इनदिनों ग्रामीण क्षेत्रो में ब्यूटिया योनोस्पर्मा अपने पूरे शबाब पर

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पत्रकार – उरेन्द्र साहू

वन अंगार हुआ… खिले जब से फूल पलाश के’ गीत की पंक्तियां यहां के पलाश वन क्षेत्र में चरितार्थ हो रही हैं। पलाश, परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू, सुपर्णा, ब्रह्मवृक्ष पर्याय नामों से जाने जाते हैं।

कोपरा | बदायूं के लिए सौगात बने क्षेत्र के पलाश वन इन दिनों अपने पूरे शबाब पर हैं। पेड़ों से झड़े फूलों से जहां धरती लाल-लाल नजर आती है, वहीं पेड़ों पर पुष्प गुच्छ अंगारें की तरह दहकते दिखाई दे रहे हैं। बता दे की प्राचीनकाल में होली के रंग भी इन्हीं फूलों से बनाए जाते थे। बसंत से शुरू हो जाता है पलाश का फूलना बसंत ऋतु के साथ ही इनका फूलना शुरु हो जाता है। ऋतुराज बसंत का आगमन पलाश के बगैर पूर्ण नहीं होता। यानि इसके बिना बसंत का श्रृंगार नहीं होता। शाख पर झूले लाल किंशुक खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। संस्कृत में इसका नाम किंशुक है जिसका अर्थ शुक या तोता होता है। लाल फूलों वाले इस पलाश का वैज्ञानिक नाम ‘ब्यूटिया योनोस्पर्मा’ है।
डाक टिकट पर भी है राज्य पुष्प पलाश विभिन्न रासायनिक गुण होने के कारण यह आयुर्वेद के लिए विशेष उपयोगी है। इसके गोंद, पत्ता, जड़, पुष्प सभी औषधीय गुणों से ओतप्रोत हैं। यह पुष्प डाक टिकट पर भी शोभायमान हो चुका है। ‘ढाक के तीन पात’ कहावत भी सुनी होगी।
शिव का अभिशाप लगा तो अंगारे से बने फूल इसके तीन पात शिव के तीन नेेत्रों के प्रतीक है। कामदेव ने शिव पर फूलों के वाणों से प्रहार किया उस समय कामदेव ढाक पर ही बैठा था। शिव का तीसरा नेत्र खुला तो कामदेव भी जलने लगा। तब ढाक ने शिव से कहा कि मेरा क्या अपराध है। भगवान शिव ने कहा कि तेरे फूल आग के ही रंग के होंगे और तेरे पत्ते मेरे तीन नेेत्रों की भांति त्रिपत्र के रुप में रहेंगे।
भोजन में इसके बने पत्तल और दोना के प्रयोग भी किया जाता है
पलाश के पत्तों से दोना (कटोरी) और पत्तल (थाली) बनाए जाते हैं। इसकी जड़ों से रस्सी और नाव की दरारें भरने का काम किया जाता है। पलाश की पत्तल पर भोजन करने से चांदी के पात्र में भोजन करने जैसा लाभ मिलता है। यह शास्त्रोक्त है। समय के साथ अब पत्तल और दोना प्लास्टिक के आ गए हैं, जो नुकसानदायक हैं। जबकि ढाक लाभदायक रहा है। वन विभाग लाचार, घट रहे वन
क्षेत्र में ककोड़ा और भूड़ा-भदरौल में सैकड़ों बीघा में इस तरह का विशाल वन क्षेत्र है। वन विभाग की उदासीनता के कारण इन वनों का क्षेत्रफल घट रहा है।

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