लोरमी में त्रिकोणीय चक्रव्यूह में फंसे बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष साव, जीते तो बन सकते हैं सीएम
रायपुर.
विधानसभा चुनाव 2023 में इस बार लोरमी सीट हाई प्रोफाइल वीआईपी सीट बन गई है। इस बार इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी अरुण साव के सामने कांग्रेस प्रत्याशी थानेश्वर साहू हैं। वर्तमान में अरुण साव बिलासपुर सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हैं। इस वजह से ये सीट हाई प्रोफाइल हो चुकी है। पूरे प्रदेश की निगाहें इस सीट पर टिकी हुई है। क्योंकि सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा है कि बीजेपी में ओबीसी वर्ग से अरुण साव सीएम पद के प्रबल दावेदार हो सकते हैं।
जिस प्रकार से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है। पूर्व सीएम रमन सिंह के बाद बीजेपी के सभी पोस्टर्स-बैनर में उनकी तस्वीरें प्रमुखता से दिख रही हैं। पीएम नरेंद्र मोदी की रायगढ़ जिले के कोड़ातराई समेत कई सभाओं में वो पीएम के साथ रथ पर सवार दिखे, जबकि रमन सिंह मंच पर ही चुपचाप बैठे नजर आए। इसलिए लोरमी से साव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वहीं थानेश्वर साहू सामाजिक वोटों के सहारे अपनी नैया पार करने की जुगत में लगे हुए हैं, जबकि सागर सिंह बैस के सामने अपने आप को साबित करने की चुनौती है।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद साव छत्तीसगढ़ की राजनीति में तेजी से उभरे हैं। कांग्रेस ने साव को कड़ी टक्कर देने के लिए उन्हीं के समाज (ओबीसी) से छत्तीसगढ़ पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष और साहू समाज के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके थानेश्वर साहू को प्रत्याशी बनाया है। वहीं यहां पर चुनाव त्रिकोणीय होते दिख रहा है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी (जेसीसीजे) ने सागर सिंह बैस को चुनाव मैदान में उतारा है और वो पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दी, तो उन्होंने पार्टी छोड़कर जेसीसीजे का दामन थाम लिया।
समाज के वोटों का ध्रुवीकरण
अरुण साव ओबीसी वर्ग के साहू समाज से हैं। फिलहाल बीजेपी में ओबीसी वर्ग से कोई बड़ा कद का दिग्गज नेता नहीं है। ऐसे में यदि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती है तो वे सीएम पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के बहुल्य वाले क्षेत्र में जातिगत वोट काफी मायने रखते हैं। लोरमी विधानसभा में साहू समाज के वोटर्स की संख्या ज्यादा है। इसलिए बीजेपी ने वर्ष 1993 से लेकर अब तक यानी 2023 तक लगातार सात बार इसी समाज से प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी की इस रणनीति को देखें तो सिर्फ दो प्रत्याशी मुनीराम साहू और तोखन साहू एक-एक बार छत्तीसगढ़ विधानसभा के दर पर पहुंचने में कामयाब हुए हैं। दूसरी ओर सामान्य वर्ग से धरमजीत सिंह तीन बार कांग्रेस से और एक बार जेसीसीजे के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। वर्तमान में वो लोरमी से जेसीसीजे के विधायक हैं। फिलहाल वो बीजेपी में हैं।
विधानसभा चुनाव 2018 का परिणाम
विधानसभा चुनाव 2018 की बात करें, तो लोरमी में जेसीसीजे और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था। बीजेपी ने लोरमी सीट पर जहां तोखन साहू को सियासी मैदान में उतारा था, तो वहीं जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी (जेसीसीजे) की ओर से धरमजीत सिंह चुनाव मैदान में थे। धरमजीत सिंह को 67 हजार से अधिक वोटों से जीत मिली थी। वहीं भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू को सिर्फ 42 हजार से अधिक वोटों से संतोष करना पड़ा था और उनकी हार हुई थी।
जातीय समीकरण
लोरमी में अनुसूचित जाति के वोटर्स की संख्या करीब 52 हजार है। साहू समाज के मतदाताओं की संख्या करीब 45 हजार है। कुर्मी समाज के भी मतदाता बड़ी संख्या में हैं। एसटी वर्ग के करीब 18 हजार मतदाता हैं। वहीं सामान्य वर्ग के करीब 45 हजार मतदाता हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सामाजिक वोटों के ध्रुवीकरण से प्रत्याशी बाजी मार सकते हैं। लोरमी के सियासत में इस बात की चर्चा है कि जो प्रत्याशी ओबीसी वर्ग के साथ ही सतनामी समाज का वोट हासिल करेगा, वही चुनाव में बाजी मारेगा।
लोरमी सीट का इतिहास ———–
0- कांग्रेस के टिकट पर साल 2003 में धरमजीत सिंह जीते
0- कांग्रेस के टिकट पर साल 2008 धर्मजीत सिंह दोबारा विधायक बने
0- साल 2013 में बीजेपी के तोखन साहू ने बाजी मारी और विधायक बने
0- तीसरी बार जेसीसीजे के टिकट पर वर्ष 2018 में धर्मजीत सिंह जीते और विधायक बने
स्थानीय मुद्दे
0- स्वास्थ्य
0- शिक्षा
0- पेयजल
0- सिंचाई
0- कृषि
0- रोजगार
0- ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का आभाव
पहले चरण में हुआ था 78 प्रतिशत मतदान
पहले चरण में 7 नवंबर को 20 विधानसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हुए थे। इसके तहत छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित संभाग बस्तर की 12 सीटें और दुर्ग संभाग के नक्सल प्रभावित जिले राजनांदगांव, कवर्धा और खैरागढ़ की 8 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे। पहले चरण में कुल 78 प्रतिशत मतदान हुआ था। बस्तर की सभी 12 सहित कुल 16 सीटों पर पिछले चुनावें की तुलना में इस बार अधिक वोटिंग हुई है। वहीं 2018 की तुलना में 4 सीटों पर कम मतदान हुआ है। इन 4 सीटों में कबीरधाम जिला की दोनों सीट पंडरिया और कवर्धा के साथ खैरागढ़- छुईखदान जिला की खैरागढ़ सीट और राजनांदगांव जिला की खुज्जी सीट शामिल है। बस्तर संभाग की सभी 12 सीटों पर इस बार रिकार्ड तोड़ वोटिंग हुई है।
70 विधानसभा सीटों पर 17 नवंबर को चुनाव
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर दूसरे चरण में 70 विधानसभा सीटों पर 17 नवंबर को चुनाव कराए जाएंगे। इनमें 34 सीटें वीआईपी
हैं। पहले चरण में 7 नवंबर को 20 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में से 10 सीटें वीआईपी थीं। कुल मिलाकर प्रदेश में 44 सीटें हाई प्रोफाइल हैं। इन सीटों पर बीजेपी, कांग्रेस और जेसीसीजे के दिग्गज नेताओं के बीच मुकाबला होगा। भाजपा, कांग्रेस और जेसीसीजे के प्रत्याशी एक दूसरे को कड़ी टक्कर देंगे।