बनना चाहता था कांग्रेस अध्यक्ष लेकिन…; अशोक गहलोत को मौका चूक जाने का मलाल, पहली बार बताई मन की बात

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जयपुर

राजस्थान में इस साल के अंत में बेहद दिलचस्प चुनावी मुकाबला होने जा रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान में सत्ता परिवर्तन वाले दशकों पुराने रिवाज को बदलना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने मुफ्त बिजली, मोबाइल और 25 लाख रुपए तक का कैशलेस इंश्योरेंस तक का ऐलान किया है, जिसके बाद भाजपा भी उनके अजेंडे पर चलने को मजबूर हो गई है। हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में गहलोत ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि वह 2008 जैसी बड़ी जीत हासिल कर पाएंगे जब कांग्रेस को 153 सीटें हासिल हुईं थीं। उन्होंने पिछले पांच सालों तक सचिन पायलट के साथ चले टकराव के खत्म हो जाने के संकेत भी दिए।

पायलट के साथ टकराव की वजह से ही वह पिछले साल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते-बनते रह गए थे। इंटरव्यू के दौरान गहलोत ने इससे जुड़े एक सवाल में इस बात को खारिज किया कि उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष से अधिक मुख्यमंत्री के पद को अहमियत दी। राजस्थान की राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत को इस बात का मलाल है कि उन्हें जो पद ऑफर किया गया था उसे हासिल नहीं कर पाए। गहलोत ने यहां तक कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद मुख्यमंत्री के मुकाबले 100 गुना ज्यादा बड़ा है।

गहलोत से पूछा गया कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष बनने के ऑफर को स्वीकार ना करने का पश्चाताप है? उन्होंने कहा, 'मैं इसके लिए तैयार था। यह बहुत प्रतिष्ठित पद है, कौन कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहेगा? परिस्थितियां कुछ ऐसी हो गईं कि मैं नहीं बन सका। यह गलत धारणा है कि मैं मुख्यमंत्री बने रहना चाहता था और पार्टी प्रमुख नहीं, या मैंने इसे ठुकरा दिया। यह पूरी तरह गलत है। सोनिया गांधी सच जानती हैं, मैंने उन्हें सब बताया। मैं इसमें नहीं पड़ना चाहता क्योंकि अब हम सभी को एक साथ चुनाव लड़ना चाहिए। हालांकि मैं पार्टी प्रमुख बनना चाहता था और यह मुख्यमंत्री से 100 गुना ज्यादा बड़ा पद है। मैं आज भी महसूस करता हूं कि मैं पार्टी अध्यक्ष बन सकता था।' यह पूछे जाने पर कि क्या भविष्य के लिए विकल्प खुला है, गहलोत ने कहा कि भविष्य किसने देखा है।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव से पहले गहलोत को पद छोड़ना पड़ता और प्रदेश में पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलें थीं। मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय मकान को आलाकमान ने इसको लेकर जयपुर भेज दिया था। लेकिन ऐन वक्त पर गहलोत कैंप ने इस्तीफे का दांव चल दिया। इसके बाद चीजें पूरी तरह पलट गईं।

 

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