पर ऑफिस या कंपनी के अधिकारियों का अलग टेंशन होता है. मजबूरी ऐसी कि खुलकर हर महिला शिकायत नई कर सकती.
महिलाओं में मेन्सट्रूयल सायकल भी अपने आप में बहुत बड़ी समस्या होती है. पति अगर शराबी या और कोई शौकवाला है तो फिर पूछो ही मत? नतीजा पढ़ लिखकर कमाने वाली लड़की शादी करना ही नहीं चाहती. शादी करके अपनी आजादी का गला घोटने को वो तैयार ही नहीं है. देखा आपने? भारतीय समाज की पढ़ी लिखी महिलाओं ने अपनी जिंदगी जीने का नया तरीका ढुंढ ही लिया.
रूढ़ीवादी सोच प्राचीन काल से चली आ रही है. उस जमाने में मिट्टी का बर्तन बनाने वाला कुम्हार, कपड़े सिलने वाला दर्जी जैसे उत्पादक ब्रॉण्ड बना दिये गये वैसे ही स्त्री को बच्चा पैदा करने वाला ब्राण्ड ही समझा गया, लेकिन अब आधुनिक परिवेश में महिलाएँ अगर ठान ले कि पुरूष संतती (मेल चाईल्ड) पैदा ही न किया जाए तो पुरूष प्रधान समाज क्या कर लेगा और निसर्ग कैसे चलेगा? औरतों की स्वतंत्रता अपनी खुद की अनुभूति होती है, खून पसीना बहाकर पढ़ी लिखी औरत पैसा कमाकर बच्चों को पढ़ाने में पति की मदद करती है तो पति उसकी कमाई पर अपना हक जताते हैं इसीलिए घरेलू हिंसा होती है और एक औरत यह सोचने पर मजबूर हो जाती है कि पुरूषी झंझट से छुटकारा कैसे पाएँ ? इसी श्रेणी में ‘‘सिंगल मदर’’ का ट्रेण्ड मेट्रो शहरों में आने लगा हैं. अब सरकारी कार्यालयों में स्त्रियों के प्रति बर्ताव पर अंकुश लाने हेतु ‘‘विशाखा समिति’’ की सख्ती शासन की ओर से की गयी है. प्राइवेट कंपनियों में अपनी हैसियत खुद बनाती हुयी आत्मसम्मानी महिलाएँ अपने आपका चरित्र अच्छा रखकर कार्य करती है.
हर औरत के अंदर एक माँ का सपना बसा होता है, लेकिन समय के बदलाव को महसूस करके और पुरूषों की गुलामगिरी को नकारते हुए वो खुद ही अपनी जिंदगी बसाने की सोचती है पर ऐसा नहीं है कि सारे पुरूष एक थाली के चट्टे-बट्टे होते हैं. विभिन्न लिंग और विभिन्न विचार वाले अक्सर लड़ते हैं लेकिन रिश्ते की डोर अगर मजबूत है तो संबंध टिकते हैं. आज तक औरत ही हमेशा रिश्ते टिकाने हेतु अग्रसर रही है लेकिन लगता है अब वो स्थिति नहीं है. अब पढ़ी-लिखी माँ सबको चाहिये इसलिए अब औरत की सुंदरता ही मायने नहीं रखती है. पढ़ाई लिखाई भी महत्वपूर्ण समझी जाती है. समय बदला है और आगे भी बदलता रहेगा. समाज के द्वारा रची हुई रूढ़ी परंपराओं को ध्वस्त कर इस देश की महिलाओं ने नये मुकाम तलाशे हैं और पुरूषों को साथ मिलाकर ही नहीं उससे एक कदम बढ़ाकर इस देश को हर एक क्षेत्र में प्रतिष्ठा दिलाने में पीछे नहीं हटने वाली है.
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा महिलाओं के लिये विविध योजनाएँ चलाई जा रही है. मातृवंदन योजना, पोस्ट ऑफिस महिला सम्मान बचत योजना, नई पी.एम. योजना, महिला सम्मान प्रमाण पत्र के साथ स्टार्टअप योजना का नई पीढ़ी की महिलाओं ने जमकर लाभ लिया है. इसी तरह महिला समृद्धि योजना, प्रधानमंत्री महिला लोन योजना, प्रधानमंत्री विधवा समृद्धि योजना, लाडली बहन योजना आदि केन्द्र शासन के द्वारा चलाई जाने वाली योजनाएँ राज्य सरकार भी चला रही है. आदिवासी प्रधान राज्य छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा, मध्यप्रदेश आदि राज्यों को विशेष पैकेज दिये गये हैं जिससे आदिवासी एवं ग्रामीण क्षेत्र में लघु उद्योग का विस्तार होकर आर्थिक मजबूती भी दिखाई दे रही है.
इस समय महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का सपना केन्द्र सरकार देख रही है और अकेले रहने वाली कामकाजी एवं पढ़ने वाली महिलाओं के लिये सुविधा युक्त कामकाजी महिला हॉस्टल शहरों में बनाये गये हैं, जिससे उन्हें सुरक्षा प्रदान करने को भी प्राथमिकता दी जा रही है. अब भारतीय महिलाओं की प्रगति को कोई रोक नहीं सकता.
यह लेखिका के स्वयं के विचार है.