पुराणों की काशी में अब तक दो विनायक ध्वंस का शिकार हो चुके हैं।
पुराणों की काशी में अब तक दो विनायक ध्वंस का शिकार हो चुके हैं।
पुराणों की काशी में अब तक दो विनायक ध्वंस का शिकार हो चुके हैं। सरकार से जनता पूछे कि सनातन आस्था के इन प्रतीकों का ध्वंस करके जनहित के कौन से सवालों का समाधान किया जा रहा है। इस तोड़फोड़ के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर मणिकर्णिका घाट तक एक सड़क बनायी जायेगी जिसे काशी विश्वनाथ कारीडोर कहा जायेगा और ये सबकुछ केवल इसलिए की दर्शन पूजन के लिए वीआईपीज को विश्वनाथ की गलियों मे पैदल न चलना पड़े।
दुनिया देखे कि कैसे काशी मे सनातन आस्थाओ को पुलिसिया बूटों के नीचे कुचला जा रहा है। सत्ता का मद कैसे किसी को तानाशाह और लोगों का गुनाहगार बना देता है। देश की आध्यात्मिक राजधानी अपने इतिहास के किन काले दिनो से गुजर रही है इसका विचार और मंथन होना चाहिए और इसे रोका जाना चाहिए। दुनिया के सबसे पुराने नगर काशी की धार्मिक पहचान और आध्यात्मिक विरासत किस तरह नष्ट की जा रही है। काशी विश्वनाथ की धरती आज अनियोजित और अनियंत्रित विकास की कीमत चुका रही है। खुद को हिन्दू और हिन्दुत्व के सबसे बड़े संरक्षक बताकर जनमत लूटने वाले लोगों ने यह कैसा घृणित पाप कर डाला है यह समझ से परे है। चित्रों को देखकर जनता खुद समझ सकती है कि जनहित के नाम पर यह कौन सा व्यापार हो रहा है और यह सब चुपचाप क्यों हो रहा है।
पुराणों मे काशी क्षेत्र मे छप्पन विनायकों के अधिष्ठान का वर्णन है, उनमे से दो विनायक अबतक इस ध्वंस का शिकार हो चुके है। जनता उद्वेलित है क्योंकि यह चोट जनता के / सनातन धर्मी के मर्म पर लगी है। सूत्र बताते हैं कि जनता आन्दोलित इसलिए नही हो पा रही है क्योकि उसे बांटकर और धमकाकर, पैसों का प्रलोभन देकर और बरगलाने वाले सपने दिखाकर नाथ दिया गया है। यह तांडव गंगापुत्र की नाक के ठीक नीचे बाकायदा उनकी सरपरस्ती मे काशी विश्वनाथ मंदिर की उन जगतप्रसिद्ध गलियों मे चल रहा है जिनके दर्शन करने दुनिया भर से लोग आते है और यह तांडव अदालत के उन आदेशों को धता बताकर हो रहा है, जिनमे स्पष्ट कहा गया है कि गंगा के दोनो किनारो पर दो – दो सौ मीटर की हद मे कोई नया निर्माण या ध्वंस नही किया जा सकता।
बनारस के लगभग सभी जन प्रतिनिधि, सभी एमएलए, एमपी, मंत्री और पूरा नगर निगम आज बीजेपी के पास है और एकतरफ से सभी खामोश है। क्यों हैं ये खामोश यह सबसे बड़ा सवाल है। जनहित – जनहित का नारा लगाकर विकास – विकास का शोर मचाती सरकारो से पूछे कि सनातन आस्था के इन प्रतीकों का ध्वंस करके जनहित के कौन से सवालों का समाधान किया जा रहा है ? देश का आम हिन्दू जनमानस अपने साधुओं, संतो को टूटते विनायक विग्रहो की चौखटो पर धूल चाटता देख सके करके किया जा रहा है ?दुनिया द्वारिकापीठ के भावी शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के हक्का बक्का हुए चेहरे की आज गवाही बना । स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को यह देखकर अत्यंत पीड़ा हुई और वे इस हेतु व्यथित हैं।