अपना लक्ष्य, अपनी किस्मत, अपनी वादे और जनता
रायपुर । भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा घोषित छत्तीसग़ढ़ के वर्ष 2018 के चुनाव के लिए राज्य की 90 में से 65 सीटें जीतने के लक्ष्य के जवाब में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने 70 सीटों का लक्ष्य दे दिया। ऐसी जानकारी हासिल हुई। भाजपा 65, कांग्रेस 70 राज्य की तीसरी ध्रुवी अजीत जोगी 90 सीटों का लक्ष्य निर्धारित कर सकते है। राज्य के राजनीतिक दल 65, 70 और 90 सीटों के लक्ष्य निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है। बढ़ा सोचो, अच्छा सोचो जब कोई 65 सोच सकता है तो अब भाजपा के 65, कांग्रेस के 70 और जोगी के कल्पित 90 सीटों के विश्लेषण की बात कीजिए। वर्ष 2003 में सुनिश्चित था सरकार तो कांग्रेस की ही बननी थी। चूंकि कांग्रेस ने उस समय अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाया। इसे दिलेरी कहे या इसे जोगी राज की कमजोरी कि अधिकांश कांग्रेसी कांग्रेस से टक्कर दीगर दलों में चले गये। वर्ष 2003 में छत्तीसगढ़ के पहले ही चुनाव में यहां की राजनीति का कायाकल्प कर दिया। ५२ सीटें जीतकर भाजपा की सरकार बनी । अजीत जोगी तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिये गये। जोगी राज में कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस होकर भाजपा में आने वाले विद्याचरण शुक्ल को जब महासमुंद संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी घोषित किया तो जोगी का एक झटके में उनका निलंबन समाप्त हो गया। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पतन का आधार यहीं से आरंभ हुआ। जोगी ने आते ही अपनी चौधराहट कायम करने की कोशिश की जिससे कांग्रेस में गुटबाजी का जन्म हुआ। अब विद्या भैया तो रहे नहीं। कांग्रेस चाहती तो जोगी को ही सर्वेसर्वा बना सकती थी। लेकिन कांग्रेस में कहावत है कि डाल से छूटा बंदर और कांग्रेस से निकला नेता, इनकी दुर्गती ही होती है। कांग्रेस से निकलकर यहां, वहां होते हुए विद्याचरण कांग्रेस में समाहित हो गये लेकिन जोगी कांग्रेस में रहते हुए भी कांग्रेस से बाहर हो गये। अगर वातावरण अनुकूल होता तो जोगी कभी भी कांग्रेस नहीं छोड़ते किंतु घटनाक्रम केवल काल्य जन्म के अनुकूल चलते है, नेता विशेष के नहीं । बदलते वक्त में जोगी मंत्रिमंडल के मंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस के सूबेदार बन गये और उपेक्षित जोगी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के अधिठाता। इस बीच विद्यारण शुक्ल और ऐसे तमाम नेता जो कांग्रेस को जिंदा रख सकते थे दुनिया ऐ फानी से कुचकर गये। अब छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी ने पीएल पुनिया नाम के नये प्रभारी को भेजा है। उन्हें दायित्व दिया गया है एक साथ दो मोर्चों में जूझना है। अजीत जोगी के जाने से जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई किया जाये और भाजपा से मुकाबला किया जाये। यहां दोनों बातें तो भले ही काांग्रेस से निकले नेता बंदर की करें। लेकिन अंतर स्पष्ट है। भाजपा से fिनकले नेता पीआर खूंटे से लेकर वीरेन्द्र पांडे तक का रिकार्ड मौजूद है। ताराचांद साहू से लेकर उनके पुत्र दीपक तक का इतिहास सर्व विदित है। कायदे से बंदर वाली कहावत कांग्रेस नहीं अपितु भाजपा में लागू होती है। इधर भाजपा की एक राष्ट्रीय महामंत्री मुख्यमंत्री को लेकर कई तरह की सवाल उठा रही हैं। यह सवाल तब भी उठता था जब छत्तीसगढ बना ही नहीं था। तब मध्यप्रदेश में बैठे लखीराम अग्रवाल और सुंदरलाल पटवा सोचा करते थे कि यदि छत्तीसगढ़ बन गया तो सीएम किसे प्रोजेक्ट करेंगें । समय सबको जवाब दे देता है।
अब छत्तीसगढ़ को जन्मे 17 साल हो चुके हैं। छत्तीसगढ़ की 18 वीं वर्षगांठ के बाद कौन इस राज्य की बागडोर सम्भालेगा कश्मकश इस बात की है। कांग्रेस और भाजपा दोनों की अपनी अलग-अलग रणनीति है। इस कोण में त्रिकोण को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि होगा वहीं जो जनता चाहेगी।