एक राष्ट्रभक्त का, मां भारती से, प्रार्थना और संवाद’- मनोज ‘मन’,

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ऐ मेरे देश, भारत मां, मैं तुझको याद करता हूं,ले अपने खून से, दिल से, इसे आबाद करता हूँ।
हैं उंचे भाग्य मेरे, जिनसे, तुझमें जन्म पाया है,
जहां, शक्ति को पूजा, दिल में भक्ति, सर झुकाया है।
यहां कण-कण में मीरा और राधा के कन्हाई है,
हर एक जीवन में बसते, राम जी, सीता जी, माई हैं।
शिवा, चौहान, लक्ष्मी और राणा, रण, सजाते हैं,
जहां वीरों की गाथा, झूम घर-घर, आल्हा गाते हैं।
भगत सिंह बांधकर, केसरिया साफा, झूल जाते हैं,
जहां आज़ाद, बिस्मिल, गोली खाकर, मुस्कराते है।
जिन्हें सुनकर समझकर, देश की, सेवा में तत्पर हूं,
खड़ा हू झंडा थामें, भक्ति तेरी, दिल में भरकर हूं।
नहीं दूंगा मैं आने, आंच कोई, तेरे दामन पर,
सुरक्षा में तेरा बालक, सदा, इस कर्म पावन में।
हो भीतर या परे दुश्मन के, खट्टे दांत कर दूंगा,
कसम से, गंदी नीयत और पुश्तें, साफ कर दूंगा।
है भैरव सा, सदा शिव सा, मेरा प्रतिकार प्रज्ञा है,
हो तुझसे घात, उसका नाश, यही तो धर्म आज्ञा है।
तेरे संतों ने जीवन में यही करके दिखाया है,
भगत, प्रेमी, साहसी, शूर, जिसने मुक्ति पाया है।
मां, बेटी, बहन रक्षा, में सदा, जीवन खपाने को,
चले रणबांकुरे, हम धूल में, अम्नि जगाने को।
दे मुझको धर्म आज्ञा, वीर संज्ञा, आगे जाने का,
पुनर्जीवन अगर होवे, तेरे आंचल में, आने का।
आज, हे मां, तेरा सपूत, ये फरियाद करता हूं,
ले अपने खून से, ‘मन’ से, इसे आबाद करता हूं।
जय हिंद। वंदेमातरम्। जय मां भारती।
प्रार्थी- मनोज ‘मन’, रायपुर, १५ अगस्त २०२४.

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