*ओबीसी से आने वाले जातिगत समीकरण में फिट बैठने वाले शंकर मेंहत्तर लाल साहू कांग्रेस से टिकट कटने के बाद अब लड़ेंगे निर्दलीय चुनाव*

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*ओबीसी से आने वाले जातिगत समीकरण में फिट बैठने वाले शंकर मेंहत्तर लाल साहू कांग्रेस से टिकट कटने के बाद अब लड़ेंगे निर्दलीय चुनाव*
उनके पिता मेहत्तर लाल साहू और उनका 30 सालों के राजनीतिक अनुभव देंगे दोनों पार्टियों को टक्कर,,,

 

रायपुर(छत्तीसगढ़)। कांग्रेस पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता और प्रदेश में सबसे अधिक आबादी वाले पिछड़े वर्ग साहू समाज के शंकर लाल साहू बड़ी हिम्मत दिखाकर इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने रायपुर से अपनी दावेदारी को लेकर लगातार सुर्खियों में रहे परंतु पार्टी ने जब सूची जारी करी तो उसमें शंकर लाल साहू वंचित रह गए इस बीच वे दिल्ली में लगातार 5 दिनों तक पार्टी के बड़े नेताओं से मिलने में पूरा समय दिया।इसके बाद वे राजधानी रायपुर आज लौट आए हैं, ऐसे में अब इस बात की चर्चा है कि उनका अगला कदम क्या होगा? क्या वे निर्दलीय चुनाव लड़ कर पार्टी को चुनौती देंगे या फिर अनुशासन का पालन कर पार्टी के लिए समर्पित भाव से काम करते रहेंगे। संभावना इस बात की भी है कि वे भाजपा का रुख कर सकते हैं।इस बात पर अब सबकी निगाहें टिकी हुई है।
छत्तीसगढ़ की राजनीति अब जातिगत समीकरणों के आधार पर सुर्खियों में है। कभी आदिवासी बाहुल्य कहे जाने वाले इस राज्य की गिनती पिछली कांग्रेस सरकार में पिछड़े वर्ग को सामने कर जिस तरह से प्रस्तुत किया गया उससे पिछड़ी जाति के लोगों में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा जाग उठी और इसके आंकड़ों पर भी गौर करें तो साफ झलकता है कि प्रदेश में साहू समाज पिछड़ों में सबसे शीर्ष पर है।क्वांटिफायबल डाटा आयोग द्वारा एकत्र छत्तीसगढ़ की कुल 1,25,07,169 ओबीसी आबादी के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार राज्य की सबसे बड़ी ओबीसी जाति साहू है, जिसकी संख्या 30,05,661 है। दूसरे क्रम में यादव जाति समूह की संख्या 22,67,500, तीसरे क्रम में निषाद समाज की संख्या 11,91,818, तो चौथे क्रम में कुशवाहा समाज की संख्या 8,98,628 और अंतिम पांचवें क्रम में कुर्मी जाति की संख्या 8,37,225 है।

बताते चलें कि कांग्रेस शासन काल में जिस तरह से पिछड़ों को लेकर राजनीतिक माहौल निर्मित हो रही थी उसे भाजपा ने अच्छी तरह भांप लिया था और भारतीय जनता पार्टी ने तब के प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को हटा कर, राज्य में पार्टी की कमान सबसे बड़ी ओबीसी जाति, साहू समाज के अरुण साव को सौंप दी।अरुण साव भाजपा प्रदेश अध्यक्ष जब बने तो उन्होंने पूरे प्रदेश में अपनी सक्रियता के दम पर ऐसा माहौल निर्मित कर दिया की लगने लगा भाजपा यदि सत्ता में लौटी तो साहू समाज के अगवा अरुण साव को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठायेगी।इसके चलते जिस साहू समाज ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को वोट करी थी वह पूरा का पूरा वोट इस बार के चुनाव में भाजपा में कन्वर्ट हो गया। इस तरह भाजपा को इस चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल हुई हालांकि अरुण साव मुख्यमंत्री बनने से चूक गए।

अब फिर से देश में आम चुनाव हैं।छत्तीसगढ़ में भाजपा जहां पूरे 11 सीटों पर प्रत्याशी की घोषणा कर चुकी है, वहीं कांग्रेस 5 सीटों पर ही अब तक अटकी हुई है।परंतु गौर करने वाली बात है कि इन 5 सीटों में भी कांग्रेस ने 2 उम्मीदवार साहू समाज से उतारी है।जबकि भाजपा ने सिर्फ एक सीट बिलासपुर से ही उम्मीदवार बनाया है। रायपुर लोकसभा से अपनी दावेदारी कर रहे शंकर लाल साहू कांग्रेस पार्टी से टिकट पाने वंचित हो गए हैं, ऐसे में आप क्या वे पार्टी के लिए समर्पित रूप से आगे भी काम करेंगे या फिर निर्दलीय चुनाव लड़कर सामाजिक ताकत दिखाएंगे।यह भी चर्चा है वे या फिर भाजपा का रूप कर सकते हैं। सबके लिए एक सोचनीय विषय है बहरहाल यह बात स्पष्ट हो गई है कि उन्होंने जिस तरह से अपनी दावेदारी को लेकर सुर्खियां बटोरी है अपने पिता मेहता लाल साहू को भी लोकप्रिय के मामले में पीछे कर दिया है।ऐसे में वे अगले विधानसभा चुनाव में रायपुर के किसी सीट से अपनी दावेदारी कर सकते हैं। अब देखना होगा शंकर लाल साहू का अगला कदम क्या होगा।

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