उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में आदिवासियों पर किया जा रहा है अत्याचार – खेत, जमीन, घर, देव स्थल छोड़ कर जाने वन विभाग डाल रहा दबाव – शिवशंकर सोनपिपरे एवं इतेश सोनी

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उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में आदिवासियों पर किया जा रहा है अत्याचार – खेत, जमीन, घर, देव स्थल छोड़ कर जाने वन विभाग डाल रहा दबाव – शिवशंकर सोनपिपरे एवं इतेश सोनी

गरियाबंद | उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में वन विभाग को बाघ होने का कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाया है फिर भी टाईगर रिजर्व के नाम पर वन विभाग वहा निवास करने वाले आदिवासियों पर भारी अत्याचार कर रहा है | आदिवासियों को खेत, जमीन, घर, देव स्थल छोड़ कर जाने के लिए वन विभाग भारी दबाव डाल रहा है | वहा से हटने के लिए वन विभाग आदिवासियों को भारी प्रताडीत कर रहा है और लाखो रुपया देने का झूठा लालच दिया जा रहा है | परन्तु आदिवासी ग्रामीण वहा से हटने के लिए तैयार नहीं है क्योकि वहा के आदिवासी दादा – पुरखा जमाने से उक्त जंगल क्षेत्रो में निवास करते आ रहे है | उन आदिवासियों की पुश्तैनी जमीन – खेती वहा पर है , उनकी संस्कृति और देव स्थल वहा पर है , उनकी परम्परा और पुरानी यादे वहा पर है | इन सभी को छोड़ कर आदिवासी वहा से चले जायेंगे तो फिर आदिवासियों की पूरी संस्कृति ही समाप्त हो जायेगी | इसलिए अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए आदिवासी वहा से हटना नहीं चाहते है | परन्तु वन विभाग आदिवासियों को हटाने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपना रहा है | पहले तो वन विभाग ने आदिवासियो को वहा से हटने के लिए लाखो रुपया का लालच दिया जब आदिवादी वहा से हटने से इनकार कर दिया तो वन विभाग जोर जबरदस्ती करना शुरू कर दिया है और आदिवासियों को वहा से हटाने के लिए कई प्रकार के छल कपट करने पर उतारू  हो गया है |

वन विभाग के द्वारा झूठे मामलो में आदिवासियों को फंसाया जा रहा है –

आदिवासियों को वहा से हटाने के लिए कई प्रकार के छल कपट करने पर उतारू हो गया है | दबाव डालने के लिए वन विभाग ने आदिवासियों को कई झूठे मामलो में फंसाया है | वहा के आदिवासी सालो से कृषि करते आ रहे है परन्तु वन विभाग ने वन भूमि पर खेती करने व पेड़ काट कर खेत बनाने का झूठा आरोप लगा कर आदिवासियों को जेल भेज दिया है | वन विभाग वाले आदिवासियो के घरो में घुस कर फावड़ा, गैती, टंगीया को जबदस्ती जब्ती बनाते है और अपराध कायम कर जेल भेज देते ही | इस प्रकार के कई मामले उक्त इलाके में हो रहे है |

वनोपज संग्रहण पर प्रतिंबंध लगाकर आदिवासियों से रोजगार का साधन छीन लिया गया है-

उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में निवास करने वाले आदिवासियों के पास रोजगार व आजीविका का कोई अन्य साधन नही है इसलिए वे वनोपज संग्रहण कर अपना जीवन यापन करते है | परन्तु वन विभाग ने टाईगर रिजर्व के नाम पर वनोपज संग्रहण पर प्रतिबन्ध लगा दिया है इसलिए आदिवासियों को अपने परिवार का पालन पोषण करने की विकराल समस्या खड़ी हो गयी है | उनकी आर्थिक स्थिति इतना ज्यादा खराब है कि वे राशन नहीं खरीद सकते ही जंगल के कंद  मूल खा कर जिंदगी जीने मजबूर है , अपने झोपडी की मरम्मत भी नही करा सकते है इसलिए झोपडी के क्षतिग्रस्त होने व टुट फुट जाने से मुश्किलो के बीच कड़कड़ती ठंड, बारिस, गर्मी के मौसम मे जिंदगी गुजारने को  मजबूर है | उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में वनोपज संग्रहण पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाने के बाद 2000 रुँपये वार्षिक मुआवजा राशि ग्रामीणों को देने की बात वन विभाग ने कही थी परन्तु उक्त मुआवजा राशि भी गरीब ग्रामीणों को नहीं दिया जा रहा है |

वन विभाग गाँवो में बिजली लगाने भी नहीं देता है

उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के जंगलो के भीतर बसे गाँवों में वन विभाग बिजली लगाने भी नहीं देता है | वन विभाग की आपत्ति के कारण आज तक कई गाँवों में बिजली  नहीं लग पाई है | बिजली की सुविधा नहीं होने के कारण इन ग्रामो में शाम होते ही धुप्प अंधेरा छा जाता है | पुरा क्षेत्र अंधेरे के आगोश में समा जाता है आज भी 21वीं सदी मे यहां के लोगो को रात के अंधेरे को दूर करने के लिए लालटेन का सहारा लेना पड़ रहा है और इन लालटेनो मे रौशनी के लिए मीलो दूरी तय करने के बाद दो लीटर मिट्टी तेल नसीब होता है | इन अंतिम ग्रामो से उड़ीसा के ग्राम भी नजर आते है लेकिन उडीसा के उन ग्रामो मे बिजली चकाचक जलती नजर आती है परन्तु इनके गावो में अन्धेरा छाया होता है |

आदिवासियो के गाँवों में सडक बनाने पर वन विभाग ने लगाई है रोक –

उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के जंगलो में निवास करने वाले आदिवासियों के आने जाने के लिए शासन ने गाँवों में सडक मार्ग स्वीकृत किया है परन्तु वन विभाग ने गाँव में सडक बनाने पर रोक लगा दिया है | वन विभाग का कहना है की पूरा जंगल वन विभाग का है इसलिए वन विभाग की अनुमति के बिना सड़क नहीं बनाया जा सकता है | सडक बनाने की अनुमति मांगने पर वन विभाग अनुमति भी नहीं देता है | सडक नहीं बन पाने के कारण आदिवासी ग्रामीण कच्ची पगडंडीयो के रास्ते आने जाने को मजबूर है |

उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व से आदिवासियों को नहीं हटाये जाने की मांग को लेकर ग्रामीणों ने किया है बैठक

तहसील मुख्यालय मैनपुर से 32 किलोमीटर दूर उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व के ग्राम बम्हनीझोला मे उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के कोर एवं बफर क्षेत्र के 17 ग्रामों के सैकड़ों ग्रामीणों ने बैठक कर वन प्रशासन की विस्थापन योजना का विरोध करते हुए अभयारण्य क्षेत्र से ग्रामीण रहवास को न हटाने की मांग सरकार से की है । इस मामले को लेकर एक प्रतिनिधिमंडल कलेक्टर श्याम धावड़े से मुलाकात कर उनकी उपस्थिति में महापंचायत ग्रामसभा का आयोजन करने का निर्णय लिया है।  इस हेतु जल्द ही प्रतिनिधिमंडल गरियाबंद कलेक्टर से मिलने गरियाबंद जाएगा। बैठक मे प्रमुख रूप से आदिवासी नेता दलसुराम मरकाम, विशाल सोरी, टीकम सिंह, बैजनाथ नेताम, महनसिंग, गोपाल नेताम, हरिश मांझी, नकछेड़ा सोरी, चमार सिंह, अर्जुन नायक, टीकम नागवंशी, जयराम, पुनीत राम, रूपेन्द्र कुमार सोम, मोहनसिंग, कैलाश सहित बड़ी संख्या मे ग्रामीण उपस्थित थे।

उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व से आदिवासियों को हटाये जाने के  विरोध में नक्सली भी हाईवे जाम कर जता चुके है विरोध

उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व से आदिवासियों को हटाये जाने के  विरोध में नक्सली भी हाईवे जाम कर विरोध जता चुके है | छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में नक्सलियों ने पूर्व में जगह-जगह पेड़ गिराकर नेशनल हाइवे-130 जाम कर दिया था | जिसके कारण रात नौ बजे से ही इस मार्ग पर दोनों तरफ से आवागमन बंद रहा था | नक्सलियों ने मैनपुर थाने के धवलपुल, जुगाड़, इंदागाव और कोयबा के समीप सड़क पर पेड़ काटकर गिराए थे। घटना की जानकारी मिलने के बाद मैनपुर पुलिस मौके पर पहुंची और सड़क से पेड़ों को हटाकर यातायात बहाल किये थे | नक्सलियों के मैनपुर ओडिशा  कमेटी ने उदंती टाइगर रिजर्व से गांवों के विस्थापन के विरोध में 25 जून को एकदिवसीय बंद का आह्वान भी किया था। मौके से बरामद बैनर और पर्चे में कथित दमन और विस्थापन का विरोध करते हुए ओडिशा और पूर्वी छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान किया गया है। नक्सलियों ने उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व से आदिवासियों को हटाये जाने के विरोध में पर्चे भी फेके थे |

वर्शन

01 – उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के नाम पर आदिवासियों को हटने कहा जा रहा है | अपनी पीड़ा से ग्रामीणों ने मुझे अवगत कराया है | वहा से आदिवासियों को नहीं हटाने अधिकारियों व शासन को कई बार मांग कर चुके है | जिला पंचायत की बैठक में बात राखी जायेगी तथा शासन स्टार पर भी कार्यवाही की जायेगी |”

लोकेश्वरी नेताम – जिला पंचायत सभापति, जिला पंचायत गरियाबंद

02 – उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में कोई भी बाघ नहीं है परन्तु बाघ के नाम पर वन विभाग द्वारा आदिवासियों को हटने पर विवश किया जा रहा है | यदि आदिवासियों को वहा से हटाया गया तो पूरी आदिवासी संस्कृति ही नष्ट हो जायेगी | इस संबंध में हमारे द्वारा शासन को शिकायत किया गया है |”

तीव कुमार सोनी – डायरेक्टर, प्रकृति एवं संस्कृति रिसर्च सोसाईटी

फोटो विवरण

01 – आदिवासियों को झूठे मामले में फंसाया जा रहा है

02 – आदिवासियों को टाईगर रिजर्व से नहीं हटाने की मांग करते ग्रामीण

03 – नक्सलियों ने टाईगर रिजर्व से आदिवासियों को हटाये जाने के विरोध में बैनर लगाया था

04 – आदिवासी संस्कृति

05 – आदिवासियों के घरो में घुस कर जबरदस्ती जब्ती बनाया जाता है

06 – वनोपज संग्रहण पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है

07 – टाईगर रिजर्व के मार्गो की बदहाल स्थिति

” सिनेमा एंड बियांड और नुक्कड़ कैफे द्वारा आयोजित “भारतीय सिनेमा में महिला लेखिकाओं एंव निर्देशकों का योगदान – एम.एल. नत्थानी कवि,लेखक, शिक्षाविद, भारतीय सिनेमा के लगभग 100 साल के इतिहास में महिला लेखिकाओं और निर्देशकों ने अपने कल्पनाशील विचारों एंव आधुनिक दृष्टिकोंण के साथ ही यथार्थवादी धरातल पर पुरुष पात्रों के ” संवेदनशील और साहसी पुरुषत्व ” को सिनेमा के सुनहरे पर्दे पर लगभग प्रत्येक दशक में अपनी अंतर्दृष्टि से रेखांकित किया है । अतीत से वर्तमान कालखंड में अनेक महिला फिल्मकारों ने सिनेमाई रुपहले पर्दे पर पुरानी सोच के रुढ़िवादी पुरुष पात्रों को नए परिवेश में आधुनिक दृष्टिकोंण के साथ ही मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील, बुद्धिमान होने के साथ ही अनंत गहराईयों को शिद्दत के साथ जिंदगी को जिन्दादिली के साथ जीने के लिए प्रतिबद्ध है । यह सिनेमाई पर्दे पर महिला फिल्मकारों की नई सोच और सृजन के अद्भुत हस्ताक्षर हैं । भारतीय सिनेमा के शुरूआती कालखंड में महिला फिल्मकारों में साहसी एंव प्रतिभावान फातिमा बेगम और देविका रानी उल्लेखनीय नाम हैं । समय के साथ महिला फिल्मकारों की भूमिका का चित्रण भी निरंतर बदलता रहा है । वस्तुतः सिनेमा के माध्यम से समाज में तेजी से बदलते जीवन मूल्यों को ” पुरुष पात्रों ” को महिला फिल्मकारों ने अपने आधुनिक नजरिए एंव पैनी अंतर्दृष्टि से विवधता के नए आयाम स्थापित किए हैं । महिला फिल्मकारों के सृजनशील सशक्त हस्ताक्षर :- ************************ 1 फातिमा बेगम – बुलबुल ए परिसतान 2 देविका रानी – कर्मा 3 नंदिता दास – फिराक 4 दीपा मेहता – फायर 5 अरुणा राजे – रिहाई 6 कल्पना लाजमी – रूदाली 7 अर्पणा सेन – मिस्टर एंड मिसेज अय्यर 8 मीरा नायर – मानसून वेडिंग 9 गुरविंदर चड्डा – बेंड इट लाइक बेकहम 10 अनुशा रिजवी – पीपली लाईव 11 किरण राव – धोबी घाट 12 भावना तलवार – धरम 13 रीमा कागती – तलाश 14 रेवती – मित्र माई फ्रेंड 15 मेघना गुलजार – तलवार, राजी,छपाक 16 गोरी शिंदे – इंग्लिश विंगलिश 17 जोया अख्तर – लक बाय चांस, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा,दिल धड़कने दो 18 फराह खान – ओम शांति ओम, मैं हूं ना 19 कोंकणा सेन शर्मा – अ डेथ इन द गंज 20 लीना यादव – दि एंड निष्कर्ष :- इस तरह से भारतीय सिनेमा का इतिहास महिला फिल्मकारों के सृजनशील और सशक्तिकरण के नित नई सोच और आधुनिक दृष्टिकोंण का बदलता हुआ प्रतिबिंब है । आज महिला फिल्मकारों ने ग्लोबल स्तर पर अच्छे कंटेंट राईटर के कारण सिनेमा और ओटीटी प्लेटफार्म पर भी इस डिजिटल युग में वैश्विक पहचान बनाई है । भारतीय सिनेमा में अब पुरुषों को लेकर नए दृष्टिकोंण और वैश्विक स्तर के कंटेंट राईटर निरंतर सक्रियता के साथ महिला फिल्मकारों ने समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने में आधुनिक तकनीक और विज्ञान के साथ ही नए ” संवेदनशील और साहसी पुरुषत्व ” की सिनेमाई छबि को परिभाषित करने में कामयाब हुए हैं । सादर ।

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