*डीईओ सहित 6 नोडल अधिकारियों के खिलाफ होगा याचिका दायर*
*डीईओ सहित 6 नोडल अधिकारियों के खिलाफ होगा याचिका दायर*
० शिक्षा का अधिकार कानून को डाला रद्दी टोकरी में
० नोडलों द्वारा बनाया जा रहा है अनावश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने का दबाव
राजनांदगांव। केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना को धता बताते हुए वीवीआईपी राजनांदगांव जिले में शिक्षा अधिकारी और कर्मचारी गरीब बच्चों के जीवन और भविष्य के साथ खिलवाड़ करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे है। पीड़ित पालकों ने कलेक्टर से लेकर डीईओ तक गुहार लगाते फिर रहे है, लेकिन अभी तक गरीब पालकों को न्याय मिलता नहीं दिख रहा है। शिक्षा का अधिकार कानून 2009 की धारा 14 की उपधारा 2 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि यदि पालक के पास उनके बच्चों का जन्म संबंधी कोई दस्तावेज नहीं है, तो पालक सादे कागज में स्वयं जन्मतिथि लिखकर स्वयं हस्ताक्षर कर जमा करा सकते है। जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने की स्थिति में बच्चों को प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता है, लेकिन शिक्षा अधिकारी से लेकर नोडल अधिकारियों द्वारा कानून का स्पष्ट रूप से उल्लंघन कर पालकों द्वारा प्रस्तुत हस्ताक्षरयुक्त स्वयं घोषणा पत्र को लेने से इंकार किया जा रहा है और बच्चों को प्रवेश से वंचित किया जा रहा है, जो शिक्षा का अधिकार कानून का घोर उल्लंघन है। वहीं नोडल अधिकारियों द्वारा निजी स्कूलों को लाभ पहुंचाने के लिए कम से कम बच्चों को प्रवेश कराने की मंशा से पालकों को अनावश्यक एवं औचित्यहीन दस्तावेजों की मांग कर परेशान किया जा रहा है। अब इस पूरे मामले को लेकर छत्तीसगढ पैरेंट्स एसोसिएशन दस्तावेजी साक्ष्य के साथ डीईओ सहित 6 नोडल अधिकारियों के खिलाफ माण् उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया जा रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा गरीब बच्चों को अनिवार्य निःशुल्क एवं गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने की योजना किताब तक सिमट कर रह गयी है। पालकों ने कभी सपनों में भी नहीं सोचा था कि उनके बच्चों के मौलिक अधिकार को दिलवाने के लिए उनको एडी-चोटी का जोर लगाना पड़ जाएगा। उसके बाद भी इस कानून का लाभ उनको इतने आसानी से मिलने वाला नहीं है। मा. उच्च न्यायालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ ने अपने आदेश दिनांक 14.09.2016 में यह स्पष्ट निर्देशित किया है कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को ज्यादा से ज्यादा प्रवेश दिया जाये, लेकिन वीवीआईपी जिले के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा कानून और न्यायालय के आदेशों को ताक में रखकर निजी स्कूलों के लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से कम से कम प्रवेश दिलवाने की योजनाओं पर काम कर रहे है। राजनांदगांव जिले में साढे 4 हजार से अधिक आरक्षित सीट है, लेकिन अधिकारियों का ऐसा ही रवैय्या रहा तो 1 हजार सीट भी नहीं भर पाएगा, जिसका सीधा लाभ निजी स्कूलों को मिलेगा, क्योंकि गरीब पालक आरटीई में प्रवेश नहीं होने की स्थिति में अपने बच्चों को मजबूरन उन्हीं निजी स्कूलों में मोटी फीस देकर पढ़ायेंगे। पालकों से जो जानकारी प्राप्त हो रही है, कि नोडल अधिकारियों द्वारा थोक के भाव में उनके आवेदनों को अनावश्यक दस्तावेजों की मांग कर निरस्त किया जा रहा है। इसकी शिकायत छग पैरेंट्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने कलेक्टर से लेकर डीईओ तक की गई, लेकिन नोडल अधिकारियों द्वारा अपने रवैय्ये में कोई बदलाव नहीं ला रहे है। शायद पालकों को अब कोर्ट से ही कोई राहत मिले, क्योंकि जिले के अधिकारियों ने तो मन बना लिया है कि कम से कम गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश मिले और निजी स्कूलों के इसका सीधा लाभ मिले।
*वर्सन….*
गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार का समुचित लाभ दिलाने के लिए मेरे द्वारा कई बार कलेक्टर से लेकर डीईओ तक गुहार लगाया जा चुका है, किंतु पालकों की तकलीफ कम होने की नाम ही नहीं ले रही है। पालकों को अनावश्यक दस्तावेजों की मांग भी की जा रही है, इसकी शिकायत भी की जा चुकी है। पालकों को किसी भी प्रकार से राहत मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही है। 18 जून को उच्च न्यायालय बिलासपुर में पुनः आरंभ होने वाला है, जिसकी तैयारियां में हम दस्तावेजी साक्ष्य एकत्रित कर रहे है, ताकि गरीब बच्चों को उनके निःशुल्क शिक्षा का समुचित लाभ दिलाया जा सके।
*क्रिष्टोफर पॉल, प्रदेश अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन*
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