मुख्य पार्टी से टिकट न मिलने पर सपा, बसपा और ‘आप’ की ओर रुख

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भोपाल

 

कांग्रेस और भाजपा से टिकट नहीं मिलने के बाद आधा दर्जन से अधिक नेताओं ने अपनी विचारधारा से समझौता करके तीसरा मोर्चा यानि बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी को धर्मशाला समझकर चुनावी मैदान में उतर गए है। संजीव सिंह कुशवाह वर्ष 2018 में बसपा से भिंड से विधायक चुने गए थे। एक साल के बाद बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा से टिकट नहीं मिलने के बाद  संजीव सिंह कुशवाह भाजपा छोड़कर एक बार फिर बसपा का दामन थाम लिए और भिंड से चुनावी मैदान में उतर गए।  रसाल सिंह कभी भाजपा से रोन क्षेत्र से विधायक हुआ करते थे। लेकिन बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर बसपा का दामन थाम लिए और लहार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे है।

भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके रूस्तम सिंह को टिकट नहीं मिलने पर उनके  बेटे राकेश सिंह बीएसपी से मुरैना सीट से दावेदारी कर दिया। कांग्रेस नेता मनीराम धाकड़ जौरा से कांग्रेस के विधायक हुआ करते थे। कांग्रेस पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर सपा का दामन थाम लिए ।  भाजपा से विधायक रह चुके मुन्ना सिंह भदोरिया टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर समाजवादी पार्टी से अटेर से चुनावी मैदान में है। सुधीर यादव बीजेपी छोड़कर  आम आदमी पार्टी से बंडा विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतरे। ममता मीणा बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर चाचौंडा से आप आदमी पार्टी से चुनावी मैदान में है। सज्जन परमार कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर गोविंदपुरा से आप के बैनर तले चुनावी मैदान में है।

बागियों को कांग्रेस दिखाया बाहर का रास्ता
विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से कांग्रेस से बगावत करके  39 उम्मीदवार जो चुनावी मैदान में है। कांग्रेस ने इन सभी उम्मीदवारों को पार्टी से 6 साल के लिए बाहर कर दिया है। भोपाल उत्तर से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे नासीर इस्लाम,  और आमीर अकील ,महू से निर्दलीय लड़ रहे अंतर सिंह दरबार, आलोट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे प्रेमचंद गड्डु,देवतातालाब से सपा से चुनावल लड़ रहे जयवीर सिंह, गोटेगांव से निर्दलीय शेखर चौधरी सहित अन्य नाम शामिल है।

जनता की खामोशी लिए बनी परेशानी
इस बार चुनाव में जनता का मूड समझना बहुत ही मुश्किल है। क्योंकि प्रदेश की जनता इस चुनाव में इस बार पूरी तरह से मौन हो गई है। जनता अपने रुख के बारे में मुखर होकर कुछ भी कहने से बच रही है। इसके पीछे मतदाताओं की समझदारी हो या मतदाताओं की व्यस्तता हो। लेकिन इससे राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के अलावा तीसरे मोर्चे और निर्दलीय भी खासा परेशान नजर आ रहे है। बागी उम्मीदवार भी जनता के मूड को समझ नहीं पा रहे है। यही वजह है कि तीसरे मोर्चे के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवार भी अपने जीत का दावा नहीं कर पा रहे है।

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