इतिहास के आईने में राजिम का है विशेष महत्व पुन्नी मेला न केवल आस्था, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भी हिस्सा – इतेश सोनी जिला ब्यूरो गरियाबंद

0
Spread the love


गरियाबंद – राजिम छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा शहर है, जो गरियाबंद जिले में आता है। यह शहर मुख्य रूप से श्री राजीव लोचन मंदिर के कारण प्रसिद्द है। पुरातत्ववेत्ता राजिम के सुप्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर को आठवीं या नौवीं सदी का बताते हैं। यहाँ कुलेश्वर महादेव का भी मंदिर है जो संगम स्थल पर स्थित है। यहाँ तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यह तीन नदिया क्रमशः महानदी, पैरी नदी तथा सोढ़ूर नदी है, इस त्रिवेणी संगम में तीनों नदियां साक्षात प्रकट हैं जबकि इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम में सरस्वती लुप्तावस्था में है।
यहाँ प्रति वर्ष राजिम माघी पुन्नी मेला महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जसे माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों लगता है। मेले भारतीय ग्रामीण संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। अधिकांश मेले किसी तीर्थ स्थान अथवा शुभ अवसर से सम्बद्ध होते हैं। सामाजिक एवं धार्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण इन मेलों का ग्रामीण अर्थव्यवस्था से गहरा सम्बन्ध होता है। छोटे गांवों में बाजार का अभाव होता है। यहाँ के लोग इन मेलों से ही वह वस्तुएं खरीदते हैं जो उनके गांव में आम दिनों में नहीं मिलतीं। आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग शादी ब्याह की खरीदारी तो इस मेला से ही की जाती है। छत्तीसगढ़ के मेले यहाँ की पारम्परिक संस्कृति को बचाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ में लगने वाले विभिन्न मेलों का एक क्रम होता है, लोगों और व्यपारियों को यह पहले से ही ज्ञात होता है। वे इन मेलों में जाने की तैयारी उसी प्रकार करते हैं।
राजिम मेले की एक विशेषता यह भी है कि यह महानदी के किनारे और उसके सूखे हुए रेतीले भाग पर लगता है। जगह जगह पानी भरे गड्डे और नदी की पतली धाराएं मेले का अंग होती हैं। इन्ही धाराओं पर बने अस्थाई पुल से हजारों लोग श्री राजीव लोचन मंदिर से श्री कुलेश्वर महादेव मंदिर को आते-जाते हैं। तरह-तरह के सामानों की दुकानें, सरकारी विभागों की प्रदर्शनियां एवं खेल-तमाशों के बीच एक ओर सत्संग तो दूसरी ओर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहते हैं।
राजिम नगरी के नामकरण के संबंध में जनश्रुति के अनुसार राजा जगतपाल इस क्षेत्र पर राज कर रहे थे तभी कांकेर के कंडरा राजा ने इस मंदिर के दर्शन किए और उसके मन में लोभ जागा कि यह मूर्ति तो उसके राज्य में स्थापित होनी चाहिए। वह सेना की सहायता से इस मूर्ति को बलपूर्वक ले चला। मूर्ति को एक नाव में रखकर वह महानदी के जलमार्ग से कांकेर रवाना हुआ पर धमतरी के पास रूद्री नामक गांव के समीप नाव डूब गई और मूर्ति शिला में बदल गई। डूबी नाव वर्तमान राजिम में महानदी के बीच में स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर की सीढ़ी से आ लगी। राजिम नामक तेलिन महिला को यहाँ नदी में विष्णु की अधबनी मूर्ति मिली जिसे उसने अपने पास रख लिया। इसी समय रत्नपुर के राजा वीरवल जयपाल को स्वप्न हुआ, फलस्वरूप उसने एक विशाल मंदिर बनवाया। राजा ने तेलिन से मंदिर में स्थापना हेतु विष्णु मूर्ती देने का अनुरोध किया , तेलिन ने राजा को इस शर्त पर मूर्ति दी कि भगवान के साथ उनका भी नाम जोड़ा जाय। इस कारण इस मंदिर का नाम राजिमलोचन पड़ा, जो कालांतर में राजीव लोचन कहलाने लगा। मंदिर परिसर में आज भी एक स्थान राजिम के लिए सुरक्षित है। पकी हुई ईंटो से बने इस राजीव लोचन मंदिर के चारों कोण में श्री वराह अवतार, वामन अवतार, नृसिंह अवतार तथा बद्रीनाथ का स्थान है। गर्भगृह में विष्णु की श्यामवर्णी चतुर्भुज मूर्ति है जिनके हाथों में क्रमशः शंख, चक्र, गदा और पद्म है। बारह खंबों से सुसज्जित महामंडप के प्रत्येक स्तम्भ पर सुन्दर मूर्तियां उत्कीर्ण की गयी हैं। यहाँ राजीवलोचन की आदमकद प्रतिमा सुशोभित हैं । उनके सर पर मुकुट, कर्ण में कुण्डल, गले में कौस्तुभ मणि के हार, हृदय पर भृगुलता के चिह्नांकित, देह में जनेऊ, बाजूबंद, कड़ा व कटि पर करधनी बनाई गई है। इनका श्रृंगार दिन में तीन बार बाल्यकाल, युवा व प्रौढ़ अवस्था में समयानुसार बदलता रहता है।
राजिम पुन्नी मेले का आयोजन छत्तीसगढ़ शासन एवं स्थानीय आयोजन समिति के सहयोग से होता है। मेला की शुरुआत कल्पवास से होती है पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते है। पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है। माघ पूर्णिमा से मेले का आरम्भ होता है, जिसमें विभिन्न स्थानों से हजारो साधु संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो के संख्या में नागा साधू, संत आदि आते है। लोगो में मान्यता है की जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती जब तक राजीव लोचन तथा कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते। कहते हैं माघ पूर्णिमा के दिन स्वयं भगवान जगन्नाथ पुरी से यहां आते हैं। उस दिन जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहते हैं और भक्तों को भी राजीव लोचन में ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन होते हैं। राजिम पुन्नी मेले का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है जिसमें विभिन्न राज्यों से लाखो की संख्या में लोग आते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed