कुछ लोग भारत को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते – मोहन भागवत

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नागपुर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने महाराष्ट्र के नागपुर में अपना वार्षिक विजयादशमी उत्सव आयोजित किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आरएसएस ने प्रसिद्ध गायक शंकर महादेवन रहे। सरसंघचालक मोहन भागवत पारंपरिक दशहरा सभा को रेशिमबाग मैदान में संबोधित किया। दशहरे का यह प्रोग्राम संघ का एक प्रमुख कार्यक्रम होता है। पथ संचलन सुबह करीब 6.20 बजे सीपी और बरार कॉलेज गेट और रेशिमबाग मैदान से निकाला गया। आरएसएस की स्थापना सितंबर 1925 में दशहरा के दिन केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। पिछले साल 2022 की दशहरा रैली में संघ ने माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़ने वाली दुनिया की पहली महिला पर्वतारोही संतोष यादव को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। इस अवसर पर मोहन भागवत ने अयोध्या के राम मंदिर से लेकर भारत मे आयोजित जी 20 तक की बात की। मोहन भागवत ने मणिपुर हिंसा और देश में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि मणिपुर में हिंसा हो नहीं रहा है, करवाई जा रही है।

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि राष्ट्र के प्रयास राष्ट्रीय आदर्शों से प्रेरित होते हैं। रामलला के लिए एक मंदिर, जिसकी तस्वीर हमारे संविधान की मूल प्रति के एक पृष्ठ पर चित्रित है, अयोध्या में बनाया जा रहा है। रामलला का अभिषेक 22 जनवरी, 2024 को मंदिर के गर्भगृह में किया जाएगा।

 

मंदिरों में आयोजन की अपील

भगवान राम मंदिर में प्रवेश करने वाले हैं। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है। उन्होंने कहा कि उद्घाटन के दिन वहां हर किसी का पहुंच पाना संभव नहीं हो पाएगा, इसलिए जो जहां है, वे वहीं के राम मंदिर में आयोजन करे। उन्होंने कहा कि यह हर दिल में मन के राम को जगाएगा, और मन के अयोध्या को सजाएगा, समाज में स्नेह, जिम्मेदारी और सद्भावना का माहौल बनाएगा।
 

'अराजकता और अविवेक फैलाने का षडयंत्र'

मोहन भागवत ने कहा कि कुछ विनाशकारी ताकतें समाज विरोधी अपने आपको सांस्कृतिक मार्क्सवादी या वोक (Woke) यानी जगे हुए कहते हैं। परंतु मार्क्स को भी उन्होंने 1920 दशक से ही भुला रखा है। विश्व की सभी सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार, तथा संयम से उनका विरोध है। मुठ्ठी भर लोगों का नियंत्रण सम्पूर्ण मानवजाति पर हो, इसलिए अराजकता व स्वैराचरण का पुरस्कार, प्रचार व प्रसार करते हैं। माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार, राजनीति व सामाजिक वातावरण को भ्रम व भ्रष्टता का शिकार बनाना उनकी कार्यशैली है। ऐसे वातावरण में असत्य, विपर्यस्त तथा अतिरंजित वृत्त के द्वारा भय, भ्रम तथा द्वेष आसानी से फैलता है। आपसी झगड़ों में उलझकर असमंजस व दुर्बलता में फंसा व टूटा हुआ समाज, अनायास ही इन सर्वत्र अपनी ही अधिसत्ता चाहने वाली विध्वंसकारी ताकतों का भक्ष्य बनता है। अपनी परम्परा में इस प्रकार किसी राष्ट्र की जनता में अनास्था, दिग्भ्रम व परस्पर द्वेष उत्पन्न करने वाली कार्यप्रणाली को मंत्र विप्लव कहा जाता है।

सांस्कृतिक मार्क्सवादी पुरस्कार देते हैं, बढ़ावा देते हैं, अराजकता और अविवेक फैलाते हैं। उनके तौर-तरीकों में मीडिया और शिक्षाविदों पर नियंत्रण रखना और शिक्षा, संस्कृति, राजनीति और सामाजिक वातावरण को भ्रम, अराजकता और भ्रष्टाचार में डालना शामिल है।
 

'अपना उल्लू सीधा करते हैं'

आरएसएस चीफ ने कहा कि भारत के उदय का उद्देश्य हमेशा से विश्व कल्याण रहा है। लेकिन, अपने सांप्रदायिक हितों की मांग करने वाली स्वार्थी, भेदभावपूर्ण और धोखेबाज ताकतें भी सामाजिक एकता को बाधित करने और संघर्ष को बढ़ावा देने के लिए अपने स्वयं के प्रयास कर रही हैं। वे विभिन्न प्रकार के कपड़े पहनते हैं। दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो नहीं चाहते हैं कि भारत आगे बढ़े। वे भारत में अलगाव पैदा करने का प्रयास करते हैं। हम भी कभी-कभी उनके षडयंत्र में फंस जाते हैं। भारत का उत्थान होगा तो दुख जाएगा, शोषण जाएगा, कलह खत्म होगी। किसी विचारधारा का आवरण ओढ़ लेते हैं। मन लुभावन उद्देश्य घोषित करते हैं लेकिन अपना उल्लू सीधा करते हैं।

 

'मणिपुर में जो हो रहा है, करवाया जा रहा है'

हम इधर-उधर की घटनाएं देखते हैं, मणिपुर के हालात देखें, वहां यह सब कैसे हुआ? इतने साल से मैतेई और कुकी साथ में रहते हैं। अचानक अलगाव की बातें कैसे हुईं? इससे किसे फायदा है? मजबूत सरकार है और तत्पर भी है। शांति का प्रयास देखते ही कोई हादसा करवा दो तो दूरी बढ़ती है। हिंसा भड़कती है। हिंसा कौन भड़का रहा है? यह देखें तो साफ है कि यह हो नहीं रहा है, करवाया जा रहा है। यह शांति का प्रश्न नहीं जोड़न के प्रश्न है।
 

'सौदों से नहीं होता समाज का भला'

मोहन भागवत ने कहा कि समाज की स्थाई एकता अपनेपन से निकलती है, स्वार्थ के सौदों से नहीं। हमारा समाज बहुत बड़ा है। बहुत विविधताओं से भरा है। कालक्रम में कुछ विदेश की आक्रामक परंपराएं भी हमारे देश में प्रवेश कर गईं, फिर भी हमारा समाज इन्हीं तीन बातों के आधार पर एक समाज बनकर रहा। हमारे देश में विद्यमान सभी भाषा, प्रान्त, पंथ, संप्रदाय, जाति, उपजाति इत्यादि विविधताओं को एक सूत्र में बांधकर एक राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाले तीन तत्व (मातृभूमि की भक्ति, पूर्वज गौरव, व सबकी समान संस्कृति) हमारी एकता का अक्षुण्ण सूत्र हैं। इसलिए हम जब एकता की चर्चा करते हैं, तब हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह एकता किसी लेन-देन के कारण नहीं बनेगी। जबरदस्ती बनाई तो बार बार बिगड़ेगी। हमारी पूजाएं अलग हैं, हम दिखने में अलग हैं। हम पहले से एक हैं। हम आज खुद को अलग मान रहे हैं। हमारी समस्याएं है, हमारे आपसी विवाद हो सकते हैं। विकास में किसी को ज्यादा किसी को कम चाहिए। एक दूसरे के प्रति जो अविश्वास है उसे दूर करना जरूरी है।

 

'जुबान पर लगाम लगाना जरूरी'

हमें जुबान पर लगाम लगाना होगा। मेरा इशारा एक की तरफ नहीं है, हर किसी के लिए हैं। गुंडागर्दी होगी तो उसका इलाज एक ही है। शासन-प्रशासन का सहयोगी बनकर चलें। सावधान रहना है। आने वाले दिनों चुनाव होना है। गालियां चलेंगी। हथकंडे बढ़ेंगे। जहां उद्देश्य नहीं वहां भी उद्देश्य चिपाकर अपना काम बनाएंगे। खूब राजनीति होगी लेकिन उकसावे में नहीं आना है। भड़कना नहीं है। सबका अनुभव भारत की जनता के पास है। मतदान प्रचार के समय हथकंडों के चक्कर में हमें नहीं पड़ना है।
 

'पहली बार एशियाई खेलों में 100 से ज्यादा पदक'

मोहन भागवत ने कहा कि पिछले साल भारत ने जी-20 के अध्यक्ष के रूप में मेजबानी की थी। लोगों के दिए गए गर्मजोशी भरे आतिथ्य के अनुभव, भारत का गौरवशाली अतीत, चल रहे रोमांचक विकास मार्च ने सभी देशों के प्रतिभागियों को बहुत प्रभावित किया। हाल ही में, हमारे देश के खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में पहली बार 100 का आंकड़ा पार करते हुए 107 पदक (28 स्वर्ण, 38 रजत और 41 कांस्य) जीतकर हमें बहुत गर्व और खुशी दी। हम उन्हें हार्दिक बधाई देते हैं। उन्होंने कहा कि चंद्रयान मिशन ने पुनरुत्थानशील भारत की ताकत, बुद्धिमत्ता और कौशल को भी शानदार ढंग से प्रदर्शित किया। हमारे वैज्ञानिकों के वैज्ञानिक ज्ञान और तकनीकी कौशल के साथ राष्ट्र के नेतृत्व की इच्छाशक्ति निर्बाध रूप से जुड़ी हुई है।

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