आखिर क्यो कहा जाता है राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयागराज
उरेन्द्र साहू कोपरा 9302034542
आखिर क्यो कहा जाता है राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयागराज
कोपरा / भारत देश में जो महत्व प्रयाग तीर्थ इलाहाबाद का है, छत्तीसगढ़ प्रदेश में वही महत्व प्रयाग तीर्थ राजिम का है। राजिम को धर्म नगरी,लोक कला संस्कृति का गढ़ कहा जाता है। राजिम में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी की संगम की तरह पैरी.सोंदूर और महानदी का संगम स्थल त्रिवेणी है। इसी त्रिवेणी संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव का मंदिर है। इस कुलेश्वर महादेव के संबंध में यह किवदती है कि 14वें वर्ष के वनवास काल में माता सीता जी ने संगम स्थल में स्नान कर अपने कुल देवता की नदी के रेत से विग्रह बनाकर पूजा अर्चना की थी। जिस कारण उनका नाम कुलेश्वर माना जाता है। जो हमारे छत्तीसगढ़ के लिए जन आस्था का केन्द्र है।
यहां प्रतिवर्ष माघी पुन्नी मेला से शिवरात्रि तक विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। देश विदेश से साधू संतों एवं दर्शनार्थियों का शुभागमन होता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर से लगे हुए लोमश ऋषि का आश्रम है। उसी के समीप एक माह तक लोग कल्पवास करते है। राजिम क्षेत्र को छत्तीसगढ़ की पंचकोशी परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है। पंचकोशी परिक्रमा में 5 स्वायंभू शिवलिंग की लोग साधनापूर्वक यात्रा करते है। जिनमें प्रमुख श्री कुलेश्वर महादेव (राजिम), पठेश्वर महादेव (पटेवा),चम्पेश्वर महादेव (चंपारण), फणिकेश्वर महादेव (फिंगेश्वर) और कोपेश्वर महादेव कोपरा है। राजिम की पून्य नगरी पुरातत्वों एवं प्राचीन सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भगवान श्री राजिव लोचन की भव्य प्रतिमा स्थापित है। राजीव लोचन का जन्मोत्सव माघी पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर का पट बंद रहता है क्योकि जगन्नाथ श्री राजीव लोचन का जन्मोत्सव मनाने राजिम आते है। राजिम में महानदी के तट पर राजिव लोचन मंदिर परिसर से लगा सीताबाड़ी है। सीताबाड़ी में छत्तीसगढ़ शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खन्न कार्य किया रहा है। जिसमें सम्राट अशोक के काल का विष्णु मंदिर, मौर्य कालिन अवशेष,14वीं शताब्दी का स्वर्ण सिक्का, अनेक मूर्तियाँ और सिंधुघाटी सभ्यता से जुड़े अनेक कलाकृतियां मिल रही है। राजिम माघी पुन्नी मेला महोत्सव त्रिवेणी संगम स्थल में जहाँ पर आयोजित होता है। वहाँ तीन धारा की तरह तीन जिलों गरियाबंद, धमतरी और रायपुर जिला का संगम होता है। यहाँ पूरे छत्तीसगढ़ की लोक कलासंस्कृति का दर्शन होता है। गरियाबंद जिला में 32 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का योगदान उल्लेखित है। इस मेला में सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का स्टाॅल लगाकर लोगों को विशेष जानकारी दी जाती है।