हिमाचल सरकार की नजरें भांग की खेती पर, 500 करोड़ की कमाई होने का अनुमान

Spread the love

कुल्लू
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के कसोल में भांग के पौधों की भरमार पड़ी हुई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भांग के वैधीकरण से सरकारी राजस्व और राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ अवैध चरस व्यापार को नुकसान होगा। कुल्लू के पहाड़ों में आप जाने का जोखिम नहीं उठा सकते, लेकिन भाग की खेती कोई सामान्य फसल नहीं है। पुलिस की नजरों से दूर पिछड़े लोग भांग के पौधों से चरस निकालने में लगे हुए हैं। अक्टूबर में जब 'भांग सीजन' खत्म होता है, तब तक वे हजारों किलोग्राम बेशकीमती चरस का उत्पादन कर चुके होते हैं। हालांकि, अब इसके ऊपर हिमाचल सरकार की नजरें भी टिक चुकी हैं।

राजस्व उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है
लगभग 40 सालों से भारत में भांग की खेती एक अपराध रही है, लेकिन हिमाचल के कुल्लू, चंबा, सिरमौर, शिमला, मंडी और कांगड़ा जिलों के कुछ हिस्सों में कई लोग इसकी परवाह किए बिना खेती करते हैं। हालांकि, अब हिमाचल सरकार इसे वैध घोषित कर देती है तो   भांग अपने औषधीय गुणों के कारण मरीजों के लिए फायदेमंद साबित होने के अलावा राज्य के लिए राजस्व उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सीएम सुक्खू कह चुके हैं कि सरकार भांग की खेती को वैध बनाने पर अंतिम फैसला लेने से पहले सभी पहलुओं पर विचार करेगी। भांग की खेती को वैध बनाने वाले अन्य राज्यों की प्रणाली का भी अध्ययन किया जाएगा।

यह विचार नया नहीं है। 2018 में हिमाचल के पूर्व सीएम जय राम ठाकुर ने भी ऐसी ही घोषणा की थी। एक साल पहले, शिमला स्थित वकील देवेन खन्ना ने हिमाचल उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी जिसमें औद्योगिक और चिकित्सा भांग की खेती को वैध बनाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी। लेकिन इस साल अप्रैल में ही सरकार भांग को वैध बनाने के लिए राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव लेकर आई। फिर, संभावना तलाशने के लिए पांच सदस्यीय पैनल का गठन किया गया। हिमाचल के राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता वाले पैनल ने 22 सितंबर को विधानसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की और वैधीकरण को राज्य के लिए 'गेम-चेंजर' बताया।

भांग की खेती की अनुमति देने के पीछे का विचार राज्य के लिए राजस्व उत्पन्न करना और रोजगार का स्रोत बनाना है। मंडी जिले के भाजपा विधायक पूरन चंद ठाकुर, जिन्होंने भांग को वैध बनाने का प्रस्ताव पेश किया था, उन्होंने कहा, "अगर वैध हो गया, तो भांग राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक वरदान साबित होगी।" ठाकुर, जो भांग वैधीकरण पर समिति के सदस्य भी हैं, उनका कहना है कि कानूनी भांग ड्रग माफिया को खत्म कर देगी। यह किसी भी अन्य फसल की तरह होगी, जैसे मक्का या गेहूं। सरकार किसानों को बीज उपलब्ध कराएगी और सुनिश्चित करेगी कि फसल अच्छी दरों पर खरीदी जाए। इससे हजारों बेरोजगार युवाओं को आय मिलेगी। यह राज्य में ड्रग माफिया के अंत की भी शुरुआत होगी। उन्हें उम्मीद है कि अगले साल मार्च तक हिमाचल में भांग की खेती वैध हो जाएगी।''

500 करोड़ की कमाई होने का अनुमान
रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी भांग से शुरुआती वर्षों में हिमाचल सरकार का वार्षिक राजस्व 400 करोड़-500 करोड़ रुपए बढ़ जाएगा। हालांकि राज्य नई राजस्व धाराओं के लिए बेताब है, लेकिन लगातार सरकारें भांग को वैध बनाने से सावधान रही हैं। उनका सबसे बड़ा डर ये है कि ड्रग माफिया नए कानून का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन कुल्लू के 'राजा' और पूर्व भाजपा सांसद महेश्वर सिंह ठाकुर का कहना है कि दुरुपयोग का डर किसी ऐसे कदम से बचने का बहाना नहीं हो सकता जो सार्वजनिक हित में है। जूते की पॉलिश से भी कुछ लोगों को जोश आता है। तो क्या आप उस पर भी प्रतिबंध लगा देंगे?” खन्ना, जो सरकार की भांग समिति के सदस्य हैं, का कहना है कि चिकित्सा भांग के दुरुपयोग का डर निराधार है।''
 
उन्होंने कहा, “मेडिकल भांग के लिए लाइसेंस प्राप्त करना आसान नहीं होगा और कोई भी व्यवसायी अवैध रूप से भांग बेचकर अपने व्यवसाय को खतरे में नहीं डालना चाहेगा। मेडिकल कैनबिस (एनडीपीएस एक्ट 1985 के तहत भांग की खेती उत्पादन रख-रखाव का प्रावधान) की अनुमति केवल स्थापित फार्मा इकाइयों के लिए होगी। हिमाचल को बहुत पहले ही भांग को वैध कर देना चाहिए था। भांग का पौधा स्थानीय लोगों के जीवन का एक हिस्सा रहा है। वे पौधे के रेशों से रस्सियां, जूते और यहां तक कि कपड़े भी बनाते थे। राज्य सरकार को कम से कम फाइबर निकालने को वैध बनाना चाहिए। तो, भांग की खेती को वैध क्यों नहीं किया गया? भांग के रेशे का करोड़ों डॉलर का बाज़ार है। 

You may have missed