मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने धान खरीदी के मुद्दे पर राज्य सरकार का समर्थन किया

0
Spread the love

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा आयोजित सर्वदलीय बैठक में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने धान खरीदी के मुद्दे पर राज्य सरकार का समर्थन किया है, लेकिन साथ ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर अपना रुख भी स्पष्ट करने की मांग की है।
पार्टी ने बोनस देने पर चावल न लेने के केंद्र सरकार के प्रशासकीय आदेश को तानाशाहीपूर्ण, गैर-कानूनी और गैर-संवैधानिक बताते हुए राज्य सरकार से इस आदेश को चुनौती देने का अनुरोध किया है।

आज की बैठक में माकपा राज्य सचिव संजय पराते तथा सचिवमंडल सदस्य बी सान्याल शामिल हुए। दोनों नेताओं ने मांग की है कि सरकार 15 नवम्बर से ही धान खरीदी शुरू करे और मंडियों में किसानों को धान का समर्थन मूल्य मिलना सुनिश्चित करे और जिन मंडियों में कम कीमत पर धान बिक रहा है, उस मंडी-प्रशासन के खिलाफ कार्यवाही करे।

माकपा ने सर्वदलीय बैठक में आप पार्टी और किसान संगठनों की बैठक में छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा को आमंत्रित न किये जाने की भी बैठक में आलोचना की है और कहा है कि केंद्र सरकार की भेदभावकारी नीतियों के खिलाफ सभी ताकतों को लामबंद किया जाना चाहिए।

सर्वदलीय बैठक में माकपा ने अपना रुख लिखित रूप से रखा है। मुख्यमंत्री को दिया गया पत्र इस प्रकार है
धान खरीदी के मामले में सर्वदलीय बैठक में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का रूख।*

  1. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी धान खरीदी के मुद्दे पर राज्य सरकार के रूख का समर्थन करती है। यह स्वागतयोग्य है कि सरकार ने कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में किये गए वादे के अनुरूप 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से किसानों का धान खरीदने की घोषणा की है। किसानों के लिए यह राहत भरा कदम है। इससे प्रदेश में आर्थिक मंदी से उत्पन्न खतरे से भी निपटने में मदद मिलेगी।
  2. लेकिन राज्य सरकार ने केंद्र से धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2500 रुपये प्रति क्विंटल करने की जो मांग की है, उससे माकपा असहमत है। पूरे देश का किसान आंदोलन स्वामीनाथन आयोग की फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की जायज मांग कर रहा है। राज्य सरकार को स्वामीनाथन आयोग की इस सिफारिश पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए।
  3. माकपा केंद्र सरकार के इस रवैये का विरोध का करती है कि किसानों को बोनस न दिया जाए, जबकि यह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। राज्य सरकार द्वारा बोनस देने से केंद्र पर कोई आर्थिक भार भी नहीं आने वाला है। केंद्र सरकार का यह रूख भी गलत है कि राज्य सरकार द्वारा बोनस देने पर चावल खरीदी नहीं की जाएगी। केंद्र सरकार का यह आदेश तानाशाहीपूर्ण, गैर-कानूनी और गैर-संवैधानिक है और राज्य सरकार द्वारा इस आदेश को चुनौती दी जानी चाहिए। केंद्र सरकार का यह किसान विरोधी रवैया है और देश के संघीय ढांचे में राज्य सरकार के साथ भेदभाव भी। असल में केंद्र सरकार राज्य सरकार को वित्तीय ब्लैकमेल कर रही है, जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
  4. माकपा राज्य सरकार से भी अनुरोध करती है कि पूर्व घोषणा के अनुसार किसानों का धान 15 नवम्बर से ही खरीदना शुरू करें। कटाई शुरू हो चुकी है और मंडियों में किसान 1500 रुपये से भी कम में अपना धान बेचने के लिए बाध्य हो रहे है। मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को मिले, यह सुनिश्चित करना राज्य सरकार का काम है। जिन मंडियों में कम कीमत पर धान बिक रहा है, वहां मंडी प्रशासन के विरूद्ध सरकार को तत्काल कार्यवाही करना चाहिए।
  5. राज्य सरकार किसान संगठनों के साथ भी बैठक कर रही है। छत्तीसगढ़ किसान सभा इस राज्य में सक्रिय एक प्रमुख किसान संगठन है, जो इस देश के सबसे बड़े किसान संगठन — अखिल भारतीय किसान सभा — से संबद्ध है। इसी प्रकार आदिवासी एकता महासभा आदिवासी किसानों के बीच काम करने वाला संगठन है, जो आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच से संबद्ध है। हमें दुख है कि छत्तीसगढ़ किसान सभा सहित जमीनी स्तर पर काम करने वाले को किसान संगठनों को बैठक में आमंत्रित ही नहीं किया गया है। अखिल भारतीय स्तर पर काम कर रहे किसान संगठनों की भागीदारी के बिना इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बैठक का उद्देश्य ही अधूरा रह जाता है। इसी तरह राजनैतिक पार्टियों की बैठक में आम आदमी पार्टी को न बुलाना भी गलत है, जबकि दिल्ली में उसकी सरकार है। राज्य सरकार का यह रवैया केंद्र की भेदभावकारी नीतियों के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करता है। राज्य सरकार को छत्तीसगढ़ की जनता के साथ केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे भेदभाव के खिलाफ सभी ताकतों को एकजुट करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed