कांकेर में 96 साल से संरक्षित है महात्मा गांधी से मिला सुराजी तिरंगा

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दुर्ग में स्व. घनश्याम गुप्ता के घर सुरक्षित रखी गयी है बापू की मीटिंग लेने वाली कुर्सी
रायपुर। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ी अनेक स्मृतियां संरक्षित हैं । कुछ को तो लोग व्यक्तिगत तौर पर सहेजे हुए हैं । कांकेर जिले के एक छोटे से गांव दुर्गुकोंडल ब्लॉक के सुरंगदाह में स्वतंत्रता सेनानी स्व. इंदुरु केवट के परिवार की चौथी पीढ़ी के तुलसी निषाद के पास 96 साल पुराना एक सुराजी तिरंगा है, जिसे महात्मा गांधी ने अपने हाथ से उनके दादा और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदुरु केवट को दिया था। इस झंडे को आज भी खास-खास मौके पर फहराया जाता है । इसी तरह दुर्ग शहर में स्वर्गीय घनश्याम गुप्ता के यहां एक कुर्सी सुरक्षित रखी हुई है, जिसपर बैठकर गांधी जी अपने दुर्ग प्रवास के दौरान बैठकें लिया करते थे ।
तुलसी निषाद और गांव वालों का कहना है कि वर्ष 1923 में जब स्वतंत्रता सेनानी इंदुरु केवट अपने एक साथी के साथ पैदल गांधी जी से मिलने के लिए धमतरी पहुंचे थे तब उनकी लगन को देखते हुए गांधी जी ने उन्हें सुराजी तिरंगा दिया था। उनके अनुसार 1923 से 1965 तक इंदुरु केवट गांव में तिरंगा फहराते रहे। उनके निधन के बाद उनके बेटे हीरालाल ने 17 साल तक स्वतंत्रता दिवस पर इसे गांव में फहराते रहे। इंदुरु केवट की चौथी पीढ़ी के तुलसी निषाद इस झंडे को स्वतंत्रता दिवस पर गांव में झंडा चौक में फहराते हैं।
इसी तरह प्रदेश के दुर्ग शहर में स्वर्गीय घनश्याम गुप्ता के यहां एक कुर्सी रखी हुई है, जिसका उपयोग गांधी जी ने अपने दुर्ग प्रवास के दौरान किया था । नवंबर’ 1933 में जब गांधी जी ने हरिजनों के उद्धार के लिए भारत अभियान की घोषणा की थी, तब उन्होंने इसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ के दुर्ग शहर से की थी। वह 22 नवंबर’1933 को गुप्ता के चंडी मंदिर मार्ग स्थित निवास पर ठहरे थे। वे 1937 से 19 फरवरी 1952 तक सीपी बरार विधानसभा के स्पीकर भी रहे । उनके नाती डॉ राघवेंद्र सिंह गुप्ता ने बताया कि गांधी जी जब यहां आए थे तो जिस कुर्सी पर बैठकर उन्होंने लोगों के साथ चर्चा किया करते थे, वह लकड़ी की कुर्सी थी, जिसे आज भी संभाल कर गाँधी जी की स्मृति में वे रखे हुए हैं।

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