पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला के पट्टे जारी करने के लिए प्रदर्शन करते पत्रकार…. पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला का गतिरोध दूर करने की मांग पर 5 साल पूर्व हुए पत्रकारों के धरने पर आकर आश्वासन देते CM श्री अशोक गहलोत..

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रायपुर / जयपुर लिपिकीय त्रुटि में उलझा जेडीए, परेशान 571 आवंटी पत्रकार

10 साल में नहीं समझ पाए न्‍यायालय का निर्णय

जयपुर। पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला पत्रकार नगर 571 आवंटी जेडीए की एक लिपिकीय त्रुटि का दंश झेल रहे हैं। यूडीएच के अधिकारियों को 10 साल से उच्च न्यायालय का साफ सुथरा निर्णय भी समझ नहीं आ रहा है। जेडीए ने एक बार फिर तथ्यात्मक रिपोर्ट सरकार को भेजकर मार्गदर्शन मांगा है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को साल 2010 से 2013 के बीच दिए अपने ही आदेशों को पालना यूडीएच से करानी शेष है।

हमने जब पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला योजना में आए गतिरोध की जमीनी हकीकत का पता किया तो सामने आया कि पिछले 4 माह से प्लॉटों के पट्टे के लिए गांधीवादी प्रदर्शन कर रहे आवंटियों की तो गतिरोध में कोई गलती नहीं है। सभी तत्कालीन एक लिपिकीय त्रुटि का ही खामियाजा भुगत रहे हैं। 

नियमानुसार हुआ 571 योग्य पत्रकारों का चयन

पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला पत्रकार नगर की आवंटन प्रक्रिया के दौरान राज्‍य सरकार के 20 अक्‍टूबर, 2013, 4 जनवरी, 2011 और 28 फरवरी, 2013 के आदेशों के मुताबिक योजना के ब्रोशर में छपी पात्रताओं के अनुसार 571 पत्रकारों का उच्‍च स्‍तरीय संवैधानिक कमेटी ने चयन किया था। इस कमेटी में बतौर अध्‍यक्ष तत्‍कालीन यूडीएच सचिव जीएस संधू और बतौर सचिव तत्‍कालीन डीपीआर डायरेक्‍टर लोकनाथ सोनी, बतौर सदस्‍य डीपीआर सचिव राजीव स्‍वरूप और अनेक दिग्‍गज पत्रकारों ने 571 पत्रकारों की आवं‍टन की योग्‍यताएं जांची थी। इसके बाद जेडीए ने लॉटरी कर सभी को प्‍लॉट भी आवंटित कर दिए थे।

जेडीए ने मानी लिपिकीय त्रुटि

नायला योजना में जेडीए जिस अधिस्वीकरण प्रमाण पत्र पर फंसा है, उसे खुद सरकार और जेडीए लिपिकीय त्रुटि मान चुके हैं। आवंटियों की पात्रता पर सवाल उठाती पीआईएल पर उच्च न्यायालय का 3 जुलाई, 2013 का निर्णय आज तक जेडीए को समझ नहीं आया है। जेडीए ने प्रार्थना पत्र देकर स्पष्टीकरण भी मांगा, लेकिन न्यायालय ने विधिसम्मत तथ्यों और नियमों के अनुसार 3 जुलाई के निर्णय के मुताबिक ही कार्यवाही के निर्देश दिए। 15 दिन में जरूरी कार्यवाही नहीं होने से नाराज न्यायालय ने प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया था। प्रार्थना पत्र में जेडीए ने योजना के सभी तथ्य न्यायालय को बताते हुए कहा था कि योजना के ब्रोशर का बिंदु 13 में अधिस्वीकरण प्रमाण पत्र वाला पैरा एक लिपिकीय त्रुटि है। चूंकि यह योजना केवल पत्रकारों के लिए बनी है और यह प्रमाण पत्र इसकी पात्रता नहीं है।

नियम 1995 की पालना भी हो चुकी

निर्णय में अधिस्वीकरण संबंधी ब्रोशर के बिंदु 13 के अधिस्‍वीकरण प्रमाण पत्र वाले पैरा को राजस्थान अधिस्वीकरण नियम 1995 बताया गया है, जिसकी पात्रताएं भी निर्णय में लिखी गई है। इन पात्रताओं में महज 5 वर्ष की सक्रिय पत्रकारिता का अनुभव प्रमुख है और यही योजना के ब्रोशर और सरकार के सर्कुलर आदेशों की पत्रकार होने की प्रमुख पात्रता भी है। तत्कालीन राज्य स्तरीय पत्रकार आवास समिति में शामिल डीपीआर के सचिव राजीव स्वरूप और डायरेक्टर लोकनाथ सोनी तथा अन्य अति वरिष्ठों ने सभी 571 आवंटियों के 5 वर्ष की सक्रिय पत्रकारिता का अनुभव भी जांचकर नियम 1995 की पालना भी करा दी थी। मजे की बात है कि कोर्ट में याचिकाकर्ता की शिकायत में भी 19 आवंटियों पर नामजद आरोप लगाए गए थे, जिसमें उनके नियम 1995 की पालना नहीं होने की ही शिकायत थी। जिस अधिस्‍वीकरण प्रमाण पत्र पर जेडीए उलझा है वह न तो शिकायत का विषय था और न ही न्‍यायालय के जारी निर्देश में अनिवार्य किया गया है। 

हट चुकी है इकोलॉजिकल की लिपिकीय त्रुटि

वर्ष 2017 में हाई कोर्ट के इकॉलोजिकल जोन सम्‍बन्‍धी निर्णय की पालना में नायला पत्रकार नगर की योजना को ही इकॉलोजिकल घोषित कर दिया गया था। लेकिन पत्रकारों की पड़ताल में खुलासा होने के बाद इसे लिपिकीय त्रुटि करार देकर योजना से हटाया जा चुका है।

अपने आवंटन के सत्‍य के लिए पिछले 4 माह से संघर्ष कर रहे 571 आवंटियों ने पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला की प्रक्रिया में हुई एक लिपिकीय त्रुटि को तो खुद दूर कराया है और अब दूसरी लिपिकीय त्रुटि को हटवाने के लिए संघर्ष जारी है। 

क्या अशोक गहलोत पत्रकारों की मांग पूरी करेंगे।

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