अभी मिजोरम के चक्कर क्‍यों लगा रहे राहुल गांधी!

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ऐज़ौल

मिजोरम से लौटकर राहुल गांधी ने दिल्ली में रात्रि विश्राम किया, और तेलंगाना रवाना होने से पहले प्रेस कांफ्रेंस कर उद्योगपति गौतम अडानी के कारोबार के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला. मिजोरम के चुनाव प्रचार में भी निशाने पर मोदी ही रहे, और तेलंगाना में भी मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव पर हमला वाया मोदी ही होगा, ये भी तय है. लेकिन, राहुल गांधी की चुनावी यात्राएं थोड़ी अजीब लगती हैं. वे ऐसे समय मिजोरम की यात्रा करते हैं, जब मध्‍य प्रदेश में कांग्रेस अपना घोषणा पत्र जारी करने वाली होती है. 

मिजोरम में भी कांग्रेस के पास एक मौका तो है, सत्ता में वापसी का. मिजोरम में कांग्रेस की सत्ता में वापसी भी क्षेत्रीय नेताओं के भरोसे ही है, यानी राहुल गांधी की वजह से बहुत फर्क पड़ने वाला नहीं है. मिजोरम में कांग्रेस को खड़ा करने और उसे बनाये रखने वाले लालथनहलवा के राजनीति से संन्यास लेने के बाद ये पहला विधानसभा चुनाव हो रहा है. लेकिन, यहां राहुल गांधी के चुनाव प्रचार की कम और भारत जोड़ो यात्रा की झलक ही ज्यादा देखने को मिली. कहीं किसी समर्थक के साथ सेल्फी लेते दिखे, तो कहीं किसी बच्चे को किस करते हुए. सोशल मीडिया पर आयी तस्वीरें तो यही कह रही हैं. 

मिजोरम दौरे के बाद राहुल गांधी तेलंगाना का रुख कर रहे हैं, जबकि मध्य प्रदेश कांग्रेस में बवाल मचा हुआ है. घोषणा पत्र जारी करने मंच पर पहुंचे कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने एक दूसरे पर तंजिया वार किये. जब यह सब हो रहा था तब मप्र के चुनाव प्रभारी बनाए गए रणदीप सुरजेवाला नदारद थे. सवाल यह है कि मध्‍य प्रदेश जैसे अहम मोर्चे पर राहुल ही नहीं हैं तो सुरजेवाला पर भी तो दबाव कम हो जाता है. 

चुनाव के लिहाज से तो सारे विधानसभा चुनाव महत्‍वपूर्ण हैं, फिर चाहे वो मिजोरम हो, या तेलंगाना या मध्‍यप्रदेश. लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्‍य के लिए लिहाज से मध्‍य प्रदेश सबसे ऊपर है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस बीजेपी को मजबूत टक्कर देने की स्थिति में है – लेकिन अगर राहुल गांधी ने मामला नहीं संभाला तो बाजी हाथ से फिसल सकती है. खासतौर पर जब सूबे के दो क्षत्रप कमलनाथ और दिग्विजय खुद को अशोक गहलोत और सचिन पायलट बनाने पर आमादा हों.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास बड़ा मौका है

1. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास बड़ा मौका इसलिए भी है, क्योंकि बीजेपी की शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी है. बीजेपी आलाकमान ने मंत्रियों और सांसदों को इसीलिए टिकट भी दिया है. दिल्ली से मध्य प्रदेश भेज दिये गये बीजेपी नेताओं में काफी नाराजगी है, लेकिन मोदी-शाह के डर के मारे कोई कुछ बोल नहीं पा रहा है. बड़ी मुश्किल से बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय अकेले ऐसे नेताओं के स्वयंभू प्रवक्ता की भूमिका निभा रहे हैं. 

2. तेलंगाना और और मिजोरम जैसे राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश में कांग्रेस ज्यादा मजबूत स्थिति में है. राहुल गांधी खुद ही कह चुके हैं कि राजस्थान में कांटे की टक्कर है, जबकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव कांग्रेस जीत रही है. ये कह देने भर से तो होगा नहीं, मैदान में तो उतरना ही पड़ेगा. आपस में लड़ रहे मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेताओं को संभाले बिना तो चुनाव जीतना मुश्किल ही है. 

3. टिकट बंटवारे में बवाल होना कोई नयी बात नहीं है. जिस तरह से मध्य प्रदेश कांग्रेस में झगड़ा चल रहा है, वो तो राहुल गांधी के लिए चिंता की बात होनी चाहिये. अगर कांग्रेस के प्रभारी महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनाव घोषणा पत्र जारी किये जाने से पहले ही दिल्ली रवाना होना पड़े तो क्या कहा जा सकता है. कितनी गंभीर स्थिति है, राहुल गांधी को मालूम नहीं अंदाजा है कि नहीं. 

4. देखने में आया है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने मध्य प्रदेश में काफी समय दिया है, लेकिन वो स्थिति को कंट्रोल क्यों नहीं कर पा रही हैं. अगर पहले से हिदायत रहती तो कमलनाथ क्यों कहते कि जाकर दिग्विजय के कपड़े फाड़ो – और दिग्विजय सिंह शेरो-शायरी के जरिये तंज क्यों कसते? बाद में सफाई देने से क्या फायदा.

5. 2018 में जब राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान अशोक गहलोत और सचिन पायलट की तकरार की बातें लोगों तक पहुंचने लगीं, तो राहुल गांधी ने दोनों को मोटरसाइकिल पर बिठा दिया था. सचिन पायलट बाइक चला रहे थे, और अशोक गहलोत पीछे बैठे हुए थे. ये भी एक पॉलिटिकल मैसेज ही था कि सचिन पायलट को राहुल गांधी ड्राइविंग सीट पर बिठा रखे थे, लेकिन बाद में अशोक गहलोत ने खेल कर दिया – और वो सब अब तक जारी है. 

हो सकता है कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को बाइक की सवारी कराना संभव न हो, लेकिन ऐसे दूसरे उपाय तो खोजे ही जा सकते हैं. कमलनाथ सरेआम कह रहे हैं कि टिकट के लिए दिग्विजय सिंह और उनके बेटे जयवर्धन सिंह के कपड़े फाड़ो. मतलब, साफ तौर पर अंदर का झगड़ा सड़क पर आ रहा है – क्या राहुल गांधी या प्रियंका गांधी ये सब रोक नहीं पा रहे हैं?

तेलंगाना और मिजोरम में ज्यादा गुंजाइश तो नहीं लगती

राहुल गांधी का मिजोरम दौरा भी करीब करीब वैसा ही लगता है जैसे वो 2023 के शुरू में विधानसभा चुनावों में मेघालय घूमने चले गये थे. चुनाव प्रचार के लिए मिजोरम गये राहुल गांधी ने कांग्रेस के मार्च में भारत जोड़ो यात्रा की झलक दिखाने की भी कोशिश की है. 

मार्च में हिस्सा लेते वक्त राहुल गांधी स्थानीय कपड़े पहने नजर आये – सिर पर मिजो टोपी भी पहन रखी थी. राहुल गांधी बिलकुल यात्रा वाले अंदाज में हाथ हिलाते, सेल्फी देते या किसी से रुक कर हाल चाल पूछते बढ़े चले जा रहे थे.  

राजस्थान से तो लगता है राहुल गांधी ने दूरी ही बना ली है. वैसे भी जहां वो खुद मानते हों कि कांटे की टक्कर है, वहां जाने से क्या फायदा. लेकिन राहुल गांधी को राजस्थान से ज्यादा फायदा तेलंगाना और मिजोरम में क्यों लग रहा है?

महत्वपूर्ण चीजों को लेकर व्यक्ति की प्राथमिकताओं से जुड़ी एक कहावत है. भोजपुरी की इस कहावत में सोना और कोयले की तुलना मिसाल दी गयी है, 'जब सोना लूटा जा रहा था और कोयले को बचाने के लिए पहरेदारी हो रही थी' – मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में मामले में राहुल गांधी की फिक्र कुछ कुछ ऐसी ही लगती है.

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