लैलूंगा विधानसभा के सिटिंग विधायक को लैलूंगा जनपद का अध्यक्ष बनाना पड़ता है महंगा
लैलूंगा। यू तो रायगढ़ जिले में सारंगढ़ और लैलूंगा के मतदातों में जागरूकता की कोई कमी नही है दोनों ही विधानसभा में विधायकों का रिपीट होना नामुनकिन है। इन विधानसभा की जनता को कितना भी बरगलाने की कोशिश की जाए ये अपनी आदत के अनुरूप अपने विधानसभा का विधायक बदलने में जरा भी संकोच नही करते है।लैलूंगा विधानसभा में कुछ रोचक ही स्थिति बनती है यहाँ लैलूंगा विधयक अपनी पार्टी का जनपद अध्यक्ष बनाता है जो इस बात का प्रमाण होता है कि लैलूंगा जनपद में इस विधायक की मजबूत पकड़ है पर ठीक इसके विपरीत विधानसभा चुनाव लैलूंगा जनपद अध्यक्ष की पार्टी का चुनाव हारना तय होता है हम आंकड़े देख कर सोच में पड़ गए कि आखिर ऐसा क्यूँ? हम कुछ चुनाव का आंकड़ा देखते है मध्यप्रदेश के समय लैलूंगा विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी थे हृदय राम राठिया और बीजेपी प्रत्याशी थे स्व प्रेम सिंह सिदार तब लैलूंगा जनपद के अध्यक्ष थे हृदय राम राठिया और वे लगभग 5500 मतो के अंतर से चुनाव हार गए ।कुछ समय बाद हुवे जनपद पंचायत के चुनाव में स्व प्रेम सिंह सिदार की पार्टी से मतिया बाई लैलूंगा जनपद की अध्यक्ष बनी जो स्व प्रेम सिंह सिदार जी के साथ दल बदल कर कांग्रेस का दामन थाम ली,इसके बाद हुवे विधानसभा चुनाव में कांग्रस के प्रत्याशी थे स्व प्रेम सिंह सिदार और बीजेपी के प्रत्याशी थे सत्यानन्द राठिया इस चुनाव में लगभग 5500 मतो से स्व प्रेम सिंह सिदार को मात मिली और सत्यानन्द राठिया विधानसभा सभा का पहला मंत्री बनने का सौभाग्य मिला इसके कुछ समय उपरांत हुए जनपद पंचायत के चुनाव में सत्यानंद राठिया ने अपनी पार्टी के रतन सिंह सिदार को जनपद अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया और बाद में हुए विधानसभा चुनाव में हृदय राम राठिया से विधानसभा का चुनाव लगभग 14 हजार मतो से हार गए और विकास खण्ड लैलूंगा से पहली बार कोई विधयक बना कुछ समय बाद हुवे जनपद पंचायत के चुनाव लैलूंगा जनपद में अजीब सी उलझन आ गई दोनो ही पार्टी अब जनपद अध्यक्ष की कुर्सी से दूरी बनाए हुए थे भाग्य से इस बार जनपद अध्यक्ष की कुर्सी बिना बहुमत के ही कांग्रेस पार्टी के आदिवासी नेता चक्रधर सिंह सिदार के हाथों में लगी और उपाध्यक्ष बीजेपी का बना विधानसभा चुनाव में हृदय राम राठिया को सुनीति सत्यानंद राठिया से लगभग 14 हजार मतो से शिकस्त मिली और लैलूंगा विद्यासभा मे पहली बार कोई महिला विधायक बनी और जनपद पंचायत के चुनाव में बीजेपी की शांता साय को जनपद अध्यक्ष बनवाया।आगर इन सभी आंकड़ो में गौर किया जाये तो कही ना कही यह प्रतीत अवश्य होता है कि लैलूंगा जनपद पंचायत का अध्यक्ष बनना सिटिंग विधायक को हर बार महंगा पड़ा है और जनपद अध्यक्ष लैलूंगा की महत्वकांक्षा बढ़ने का भी विपरीत परिणाम विधायकों को अपनी कुर्सी गँवा कर चुकाया है हम यह नही कहते कि हर बार ऐसा हो पर जो आंकड़े www .nbnewsworld .com को मिले है उससे तो यही प्रतीत होता है कि लैलूंगा जनपद का अध्यक्ष जिस पार्टी का होता है उस पार्टी के विधयक को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ता है।