*एक दीवानगी ऐसी भी*
*एक दीवानगी ऐसी भी*
पिछले करीब दो दशक से जब भी देश विदेश में भारतीय क्रिकेट मैच की बात होती है तो उसके रंगीन स्वरुप में झूमते शोर करते समूह में दर्शकों का हुजूम और उसमे भी एक तिरंगा पेंट से पूरा शरीर पुता हुआ हंसमुख चेहरा जिसे पहचानने लगे हैं लोग तेंदुलकर के सबसे बड़े फैन के रूप में, नाम है सुधीर चौधरी।
एक दिसंबर दो हज़ार तेईस। स्थान वीर नारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, रायपुर। भारत बनाम आस्ट्रेलिया के बीच टी20 मैच। गेट 1के अ विभाग में जमीनी तल के दर्शक दीर्घा में प्रवेश करता वही सुधीर चौधरी, उम्र 42 साल। मूल निवासी मुजफ्फरपुर बिहार। दर्शकों में यकायक उत्साह का संचार करता यह मूंछो वाले सुधीर ने लिखवा रखा था सीने और पीठ पर “MISS U TENDULKAR 10” । दायें हाथ में शंख और बाएं हाथ में बडा सा 5 फीट तिरंगा झंडा अब सुधीर के पहचान का अंतरंग हिस्सा है।
सुधीर के लिए हर खेल के शुरू होने के एक घंटे पहले प्रवेश करना संभवतः सहज प्रक्रिया। इस बार अपने साथ दो आस्ट्रेलियाई प्रसंशक को साथ रखे। हर भारत विरोधी टीम के प्रसंशक, मैच के अनुसार बदलते रहते हैं जैसे पाकिस्तान हो तो उनके रहीम चाचा साथ होते हैं (जिन्हें धोनी ने एक बार टिकट की व्यवस्था कराकर दर्शकोंमें शामिल किया था।)
सुधीर के हर मैच में पहुंचने, रूकने, ठहरने से लेकर भोजन तथा पेंटिग तक की व्यवस्था या तो सचिन करते हैं अथवा बोर्ड लेकिन उनके बिना मैच में दर्शकों में रोमांच की कल्पना लगभग असंभव सा है।
ऐसे में इन “सुधीर ‘तेंदुलकर’ चौधरी” के पास बैठ कर जो कुछ जाना और अनुभव किया ये साझा करने से खुद को नहीं रोक पाया अतः प्रस्तुत हैं उसके भारतीय क्रिकेट के प्रति दीवानगी के कुछ आंखों देखा वृत्तांत।
मैच शुरू होने के पहले से मैच समाप्त होने तक सुधीर हर गेंद देखते हैं। मैच शुरू होने से पहले करीब 20 मिनट उनके हाथ में जो पांच फीट का झंडा है उसे लहराते रहे और “भारत माता की जय और वंदे मातरम्” की जयघोष लगाते रहे।
उनकी दरियादिली देखिये कि अपने दोनों प्रतिद्वंद्वी के लिए स्नेक्स और भोजन पानी आदि की व्यवस्था में पूरी दिलचस्पी ले रहे थे किंतु स्वयं मैच खतम होने तक निराजल प्रण। न पानी की एक बूंद पीना न कुछ खाना ये दृढ संकल्प।
तिरंगे के रंग से पुते हुए चेहरे के पीछे मुंछो के साथ बिखरती मुस्कान में भारतीय होने के गर्व की अनुभूति साफ झलकती हुए उनके चित्र को हर बच्चा, बूढा, जवान, लडकियां और महिलाऐ जैसे टूट पडती थीं उनपर।दो ओवर के बीच का वक्फा और ड्रिंक्स के समय उन्हें सैकडों सेल्फी देने के लिए श्रम करना होता रहा। बच्चों और महिलाओं के लिए आदर ऐसा कि अपने हाथों में लेकर किंतु कुछ दूरी बनाकर सेल्फी लेते जिससे की भीड में बच्चों की सावधानी बनी रहे। कल्पना करिए कि जिसे तकरीबन हर ओवर के बाद ‘दर्शक सेवा अर्थात सेल्फी’ देनी हो, मैच के हर गेंद को देखना हो, हर भारतीय चौके छक्के पर और भारतीय गेंदबाजों के विकेट लेने पर लगभग तीस सेकंड झंडा लहराना और दर्शकों से तीन चार बार जयघोष लगवाना हो, तीसरे अंपायर के निर्णय के समय रोमांच बढाना हो। न धूप देखना ना छांव, ना सर्दी ना गर्मी, निरंतर उत्साही बने रहना पलपल दिन-प्रतिदिन, साल-दर-साल। इसमें भी कुछ जीत की खुशी तो दिल तोडने वाले पल। आश्चर्य ये कि कैसे 19 वर्ष के सुधीर को ये जूनून सवार हुआ जो आज 23 वर्ष बाद भी उसके खुले बदन से चमकते पसीनो के मोती और सूखते होंठ को मुस्कुराकर जीभ से भीगाते लगातार दर्द से टूटता बदन हतोत्साहित नहीं कर पाते है। तकरीबन कुल मिलाकर दिन में दो सौ मिनट झंडा लहराना, करीब चार सौ बार जयघोष। करीब हजार से ज्यादा सेल्फी और पानी एक बूंद होठों से नही छुआ। ये टी20 वो भी रायपुर में मध्य शीत मौसम में। कल्पना करिये न्यूजीलैंड की ठंठ और भारत की मई की गर्मी।
भारतीर क्रिकेट के कुछ स्वर्णिम यादों में एक पल था जब सचिन और सुधीर दोनों की आंखें भीगीं हुई थी। सचिन रिटायर हो रहे थे और सुधीर पहली बार टूट रहे थे। बस क्या था सचिन और बोर्ड ने ये तय किया कि हर हाल में इसखेल प्रेमी मनीषी को भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को हमेशा प्रस्तुत करेंगे क्योंकि सुधीर तपस्वी से कम तो नहीं। और इसलिए हम छत्तीसगढ़ वासी देख पाए एक झलक जिसके बारे में हम कह सकते हैं कि सुधीर का भोलापन और जोश से भरा बांकपन दीवानगी नहीं तो और क्या है जनाब।
मनोज सिंह ‘मन’ की कलम से…