One Nation One Election से राष्ट्रीय पार्टियों को फायदा, समझिए पूरी सच्चाई
नई दिल्ली
एक देश एक चुनाव को लेकर देश में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। सरकार गंभीर है, कमेटी का गठन हो चुका है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया को लेकर संशय का माहौल है। वो संशय उन आपत्तियों की वजह से है जो क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा जाहिर की गई हैं। एक देश एक चुनाव को लेकर कहा जा रहा है कि इससे राष्ट्रीय पार्टियों को फायदा होगा, क्षेत्रीय पार्टियां और ज्यादा कमजोर हो जाएंगी।
क्यों हो रहा इस प्रक्रिया का विरोध?
इसका तर्क ये दिया जा रहा है कि राष्ट्रीय पार्टियों के पास ज्यादा संसाधन रहते हैं, उनका संगठन ज्यादा मजबूत है, ऐसे में अगर साथ में चुनाव होंगे तो ये पार्टियां ज्यादा आसानी से प्रचार कर पाएंगी। वहीं दूसरी तरफ क्षेत्रीय पार्टियों को सिर्फ अपने राज्य पर फोकस जमाना पड़ेगा, ऐसे में एक्सपैंड करने के उनके सपने टूट जाएंगे। अब ये जो विरोध किया जा रहा है, इसके समर्थन में अभी तक ज्यादा तर्क नहीं दिए गए हैं। लेकिन चुनावी आंकड़े एक कहानी जरूर बताते हैं, वो इस विरोध को डीकोड करने का काम भी कर सकते हैं।
चुनावी आंकड़े क्या बता रहे?
IDFC इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट बताती है कि 1999 से 2014 तक के जो चुनाव हुए हैं, उनमें जिस पार्टी ने लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन किया, 77 फीसदी संभावना रही कि उसने विधानसभा में भी उस चुनाव में जीत दर्ज की। वहीं अगर किसी राज्य में 6 महीने तक विधानसभा चुनाव को पोस्टपोन कर दिया गया, उस स्थिति में 77 फीसदी वाला आंकड़ा गिरकर 61 प्रतिशत पर पहुंच गया।
एक आंकड़ा ये भी बताता है कि 1977 तक साथ में चुनाव हुए या ना हुए, जो भी सरकार केंद्र में रही, वो अपनी सत्ता वापसी करती रही। सिर्फ आपातकाल लगने के बाद 1977 में जो चुनाव हुआ, उसमें जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हराने का काम किया। आजाद भारत के जो पांच शुरुआती लोकसभा चुनाव रहे, तब कांग्रेस ने काफी आसानी से जीत दर्ज की और प्रचंड बहुमत के साथ सरकार भी बनाई। कुछ छोटी पार्टियों से उसे चुनौती तो मिली, लेकिन उसका वोट शेयर 40 फीसदी के करीब रहा।
चार राज्यों में साथ में हो चुके चुनाव
वैसे रिसर्च इस बात का भी खुलासा करती है कि साथ में आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में चुनाव हुआ है, यानी कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में ही हुए थे। यहां भी अरुणाचल प्रदेश ने तो राष्ट्रीय पार्टियों को फायदा देने का काम किया, बीजेपी ने 2019 में दोनों लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीता। अब राष्ट्रीय पार्टियों को तो फायदा होता ही है, एक ट्रेंड ये भी बताता है कि साथ में अगर चुनाव हों तो उस स्थिति में लोकसभा और विधानसभा दोनों ही इलेक्शन में वोटर टर्नआउट ज्यादा रहता है।