क्या उत्तरप्रदेश में पुल गिरना दैवीय प्रकोप है ?…
:: पत्रकार खबरीलाल की विशेष टिप्पणी ::
क्या उत्तरप्रदेश में पुल गिरना दैवीय प्रकोप है ?
आज दिनांक 11 अगस्त 2018 को उत्तरप्रदेश के लखनऊ और गोरखपुर के बीच बन रहे निर्माणाधीन पुल अचानक गिर गया जिसमें बड़े तादाद में लोगों के दबे होने की बात सामने आ रही है। कुछ माह पहले बनारस (काशी) में भी निर्माणाधीन पुल गिरा जिसमे कई लोगों की असमय मृत्यु हुई। अब प्रश्न यहां यह उठ रहा है कि कहीं यह दैवीय प्रकोप तो नहीं, क्यों कि विश्व की प्राचीन धर्म नगरी तथा बाबा भोलेनाथ की नगरी बनारस (काशी) जो पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है तथा महंत योगी राज्य के संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं वहां विकास के नाम पर प्रशासन द्वारा कई प्राचीन मंदिरों को ध्वस्त किया गया है तथा देव मूर्तियाँ खंडित अवस्था मे मिली जिसकी जानकारी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के शिष्य प्रतिनिधि दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया को बताया था जिसे प्रमुखता के साथ कई समाचार पत्रों में प्रकाशित भी हुआ और चैनलों में भी प्रसारित हुए।
ज्ञात हो ही विगत कई महीनों से अकेले दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती , दंडी हाथ मे लिए एक विशुद्ध धर्म योद्धा की तरह मन्दिरों को बचाने हेतु बर्लिन वाल के रूप में अपने कुछ अनुयायियों के साथ खड़े हुए हैं और मंदिर बचाओ आन्दोलनम का नेतृत्त्व कर रहे है। पुराणों में वर्णित 56 विनायकों में से दो विनायक मन्दिरों के साथ साथ व्यास जी के राधा कृष्ण मंदिर, भारत माता मंदिर (महा लक्ष्मी मन्दिर) तोड़ दिए गए जिसके कारण देव मूर्तियाँ जो सदियों से पूजी जा रही थी वह खंडित हो गई और सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुछ मूर्तियाँ मलबे में भी तब्दील कर दी गई या गायब कर दी गई है। स्वामिश्री: का कहना है कि मन्दिरों को क्यों तोड़े जा रहे हैं जो सनातन धर्म के पूजन का स्थल है, आस्था का केंद्र है, एकता का प्रतीक है और सर्वोपरि हमारे देवता वहां वास करते हैं।
स्वामिश्री: ने नंगे और रक्तरंजित पांव से चलकर काशी के सभी देवताओं से माफी मांगी, सर्वोदेव कोपहार महायज्ञ किया और इसके बावजूद जब शासन और प्रशासन के कानों में जूं नहीं रेंगी तब स्वामिश्री ने पराक व्रत (उपवास) किया। क्या देवतागण स्वामिश्री: के घोर तपस्या को देख नहीं रहे हैं ? क्या सनातन धर्मी के लोग नहीं देख रहे हैं। हो सकता है देवतागण स्वामिश्री: के इस घोर तपस्या को देख कर दुखी भी हैं और खुश इसलिए कि कोई तो एक घोर तपस्वी है जो हम देवताओं के मंदिरों और विग्रहों को बचाने के लिये उठ खड़ा हुआ है। लेकिन लगता है देवताओं को भी स्वामिश्री: के इस घोर तप को देखकर कष्ट हो रहा है जिस हेतु वे बीच बीच मे संकेत दे रहे हैं। अभी भी समय है यदि काशी में मन्दिर तोड़ना नहीं रोका गया और काशी को अपने पुराने स्वरूप में नहीं रख गया तो हो सकता है कहीं शिव जी के त्रिशूल में बसी नगरी से स्वयं भोले शंकर अपना त्रिशूल ही न हटा लें और पूरा काशी देव विहीन हो जाये।
सबसे बड़ी बात जो काशी में अभी तक सामने आई कि काशी वासियों ने मौन क्यों धारण करके रखे हैं और अपने आंखों के सामने ये होते देख रहे हैं। जब कि प्रत्येक को जानकारी है कि स्वामिश्री: प्रत्येक के हितों के रक्षा के लिए धर्म युद्ध कर रहे हैं फिर भी काशी वासी चुप हैं। क्या काशी के लोग कौरव रूपी होकर अधर्म का साथ दे रहे हैं ? यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है ? पहले तो काशी वासियों और अन्य शहरों में जहां मन्दिर तोड़े जा रहे हैं वे कौरवों के मानसिकता के हैं या पांडवों के मानसिकता के हैं इसे सिद्ध करे ? सभी जानते हैं धर्म युद्ध मे भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म का साथ दिया था और अंत मे धर्म की ही विजय हुई थी।
” जागिये – जगाइए – मन्दिरों को बचाइए ” वाला नारा खूब प्रचलित हो रहा है।