किसी युद्ध से कम नहीं बस्तर का चुनावी रण, बड़ी चुनौती है नक्सल इलाकों में मतदान
जगदजलपुर.
सुकमा जिले का ख्याल आने पर आंखों में नक्सलियों का खौफनाक अक्स तैर जाता है। अप्रैल 2010 में यहीं ताड़मेटला में नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान बलिदान हुए थे। इसके तीन साल बाद मई 2013 में झीरम घाटी में नक्सलियों ने प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं समेत 33 लोगों की नृशंस हत्या कर दी थी। इस घटना ने बस्तर के सियासी समीकरण बदल दिए थे। उसी साल हुए चुनाव में भाजपा यहां 11 से चार सीटों पर आ गई थी और सहानुभूति की लहर ने कांग्रेस को एक से आठ के आंकड़े तक पहुंचा दिया था। तब से यहां कांग्रेस बढ़त पर है।
जगदलपुर से शुरू सफर का पहला पड़ाव दरभा के पास स्थित झीरम घाटी था। सिंगल रोड पर करीब 36 किमी दूर झीरम घाटी शहीद स्मारक है, जहां नक्सलियों ने वारदात की थी। सोलर लाइटें भी लगा दी गई हैं। दोनों तरफ से पहाड़ी और हरेभरे जंगलों वाला रास्ता बड़ा खूबसूरत है पर खौफ महसूस होता है। दिन में भी गाड़ियां नजर नहीं आतीं। इस क्षेत्र में काफी नजदीक-नजदीक सीआरपीएफ के कैंप हैं। 10-10 जवानों के सेक्शन एक्सप्लोसिव डिटेक्टर डिवाइस और यूबीजीएल (अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर) व स्वचालित हथियार समेत लगातार पैदल पेट्रोलिंग करते हैं। तोकापाल, कांगेर घाटी से होते हुए सुकमा तक लगभग 110 किमी के सफर में यही नजारा देखने को मिला।
सुकमा से लगभग 35 किमी आगे हाईवे पर ही दोरनापाल पहुंचकर पहली बार बूथ बने गांव तलाशे। यहां मिले युवक महेश टेकाम ने बताया, चुनाव में कोई उन क्षेत्रों में नहीं जा रहा। बताया कि नक्सलियों ने मतदान का बहिष्कार का एलान कर रखा है। यही नहीं, नेताओं पर हमले बोलने की भी अपील की है। कुछ अखबारों को सूचना देने का काम करने वाले रंजीत ठाकुर ने भी यही बात दोहराते हुए चिंतागुफा जाने से मना कर दिया। हम अकेले ही आगे बढ़ गए। 46 किमी के इस मार्ग पर सीसी रोड निर्माण का काम लगभग पूरा हो गया है। रास्ते पर चार पहिया वाहनों का आना-जाना न के बराबर दिखा।
126 गांवों में पहली बार मतदान
नक्सल प्रभावित 126 गांवों में आजादी के बाद पहली बार लोग अपने गांव में मतदान करेंगे। हालांकि, पहुंच अभी आसान नहीं है। बताया जाता है कि ठीकठाक लोग नक्सलियों के प्रभाव में हैं।
सीआरपीएफ के 150 कैंप, अबूझमाड़ तक पहुंच
सीआरपीएफ ने अतिसंवेदनशील इलाकों में 5-5 किमी पर 150 बड़े कैंप स्थापित किए हैं। बारूदी सुरंगरोधी वाहन और हथियार लेकर एक से दूसरे कैंप तक पैदल पेट्रोलिंग करते हैं। नक्सलियों की राजधानी कहे जाने वाले नारायणपुर के अबूझमाड़ में सोनपुर तक कैंप हैं। अब इन कैंपों में ही मोबाइल टॉवर लगाए जा रहे हैं। इससे क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा मोबाइल टॉवर उड़ाए जाने जैसी घटनाएं भी घट गई हैं।
पुलिसकर्मी बोले-हमारे साथ जाने पर लौटने की गारंटी नहीं
दोरनापाल से 15 किमी दूर पोलमपल्ली थाने के पुलिसकर्मियों ने बताया, कई गांवों में जाना खतरे से खाली नहीं। सहयोग मांगने पर पुलिसकर्मियों का जवाब था, अकेले जाकर लौट सकते हैं, लेकिन हमारे साथ जाने पर न लौटने की गारंटी है। जाना अपने रिस्क पर ही होगा। चिंतागुफा थाना पहुंचकर पहली बार बूथ बने करिगुंडम गांव का रास्ता पूछा तो क्या जानकारी दी गई, जैसी पोलमपल्ली में मिली थी। चिंतागुफा थाने में बताया गया कि दो दिन पहले ही वहां नक्सलियों ने एक वाहन फूंक दिया था। सलाह दी, गांव में जाना तो मोबाइल-पर्स गाड़ी में ही छोड़ देना। लेकिन स्थानीय लोगों का भरोसा जीते बगैर नक्सलियों का खात्मा मुमकिन नजर नहीं आता।
खतरे की चेतावनी…इतने समय बाहरी नहीं आते
शाम के चार बजे एक गांव पहुंचे। गांव के बाहर आठ-दस ग्रामीण मिले। उनमें से एक व्यक्ति ने सवाल किया, कहां जाना है। वे चारों तरफ से ऐसे सटकर खड़े थे कि आपको एहसास भी न हो और तलाशी भी हो जाए। नशे में लग रहे थे। हमने पूछा, अब तक वोट क्यों नहीं डालते थे, सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता था क्या। पहले सवाल का जवाब था कि दूरी ज्यादा थी। यह पूछने पर कि अब वोट देंगे तो कहा- देखेंगे। नाम पूछने पर मुस्कुराया और कहा, इतने समय यहां बाहरी लोग नहीं आते। इसके बाद हम वहां से लौट पड़े। बातचीत कर रहे व्यक्ति छोड़ बाकी लोग थोड़ी देर बाद ही एक-एक कर निकलते रहे। पोलमपल्ली थाने में पुलिसकर्मियों ने बताया, ग्रामीणों का एक-एक कर जाना यह संकेत देता है कि गांव में नक्सली रहे होंगे।
12 सीटों पर 80 हजार जवान पहली बार महिला कमांडो भी
नक्सल क्षेत्रों की 20 सीटों पर 7 नवंबर को मतदान है। इनमें से 12 बस्तर की हैं। 80 हजार जवान तैनात रहेंगे। पहली बार महिला कमांडो भी होंगी। नक्सल क्षेत्र में 100 बूथ अत्यंत संवेदनशील माने गए हैं। वहां मतदान दलों को हेलिकॉप्टर से भेजा जाएगा। मतदान दलों के वाहन जीपीएस से लैस होंगेे। जिला मुख्यालयों पर बने नियंत्रण कक्ष से इनकी निगरानी होगी। राजनांदगांव की छह और कवर्धा की दो विधानसभा सीटों पर भी पहले ही चरण में मतदान होना है। इन दो जिलों में स्थानीय पुलिस के साथ 15 हजार से अधिक जवानों को चुनाव ड्यूटी में लगाया गया है।
करीबी लड़ाई
बस्तर की 12 सीटों में से 11 (एक उपचुनाव में जीती) पर कांग्रेस का कब्जा है। 2013 के नतीजों को छोड़ दें तो कहा जाता है, बस्तर ही सरकार बनाता है। 2013 में सबसे ज्यादा 8 सीटें जीतने पर भी कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई थी। हालांकि, लगातार सत्ता पर काबिज भाजपा को हराने की राह यहीं से खुली और 2018 में कांग्रेस ने सरकार बनाई। अब सत्ता विरोधी लहर में भी करीबी लड़ाई है। झीरम हमले में मारे गए महेंद्र कर्मा के बेटे छबींद्र कर्मा दंतेवाड़ा से कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, सांसद मोहन मरकाम, कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा चर्चित चेहरे हैं। भाजपा से पूर्व मंत्री लता उसेंडी, केदार कश्यप, पूर्व आईएएस नीलकंठ टेकाम प्रमुख चेहरे हैं।