*वक्ता मंच द्वारा आवासीय बालक छात्रावास के बच्चों को रात्रि भोज दिया गया बच्चे फौजी बनकर देश सेवा करना चाहते है*

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*वक्ता मंच द्वारा आवासीय बालक छात्रावास के बच्चों को रात्रि भोज दिया गया
बच्चे फौजी बनकर देश सेवा करना चाहते है*

 

 

रायपुर l वंचित वर्ग के बच्चों हेतु रायपुर के गंजपारा में संचालित आवासीय बालक छात्रावास के बच्चों हेतु आज प्रतिष्ठित सामाजिक व साहित्यिक संस्था “वक्ता मंच” द्वारा रात्रि भोज का आयोजन किया गया l इस छात्रावास में अत्यधिक गरीब व वंचित परिवारों से आये हुए लगभग 100बच्चे निवासरत है l अनेक बच्चे पूर्णत: अनाथ भी है l इस स्थान पर बच्चों के रहने, खाने- पीने, चिकित्सा व स्कूली शिक्षा का प्रबंध किया जा रहा है l इसके अलावा बच्चों के संपूर्ण विकास हेतु उन्हें योग, संगीत, कंप्यूटर , खेलों एवं विविध कलाओं का प्रशिक्षण भी दिया जाता है l छात्रावास के 2 बच्चे हाकी में राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में सम्मिलित हो चुके है l सर्वाधिक खुशी उस वक्त हुई जब सारे बच्चों ने एक साथ हाथ उठाकर फौजी बनकर देश सेवा करने के अपने संकल्प को उद्घोषित किया l आज 9 मार्च की संध्या वक्ता मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम में राजेश पराते, शुभम साहू,प्रो. सुनीता चन्सोरिया, सिंधु झा, ज्योति शुक्ला, राजाराम रसिक, गोपा शर्मा, पूर्नेश डडसेना, प्रगति पराते, जितेंद्र नेताम, अरविंद कुमार, दीपा यादव, सागर मिश्रा, हेमलाल पटेल, विष्णु साहू, आर के साहू, राजेश शेट्ट सहित अनेक प्रबुद्धगण सम्मिलित हुए l छात्रावास के प्रभारी संदीप तिर्की द्वारा अतिथियों का स्वागत करते हुए उन्हें छात्रावास के संबंध में विस्तार से जानकारी दी गई l बच्चों द्वारा गीत – संगीत व कविता पाठ के माध्यम से एक छोटा किंतु आकर्षक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया l टीम वक्ता मंच के पदाधिकारियों द्वारा बच्चों को प्रेरणास्पद उद्बोधन देकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना की गई l इसके पश्चात वक्ता मंच द्वारा समस्त बच्चों को भोजन परोसा गया l कार्यक्रम के अंत में वक्ता मंच के अध्यक्ष राजेश पराते द्वारा छात्रावास हेतु हर संभव सहयोग प्रदान करने की घोषणा की गई l

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” सिनेमा एंड बियांड और नुक्कड़ कैफे द्वारा आयोजित “भारतीय सिनेमा में महिला लेखिकाओं एंव निर्देशकों का योगदान – एम.एल. नत्थानी कवि,लेखक, शिक्षाविद, भारतीय सिनेमा के लगभग 100 साल के इतिहास में महिला लेखिकाओं और निर्देशकों ने अपने कल्पनाशील विचारों एंव आधुनिक दृष्टिकोंण के साथ ही यथार्थवादी धरातल पर पुरुष पात्रों के ” संवेदनशील और साहसी पुरुषत्व ” को सिनेमा के सुनहरे पर्दे पर लगभग प्रत्येक दशक में अपनी अंतर्दृष्टि से रेखांकित किया है । अतीत से वर्तमान कालखंड में अनेक महिला फिल्मकारों ने सिनेमाई रुपहले पर्दे पर पुरानी सोच के रुढ़िवादी पुरुष पात्रों को नए परिवेश में आधुनिक दृष्टिकोंण के साथ ही मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील, बुद्धिमान होने के साथ ही अनंत गहराईयों को शिद्दत के साथ जिंदगी को जिन्दादिली के साथ जीने के लिए प्रतिबद्ध है । यह सिनेमाई पर्दे पर महिला फिल्मकारों की नई सोच और सृजन के अद्भुत हस्ताक्षर हैं । भारतीय सिनेमा के शुरूआती कालखंड में महिला फिल्मकारों में साहसी एंव प्रतिभावान फातिमा बेगम और देविका रानी उल्लेखनीय नाम हैं । समय के साथ महिला फिल्मकारों की भूमिका का चित्रण भी निरंतर बदलता रहा है । वस्तुतः सिनेमा के माध्यम से समाज में तेजी से बदलते जीवन मूल्यों को ” पुरुष पात्रों ” को महिला फिल्मकारों ने अपने आधुनिक नजरिए एंव पैनी अंतर्दृष्टि से विवधता के नए आयाम स्थापित किए हैं । महिला फिल्मकारों के सृजनशील सशक्त हस्ताक्षर :- ************************ 1 फातिमा बेगम – बुलबुल ए परिसतान 2 देविका रानी – कर्मा 3 नंदिता दास – फिराक 4 दीपा मेहता – फायर 5 अरुणा राजे – रिहाई 6 कल्पना लाजमी – रूदाली 7 अर्पणा सेन – मिस्टर एंड मिसेज अय्यर 8 मीरा नायर – मानसून वेडिंग 9 गुरविंदर चड्डा – बेंड इट लाइक बेकहम 10 अनुशा रिजवी – पीपली लाईव 11 किरण राव – धोबी घाट 12 भावना तलवार – धरम 13 रीमा कागती – तलाश 14 रेवती – मित्र माई फ्रेंड 15 मेघना गुलजार – तलवार, राजी,छपाक 16 गोरी शिंदे – इंग्लिश विंगलिश 17 जोया अख्तर – लक बाय चांस, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा,दिल धड़कने दो 18 फराह खान – ओम शांति ओम, मैं हूं ना 19 कोंकणा सेन शर्मा – अ डेथ इन द गंज 20 लीना यादव – दि एंड निष्कर्ष :- इस तरह से भारतीय सिनेमा का इतिहास महिला फिल्मकारों के सृजनशील और सशक्तिकरण के नित नई सोच और आधुनिक दृष्टिकोंण का बदलता हुआ प्रतिबिंब है । आज महिला फिल्मकारों ने ग्लोबल स्तर पर अच्छे कंटेंट राईटर के कारण सिनेमा और ओटीटी प्लेटफार्म पर भी इस डिजिटल युग में वैश्विक पहचान बनाई है । भारतीय सिनेमा में अब पुरुषों को लेकर नए दृष्टिकोंण और वैश्विक स्तर के कंटेंट राईटर निरंतर सक्रियता के साथ महिला फिल्मकारों ने समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने में आधुनिक तकनीक और विज्ञान के साथ ही नए ” संवेदनशील और साहसी पुरुषत्व ” की सिनेमाई छबि को परिभाषित करने में कामयाब हुए हैं । सादर ।