जीवात्मा के दो शरीर और पांच कोश होते हैं :: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती.

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जीवात्मा के दो शरीर और पांच कोश होते हैं :: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

खबरीलाल रिपोर्ट (वृंदावन) ::- द्विपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती के 68 वे चातुर्मास्य व्रत अनुष्ठान में प्रातःकाल महाराजश्री ने स्वयं रास लीला का आनन्द लिया। रासलीला में भगवान् कृष्ण ने ” पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्तया प्रयक्षति” और सकाम उपासकों के स्वभाव पर अपना पक्ष रखा। उन्होने कहा कि सकाम उपासक अपनी ओर तो देखते नहीं, कार्य सिद्ध न होने पर थोड़े समय में मुझे ही गाली देने लगते हैं। रासलीला में विभिन्न बाल लीलाओं का मनोहरी मंचन हुआ।

वेदान्त चर्चा में पूज्य महाराजश्री ने पंचकोशों का रहस्य पुनः समझाया।
जीवात्मा के दो शरीर और पांच कोश –
महाराजश्री ने वेदान्तकक्षामें बताया कि शरीर में प्रवेश करने के बाद आत्मा अपने को शरीर मान लेता है। यही उसकी जीवरूपता है। यह शरीर दो प्रकार का है – एक, सूक्ष्म शरीर जो भौतिक नेत्रोंसे दिखाई नहीं देता और दूसरा, प्रत्यक्ष दिखने और व्यवहार में आने वाला हमारा आपका यह स्थूल शरीर। जीव पांच परतों से ढंका हुआ है जिन्हें पञ्चकोश कहते हैं। वह हैं – अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय कोश।
अन्नमय कोश – आकाश इत्यादि पञ्चीकृत पञ्च महाभूतों के त्रिगुगुणात्मक अंश से उत्पन्न यह स्थूल शरीर ही अन्नमय कोश है।
प्राणमय कोश – अपञ्चीकृत पञ्चमहाभूतों के राजस अंश से उत्पन्न सूक्ष्म शरीर में पांचप्राण पांच कर्मेन्द्रियों के साथ मिलकर प्राणमय कोश कहलाता है। (ध्यान रहे, दिखाई देने वाले हाथ पैर इत्यादि कर्मेन्द्रियां नहीं, कर्मेन्द्रियों के उपकरण हैं)।

नेत्र, श्रोत्र, त्वक्, रसना और घ्राण – यह पांच ज्ञानेन्द्रियां पञ्च महाभूतों के सात्विक अंश से बनी हैं । इन पांच ज्ञानेन्द्रियों के साथ जब संकल्प-विकल्प करने वाला संशयात्मक मन जुड़ जाता है तब इनके और मनके संयुक्त रुप को मनोमय कोश कहते हैं।
( ध्यातव्य है कि जिह्वा में दो इन्द्रियां हैं। इसमें स्वाद का ज्ञान कराने वाली ज्ञानेन्द्रिय भी है जो पञ्च महाभूतों के सात्विक अंश से बनी है और वाणी का कार्य करने वाली कर्मेन्द्रिय भी है जो पञ्च महाभूतों के राजस अंश से बनी है) ।

विज्ञानमय कोश- उक्त पांच ज्ञानेन्द्रियां जब निश्चयात्मिका बुद्धि से संयुक्त हो जाती हैं तब इन्हे विज्ञानमय कोश कहते हैं। अर्थात् मन + ज्ञानेन्द्रियां = मनोमय कोश, और बुद्धि + ज्ञानेन्द्रियां = विज्ञानमय कोश।

आनन्दमय कोश – इसका विवरण थोड़ा अधिक क्लिष्ट है। अतः इसकी चर्चा अलग पोस्ट में करेंगे।

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